आर्थिक तंगी से जूझ रहे ब्राह्मणों की आंखों में टिमटिमाने लगी है उम्मीद की लौ

0

चुनावी बिसात की बलिहारी लंबे दौर से हाशिए पर चल रहे ब्राह्मण समाज की सियासी हैसियत की पौबारह हो गई है। इन्हें रिझाने-मनाने को लेकर धमाचौकड़ी मची है। इस जाति की रहनुमाई का थोक विक्रेता बनने के लिए आतुरता चरम पर है। एक से एक तिकड़म-पराक्रम नजर आ रहे हैं। कई सियासी दल कोने-किनारों में अब तक दुबके-सहमे-कुचले-पिचके-मुरझाए ब्राह्मण चेहरों को निकालकर धों पोंछकर-इस्तरी करके चमकदार/कड़क बना रहे हैं। इन्हें हरिद्वार के चोटीवाला होटल के बाहर बैठने वाले के मानिंद अपनी पार्टी के उस स्टॉल पर बैठाया गया है, जहां ब्राह्मणों के लिए लच्छेदार-जायकेदार चुनावी आईटमों की भरमार है।

हालांकि, इनमें कई वे महान विभूतियां हैं, जो अपने दल के दौर में बंधु-बांधवों समेत सत्ता की मलाई चाटने में इस कदर व्यस्त थे कि स्वाजातियों की ओर ध्यान ही नहीं दे पाए। लगे हाथों बात विप्र नामधारी अफसरों की भी कर लेते हैं। दरअसल, जन्मना ब्राह्मण होने के नाते मेरा अनुभव कहता है कि इस जाति के अधिकांश अफसर पूरे कार्यकाल में इतने ओजस्वी/तेजस्वी बने रहते हैं कि उनके सामने आने वाला कोई भी फरियादी विप्र उनके ओज से भस्म होने से ही खुद को बचाता फिरता है।

ब्राह्मणों के लिए आसमान से तारे तोड़ लाने की मुहिम

नौकरी जारी रहने तक इनकी अभिजात्य आंखे अपने वर्ग को हिकारत भरी नजरों से देखती हैं, पर रिटायर होते-होते करिश्माई तरीके से इनके हृदयों में अपने वर्ग के प्रति असीम-अद्भुत ममता-स्नेह-दुलार उमड़ पड़ता है। कोई दल बनाकर या किसी दल का दामन थामकर ब्राह्मणों के लिए आसमान से तारे तोड़ लाने की मुहिम में निकल पड़ते हैं और ओझल हो जाते हैं।

सूनी-पथराई आँखों में टिमटिमाने लगी उम्मीद की लौ

खैर, फिर से बात सियासत की करते हैं। सियासी खेल कठिन पहेली सरीखे होते हैं, जिन्हें समझना हम आम-सामान्य इंसानों के लिए आसान नहीं। ये समझ से परे है कि जब भी किसी जाति-वर्ग को साधना होता है तो उन चेहरों को ही चुना जाता है, जिन्होने कभी अपनी जाति या वर्ग के लिए रत्ती भर भी योगदान नहीं दिया होता है? सियासी पूछ होने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे-बदहाल-बेहाल-तिरस्कृत-विस्मृत जिन ब्राह्मणों की सूनी-पथराई आँखों में उम्मीद की लौ टिमटिमाने लगी है। उन्हें ये पंक्तियां अर्पित हैं-समर्पित हैं… इब्तिदा-ए-सियासत है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या!!!!!

[bs-quote quote=”यह लेखक के निजी विचार हैं।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”ज्ञानेंद्र शुक्ला” author_job=”वरिष्ठ पत्रकार” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/05/gyanendra-shukla.jpeg”][/bs-quote]

यह भी पढ़ें: भारत में कोरोना के मामले 30 लाख के पार, 75 फीसदी के करीब पहुंचा रिकवरी रेट

यह भी पढ़ें: 73 दिन बाद आ जाएगी भारत की पहली कोरोना वैक्सीन, देशवासियों को फ्री में लगेगा टीका

यह भी पढ़ें: इंडिया वालों के लिए गुड न्यूज : 2020 के अंत तक उपलब्ध हो जाएगी कोरोना की वैक्सीन

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं। अगर आप डेलीहंट या शेयरचैट इस्तेमाल करते हैं तो हमसे जुड़ें।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More