अमेरिका ने बढ़ाई पुतिन की टेंशन! रूस का पड़ोसी देश फिनलैंड बना नाटो का सदस्य

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रूस और यूक्रेन की जंग के बीच फिनलैंड मंगलवार को नाटो का 31वां सदस्य बन गया। यूक्रेन पर मॉस्को के जंग थोपने के फैसले से उसके पड़ोसी देशों की रणनीतिक में एक ऐतिहासिक बदलाव देखा गया है। अब रूस के ज्यादातर पड़ोसी अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन नाटो में शामिल होने के लिए कोशिशों को लगातार बढ़ा रहे हैं। पिछले साल यूक्रेन पर क्रेमलिन के चौतरफा हमले ने यूरोप के सुरक्षा परिदृश्य को उलट-पुलट कर रख दिया। इसने फिनलैंड और उसके पड़ोसी स्वीडन को दशकों पुरानी अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति को छोड़ने के लिए प्रेरित किया।

नाटो के सहयोगी देशों तुर्की और हंगरी ने अपने कई कारणों से फिनलैंड की नाटो की छत्रछाया में आने की कोशिशों में अड़ंगा लगाया और स्वीडन की राह में बाधा डाली। मगर पिछले हफ्ते तुर्की की संसद ने फिनलैंड की आखिरी बाधा को दूर करने के लिए उसके पक्ष में मतदान किया। एक वर्ष से भी कम समय में नाटो में शामिल होने की कार्रवाई को पूरा कर लेना नाटो गठबंधन के हाल के इतिहास में सदस्यता हासिल करने की सबसे तेज प्रक्रिया है। अब नाटो मुख्यालय में मंगलवार को कुछ औपचारिकताएं ही शेष रह गईं हैं। इस मौके पर फिनलैंड के विदेश मंत्री नाटो की संस्थापक संधि के रक्षक, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन को औपचारिक संधि पत्र सौंपेंगे।

टर्की ने साफ किया फिनलैंड का रास्ता…

बीते सप्ताह ही तुर्की की संसद ने प्रस्ताव पारित कर फिनलैंड को नाटो में लेने का रास्ता साफ कर दिया था, लेकिन स्वीडन को लेकर अभी फैसला लेना बाकी है। स्टोलनबर्ग ने कहा कि रूस ने यूक्रेन पर यह कहते हुए हमला किया था कि वह वादा करे कि नाटो में शामिल नहीं होगा। लेकिन उसके हमले का असर उलटा हुआ है। यूक्रेन ने अब तक वादा नहीं किया है और दूसरे पड़ोसी देशों ने भी नाटो का रुख कर लिया है। गौरतलब है कि रूस ने पड़ोसी देश बेलारूस की सीमाओं पर परमाणु हथियारों की तैनाती का ऐलान किया है। इसके चलते टेंशन और बढ़ गई है।

रूस के आक्रामक तेवरों से डरे पड़ोसी…

रूस के आक्रामक तेवरों से स्वीडन जैसे देश भी डरे हुए हैं। यही वजह है कि स्वीडन ने कई बार नाटो में शामिल होने की गुहार लगाई है। यहां तक कि यूक्रेन भी नाटो का सदस्य न होने को अपनी गलती मान चुका है। गौरतलब है कि रूस इस बात का विरोध करता रहा है कि नाटो के जरिए अमेरिका उसकी सीमाएं असुरक्षित कर रहा है। नाटो देशों में अमेरिका और अन्य सहयोगी देश सैन्य ठिकाने बना सकते हैं और सक्रिय सहयोग कर सकते हैं। इसी करार को रूस अपनी संप्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा मानता है।

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