अब बच्चे स्कूलों में सुनेंगे दादी-नानी के किस्से-कहानियां

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इंटरनेट की स्पीड और उसी तेजी से भागती लोगों की जिंदगी आज जीने का नजरिया बदल रही है। कभी चिट्ठी औऱ तार भेजने की दुनिया आज महज इंटरनेट के चक्र में फंस गई है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों ने अपने जीने का अंदाज बहुत ही सीमित कर लिया है। आज के बच्चे वीडियो गेम, मोबाइल फोन, टैबलेट जैसी चीजों में खोए हुए हैं। क्योंकि अब वो दादी-नानी के किस्से सुनाने के लिए कोई नहीं है।

सोती सुंदरी की कहानी, एक परी और राक्षस की कहानी जैसी ही और साहित्यिक धरोहरें जो हमारे बुजुर्गों ने हमें दी थीं, कहीं न कहीं उनकी यादें धुंधली होने लगी हैं। लेकिन राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग ने एक नई पहल की है।राजस्थान सरकार के इस कदम से अब बच्चों को एक बार फिर से उन्ही दादी-नानी के किस्से सुनने को मिलेंगे।

राजस्थान सरकार ने इस पहल के माध्यम से बच्चों के बचपन को एक नया आयाम देने की कोशिश कर रही है। बता दें कि सरकार सभी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की दादी-नानी या फिर किसी अन्य बुजुर्ग महिला से अनुरोध कर स्कूलों में उन्हें बुलाया जाएगा, जो बच्चों के साथ बातें करते हुए उन्हें प्रेरक और मनोरंजक कहानियां सुनाएंगी।

शिक्षा विभाग के उपनिदेशक अरुण कुमार शर्मा के अनुसार, इसके पीछे सोच ये है कि ‘सामाजिक आचार-व्यवाहार में बच्चे बढ़ें और पारिवारिक बनें। एक दूसरे से जुड़े रहें। क्योंकि दादी-नानी की कहानियां बहुत ही मीठे स्वाद की हुआ करती थी, जो कुछ न कुछ सीख देती थी। इससे बच्चे तो संस्कारी बनेंगे ही, साथ ही उनकी बुद्धिमता भी बढ़ेगी।’

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शिक्षा विभाग के एक रिपोर्ट के अनुसार 80 फीसदी बच्चे टीवी और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में इस कदर दिन भर उलझे रहते हैं कि उनका सामाजिक विकास ठीक से नहीं हो पा रहा है। बचपन में जब बच्चे सोने जाते थे तो दादी-नानी से कहानियां सुनती थीं। लेकिन आजकल न तो बच्चों को और न ही परिवार को इस बात की फुरसत है।

इसे लागू करने से बच्चों का विकास तो होगा ही घर पर रह रहे बुजुर्गों को भी बच्चों के साथ समय बिताकर अच्छा लगेगा।इसके लिए शिक्षा विभाग कहानियों का एक सैंपल भी देगा, जिसके आधार पर स्कूल में आने वाले बुजुर्ग अपनी कहानियां सुनाएंगे। शिक्षा विभाग का इस काम में कोई अतिरिक्त पैसे भी खर्च नही होंगें। स्कूल के टीचर बच्चों के घर जाकर उनकी दादी-नानी को स्कूल आकर कहानियां सुनाने के लिए प्रेरित करेंगे।

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