बनारस का ऐसा मंदिर जिसमें पूजा नहीं होती, दुनिया के अजूबों से की जाती है तुलना

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बनारस का ऐसा मंदिर जिसमें पूजा नहीं होती, दुनिया के अजूबों से की जाती है तुलना

वाराणसी – बनारस की पहचान यहां के घाट और मंदिरों की वजह से है. काशी विश्वनाथ समेत यहां पर कई ऐसे मंदिर हैं जो किसी ना किसी कारण से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इसके उलट काशी में एक ऐसा मंदिर भी है जो भव्य आरती के लिए नहीं, बल्कि आरती ना होने की वजह से विख्यात है. यहां ना तो पूजा होती है और ना ही घंटी बजती है. इसके अलावा यह मंदिर पानी में डूबे रहने और झूके होने की वजह से भी आकर्षण का केंद्र है. ऐसे में आइए जानते हैं कि बनारस में यह मंदिर कहां है और किस कारण से यहाँ पूजा नहीं की जाती. इसके अलावा जानते हैं कि इस मंदिर की बनावट में ऐसी क्या खास बात है कि इसकी तुलना दुनिया के अजूबों से होती है.

किस वजह से नहीं होती यहाँ पूजा

बनारस का ये मंदिर मणिकर्णिका घाट के पास दत्तात्रेय घाट पर स्थि त है. यह मंदिर गंगा के किनारे है और साल में जब भी गंगा नदी का जल स्तर ज्यादा होता है तो यह मंदिर पानी में डूब जाता है. अब सवाल ये है कि आखिर इस मंदिर में पूजा-अर्चना क्यों नहीं की जाती है. इसे लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. ऐसे में माना जाता है कि कुछ श्राप की वजह से यहां कोई पूजा नहीं करता है और यह मंदिर पानी में डूबा रहता है, इस वजह से भी यहां पूजा नहीं हो पाती है.

300 साल पुराना हैं यह मंदिर

कहा जाता है कि यह मंदिर 300 साल पुराना है और यह मंदिर पीसा की मीनार की तरह झुका हुआ है. आप इसे देखकर ही पता लगा सकते हैं कि मंदिर कितना झुका हुआ है. यह मंदिर सैकड़ों साल से एक तरफ 23 डिग्री तक झुका हुआ है. कई बार तो गंगा का स्तर थोड़ा ज्यादा हो जाता है तो पानी इसके शिखर तक पहुंच जाता है. मंदिर में मिट्टी भी जमा हो जाती है और कई सालों से पानी की मार झेल रहा मंदिर अभी भी वैसे ही खड़ा है और झुका हुआ है. मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. यहां के लोग इसे काशी करवट भी कहते हैं.

क्या है मंदिर विशेषता

इस मंदिर की खास बात ये है कि यह मंदिर इतना झुका और कई महीनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी वैसे ही खड़ा है. इससे बनने की कहानी को लेकर कहा जाता है कि ये मंदिर 15 शताब्दी में बनाया गया था. ‘भारतीय पुरातत्व विभाग’ के मुताबिक़, इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था जबकि रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक़, सन 1857 में ‘अमेठी के राज परिवार’ ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था.

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किसने करवाया था इस मंदिर का निर्माण

स्थानीय लोगों के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि उनकी एक दासी रत्ना बाई ने मणिकर्णिका घाट के सामने शिव मंदिर बनवाने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद निर्माण के लिए उसने अहिल्या बाई से पैसे उधार लिए थे. अहिल्या बाई मंदिर देख प्रसन्न थीं लेकिन उन्होंने रत्ना बाई से कहा था कि वह इस मंदिर को अपना नाम न दे लेकिन दासी ने उनकी बात नहीं मानी और मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रखा. इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन-पूजन हो पाएगा .

क्यों झुका हुआ है यह मंदिर

इस मंदिर को लेकर कई दंत कथाएं प्रचलित हैं. स्थानीय लोग इसे काशी करवट कहते हैं. वहीं कई लोग इस मंदिर को मातृऋण मंदिर भी कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि किसी ने अपनी मां के ऋण से उऋण होने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया, लेकिन यह मंदिर टेढ़ा हो गया. ऐसे में कहा गया कि मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है.

इसे काशी करवट क्यों कहा जाता है

स्कंद पुराण के ‘काशी खंड के अनुसार द्वापर काल में काशी में सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का उद्भव हुआ. भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग जहां प्रकट हुए, वह स्थान काशी करवत कहलाया. इस स्थान पर मुमुक्षुओं के भीमेश्वर के समक्ष आरा यानी की करवत से शीश कटा कर प्राण दान करने का उल्लेख स्कंद पुराण के 69वें अध्याय में अंकित है.

क्या कहते है पं. गणेश शंकर उपाध्याय

स्थानीय पं. गणेश शंकर उपाध्याय ने बताया कि पूर्व काल में धार्मिक मृत्यु के लिए लोग काशी आते थे. उनमें साधक, हठयोगी और संन्यासी मोक्ष की कामना से भीमेश्वर के निकट अपने प्राण त्याग करते थे. यह स्थान द्वापर में कृष्ण अवतार के पूर्व का है. वर्तमान में शिवलिंग के दर्शन भूतल से 30 फीट नीचे होते हैं.

Written By: Harsh Srivastava

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