अखिलेश ने 20 करोड़ बांटने में खर्च कर दिए इतने करोड़…

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उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकार में किए गए कामों और योजनाओं में जिस तरह से पैसों का बंदरबाट किया गया है उसका खुलासा अब धीरे-धीरे होने लगा है। यूपी में जब से बीजेपी ने सत्ता संभाली है, तब से पिछली सरकार के कार्यों की समीक्षा ही जा रही है। जिसमें आए दिन भ्रष्टाचार के मामले आ रहे हैं। फिलहाल आप को बता दें कि अखिलेश सरकार ने 20.58 करोड़ रुपये का बेरोजगारी भत्ता बांटने के लिए जो वितरण कार्यक्रम आयोजित किया था उसमें करीब 15 करोड़ रुपये खर्च कर डाले। जबकि इस योजना के तहत लाभार्थियों का पैसा सीधे उनके बैंक खाते में जमा किया जाना था। ये जानकारी गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधान सभा में पेश की गयी कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (कैग) की जनरल एंड सोशल सेक्टर रिपोर्ट में सामने आयी है।

कहां खर्च किया गया पैसा

रिपोर्ट के अनुसार, सपा सरकार ने साल 2012-13 में बेरोजगारी भत्ता वितरण कार्यक्रमों में 8.07 करोड़ रुपये कुर्सियों, नाश्ते-पानी और दूसरे इंतजामों पर खर्च किए। वहीं 6.99 करोड़ रुपये लाभार्थियों को कार्यक्रम स्थल तक लाने में खर्च हुए। कार्यक्रम में 1.26 लाख बेरोजगार लोगों को भत्ते के चेक दिये गये। ये चेक खुद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने हाथों से दिया

कब हुई बेरोजगारी भत्ता योजना की शुरुआत

बेरोजगारी भत्ता योजना की शुरुआत साल 2003-2007 में मुलायम सिंह यादव सरकार ने की थी। इस योजना के तहत 30 से 40 साल की उम्र वाले हाई स्कूल पास बेरोजगारों को एक हजार रुपये दिए जाते हैं। योजना के तहत लाभ पाने के लिए उत्तर प्रदेश का नागरिक होना और सालाना पारिवारिक आय 36 हजार रुपये से कम होने की शर्त थी।

कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि अखिलेश सरकार के कार्यकाल में सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घट गई है। 4 साल में करीब 7 लाख विद्यार्थी कम हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2012-13 में सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 3 करोड़ 71 लाख थी, जो 2015-16 में घटकर 3.64 करोड़ रह गई। वहीं, 2012 से 2016 तक करीब 6 लाख 22 हजार बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध ही नहीं कराई गईं।

2011-12 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत दो यूनि‍फार्म स्वीकृत किए गए थे, लेकिन छात्रों को एक ही यूनि‍फार्म दिए गए। वहीं, 2011 से 2016 तक 10 लाख 6 हजार बच्चों को 20 से 230 दिनों तक की देरी से यूनि‍फार्म उपलब्ध कराए गए। 97 हजार बच्चों को तो यूनि‍फार्म मिला ही नहीं, जबकि पैसे की कमी नहीं थी।

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राज्य के 1.6 लाख स्कूलों में से 50 हजार 849 स्कूलों में खेल के मैदान ही नहीं हैं, जबकि 57 हजार 107 में चारदीवारी नहीं पाई गईं। 2978 स्कूलों में पानी की सुविधा नहीं पाई गई और 1734 ऐसे स्कूल पाए गए जिनमें लड़के और लड़कियों के लिए एक ही शौचालय था। 34,098 स्कूलों में रुपए निकाल लेने के बावजूद बिजली नहीं पाई गई, जबकि इसके लिए 64 करोड़ 22 लाख रुपए खर्च होना पाया गया।

कैग की रिपोर्ट में छात्र-शिक्षक अनुपात पर भी सवाल खड़ा किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई स्कूलों में यह अनुपात चौंकाने वाला रहा। छात्रों की संख्या के अनुपात में शिक्षक काफी कम पाए गए। कई स्कूलों में यह भी शिकायत सामने आई कि स्कूलों की सुविधा के मद में आवंटित धन से पैसे निकाल लिए गए लेकिन सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गईं। सोनभद्र में 8 स्कूलों के निर्माण के लिए स्वीकृत 19 लाख 25 हजार रुपए निकाल लिए गए, लेकिन स्कूल आधा ही बना।

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