11वीं पास दुसाध लिख चुके हैं 65 से ज्यादा किताबें

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देश-दुनिया में आज जातिवाद और धर्म के नाम पर लोग एक दुसरे के दुश्मन बने बैठे हुए हैं। आज हर क्षेत्र में जातिवाद का विष फैल गया है। चाहे वो राजनीति हो या सरकारी या प्राइवेट क्षेत्रों में नौकरी करने वाले लोग हो। भारत देश की सबसे बड़ी समस्या यहां फैले जाति-धर्म की राजनीति है। धर्म के नाम पर देश में राजनीति करने वाले हमेशा लोगों को आपस में अपने फायदे के लिए लड़ाते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इस सब से ऊपर उठकर कुछ करना चाहते हैं। देश में फैली कुरीतियों को और भेदभाव के इस दलदल को खत्म करने की कोशिश में लगे हैं।

हम बात कर रहे हैं डाइवर्सिटी मैन के रूप में देश में पहचान बना चुके एच एल दुसाध की। दुसाध किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। दुसाध आज सामाजिक न्याय के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। साथ ही आप को बता दें कि दुसाध ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अब तक 65 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। इनकी जो भी किताबें लिखी गई हैं वो सभी सामाजिक न्याय और दलित राजनीति पर केंद्रित हैं।

20 अक्टूबर, 1953 को देवरिया जिले के नरौली गाँव में जन्मे एच एल दुसाध की औपचारिक शिक्षा केवल हायर सेकंडरी (11वीं) तक ही है, लेकिन अनुभव से प्राप्त ज्ञान के बल पर वे देश के बड़े-बड़े विद्वानों के समकक्ष बैठते हैं और विचारों तथा तर्कों में तो उनका कोई सानी दिखता ही नहीं।

कला और संस्कृति की पोषिका बंग-भूमि में 33 साल रहकर दुसाध ने नाटक, सिनेमा-टीवी से कुछ–कुछ जुड़ने के बाद 1990 में डॉ.आंबेडकर के जीवन संघर्ष पर आधारित एक बड़े टीवी सीरियल का प्रस्ताव दूरदर्शन को दिया था, किंतु जातिवाद की भावना से ग्रस्त अधिकारियों ने तमाम कोशिशों के बाद भी उसे मंजूरी नहीं दी।

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इसके बाद श्री दुसाध बहुजन आंदोलन में योगदान करने के लिए 1996 में कोलकाता की ‘क्लोराइड इंडिया लिमिटेड’ की पांच अंकों की सैलरी वाली शानदार नौकरी छोड़कर, 1997 से पूर्णकालिक तौर पर लेखन से जुड़ गए, और तब से ये सिलसिला लगातार जारी है। एच.एल.दुसाध की बहुप्रशंसित 674 पृष्ठीय पहली पुस्तक ‘आदि भारत मुक्ति: बहुजन समाज’, जो उनके एक मित्र के छह पृष्ठीय पत्र का जवाब है।

इसे लिखने के लिए ही श्री दुसाध ने पहली बार कलम पकड़ी थी। पत्रोत्तर शैली में लिखी गई न सिर्फ देश की वृहत्तम पुस्तक तो है ही, साथ ही सबसे बड़ा बहु-विषयक ग्रंथ भी है। एच.एल. दुसाध सिर्फ दलितों के उत्थान से संबंधित कार्यक्रमों तक सीमित न रहकर जीवन और समाज के लगभग सभी क्षेत्रों को अपनी पत्रकारिता के दायरे में लाते हैं। ये दायरा इतना बड़ा है, कि इसमें विभिन्न दलों की राजनीति, साहित्य के प्रश्न, फिल्म, क्रिकेट, ओलंपिक, टीवी, शिक्षा-नीति, धर्म से जुड़ी घटनाएँ, भू-मंडलीकरण और अर्थनीति सभी कुछ आ जाता है।’

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