पोर-पोर अमलतास खिलने दो…
मेरा सबसे प्रिय फूल अमलतास है. अमलतास डाली पर तो अच्छा लगता ही है,पर जब यह जमीन पर गिरता है तो और भी अच्छा लगता है. जमीन पीले फूलों से रंग जाती है. बहुत पहले एक कविता पढ़ी थी – “मेरी नींद में पीले अमलतास झरते हैं.” साहित्य में गुलमोहर की ही तरह बहुत लोगों ने अमलतास पर भी अपनी लेखनी दौड़ाई है. अमलतास एक Ornamental tree है, जिसे लोग घरों के लान में लगाते हैं.
अमलतास लोगों के दिलों पर राज करता है
अमलतास लोगों के दिलों पर राज करता है. यह कवियों व लेखकों के मन से होते हुए कागजों पर उतरता है. समय उम्र को लेकर बढ़ता रहता है. अमलतास भी उम्रदराज होता जाता है. यह लान में खड़ा उस परिवार की हर गतिविॆधि का गवाह रहता है. वह देखता है कि किस तरह पिता अपनी बेटी के हाथ पीले करने की चाह लिए दम तोड़ देता है. अमलतास में हर साल फूल आते हैं. बेटी की उम्र में भी हर साल इजाफा होता रहता है. भाई शादी कर लेते हैं, उनका परिवार बस जाता है. बेटी जवानी की दहलीज से गुजर कर प्रौढ़ होती चली जाती है. बुढ़ापा दस्तक देने लगता है. एक दिन बेटी मर जाएगी. अमलतास भी एक दिन धराशायी हो जाएगा.
चंडीगढ़ में अमलतास के ढेरों पेड़ हैं
चंडीगढ़ में अमलतास के ढेरों पेड़ हैं. अप्रैल व मई गर्मी के पर्याय हैं, पर, इन महीनों में अमलतास व गुलमोहर भी खिलते हैं. गाड़ी की खिड़की से अमलतास के फूलों को देख कर मैं अपने पोते को बताता हूं कि अमलतास को संस्कृत में व्याधिघात भी कहते हैं. यह हर तरह की व्याधियों पर घात (प्रहार) करता है. इसमें बहुत से औषधीय गुण हैं. यह डायबिटीज, हृदय रोग,कब्ज, कफ नाशक, पेट के अफरा के लिए लाभ दायक है. इसकी फलियां,छाल व पत्तियां सब के सब रोग नाशक हैं. अप्रैल में इनकी पत्तियां झड़ जाती हैं. केवल फूल अपनी मनोहारी छटा बिखेरने के लिए रह जाते हैं. मेरे पोते को नींद आने लगती है. अमलतास पीछे छूट जाते हैं. गाड़ी पंजाब की सीमा में दाखिल हो जाती है. जीरकपुर आ जाता है. घर आ गया. मैं पोते को गोद में उठाकर उतरता हूं. उसके पिता गाड़ी पार्क करते हैं.
इसकी छाल से रंग तैयार होता है
इसकी फलियां पहले हरी व बाद में काली पड़ जाती हैं. फलियों में बीज मिलते हैं. इसमें गूदा भी होता है, जो लसलसा होता है. इसकी छाल से रंग तैयार होता है, जो चमड़ा रंगने के काम आता है. छाल को सड़ाकर रेशों से रस्सी तैयार की जाती है. इसका वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्चुला है. अमलतास को गुजराती में गरमाष्ठो, बंगला में सोनालू, तेलगू में रेल चट्टू, कन्नड़ में कक्केभर, असमिया में सोनस व अंग्रेजी में पुडिंग पाइप ट्री कहा जाता है. यह भारत के सभी प्रदेशों में पाया जाता है.
अमलतास में फूल नहीं आए
रघुवीर सहाय की लिखी कविता-“अमलतास में फूल नहीं आए,” यह दर्शाता है कि कवि अमलतास के फूल पर न केवल रीझता है, बल्कि उसके न खिलने पर चिंतित भी होता है. अमलतास छाया नहीं देता. इसलिए लोग इसके नीचे खड़े नहीं होते. वैसे भी किसे फुरसत है अमलतास से बतियाने की? जिंदगी भाग दौड़ व आपाधापी में गुजरती जाती है. अमलतास केवल कवियों को आकर्षित करता है. वे इसका सौन्दर्य पान करते हैं. इस पर कविता लिखते हैं. अन्य लोगों के लिए यह सजावटी पेड़ है. नजर भर देखा. चलते बने. सुश्री शारदा सिंह के लिए यह एक सपना है, जो आंखों में पलता है.
कुछ सपने आंखों में पलने दो .
पोर पोर अमलतास खिलने दो.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
(लेखक- इंजीनियर एसडी ओझा जिला बलिया के रहने वाले हैं व हैं. इन दिनों चंडीगढ़ में रहते हैं व लेखकीय धर्म निभा रहे हैं जो शायद उनके पोर-पोर में बसा है.)