दिल को द्वारिका, मन को मथुरा और काया को काशी

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समाज में  धर्म के कुछ ठेकेदारों ने जब निचले तबके के लोगों को मंदिर में जाने पर पाबंदी लगा दी तो लोगों  ने खुद को धर्म के नाम पर बांट लिया। कुछ ने अपने शरीर पर भगवान के नाम और चित्र गुदवाने शुरू कर दिये। करीब सवा सौ साल पहले गुलाम भारत में जब समाज के निचले तबके से जुड़े लोगों को मंदिरों व मूर्तियों से दूर रहने और राम नाम न जपने की हिदायत दी गई तब अपमान और उपेक्षा ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया।
रामनामी संप्रदाय की स्थापना की
हालांकि ऐसे लोगों ने इसका प्रतिकार उस विधि से किया जो आज के दौर में वैसे लोगों के लिए नसीहत है जो जरा-जरा सी बात पर बंदूकें उठा लिया करते हैं। उस दौर में प्रताड़ित समाज के लोगों ने पूरे शरीर पर ही राम नाम गोदवाना शुरू किया। यही नहीं समाज के इन लोगों ने रामनामी संप्रदाय की स्थापना की। दिल को द्वारिका, मन को मथुरा और काया को काशी मानकर इसी में परम सत्य का अनुसंधान किया। आज छत्तीसगढ़ में इस संप्रदाय के हजारों अनुयायी हैं।
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जांजगीर-चांपा जिले का एक गांव है चारपारा। बताते हैं कि करीब सवा सौ साल पहले यहां निचले तबके के लोगों का उच्च वर्ग के लोगों ने मंदिरों में प्रवेश वर्जित कर दिया। यहां तक कि उनके राम नाम जपने पर भी पाबंदी का फरमान जारी कर दिया गया। इससे उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम का नाम गोदवाना शुरू किया। अंतत: ऐसे ही लोगों को जोड़कर सर्वप्रथम परशुराम नाम के एक युवक ने रामनामी संप्रदाय की स्थापना की। उन्होंने शरीर पर राम नाम गोदवाने वालों को इससे जोड़ना शुरू किया। धीरे-धीरे रामनामी संप्रदाय का आकार व प्रभाव बढ़ने लगा।
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गोदना बनवाने वाले नख-शिख रामनामी कहलाते हैं
रामनामी संप्रदाय के लोग निगरुण भाव उपासक हैं। आमतौर पर ये पोथी-पूजा और मंदिर-मूर्तियों से परहेज करते हैं। हां, इनमें भजन गायन की परंपरा जरूर है। रामनामी संप्रदाय के लोग केवल शिवरीनारायण स्थित मां शबरी के मंदिर में ही जाते हैं। रामनामी समाज में चार तरह के लोग होते हैं। शरीर के किसी एक हिस्से में राम नाम का गोदना बनवाने वाले रामनामी, माथे पर गोदना बनवाने वाले शिरोमणि, पूरे माथे पर गोदना बनवाने वाले सवार्ंग रामनामी और पूरे शरीर पर गोदना बनवाने वाले नख-शिख रामनामी कहलाते हैं।
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जांजगीर-चांपा, बलौदाबाजार और गरियाबंद जिलों में इस समुदाय के हजारों अनुयायी हैं। हालांकि नई पीढ़ी पूरे शरीर पर राम नाम गोदवाने से परहेज करती है। आज के दौर में इस संप्रदाय से जुड़े युवा शरीर के किसी हिस्से में राम नाम गोदवाकर इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। रामनामी एक राष्ट्रीय पंजीकृत समाज है। इसके राष्ट्रीय प्रमुख मेहत्तरलाल टंडन हैं जो बलौदाबाजार जिले के जामगहन गांव में रहते हैं। गुलाम भारत में रामनामियों पर अत्याचार भी कम नहीं हुए।
पुलिस सहायता भी उपलब्ध कराई गई थी
लगातार हमलों व अपमान से परेशान होकर इस समाज के लोग 1910 में न्याय के लिए ब्रिटिश अदालत में पहुंचे। वहां दो साल तक मुकदमा चला। अंतत: 12 अक्टूबर, 1912 को इनके पक्ष में निर्णय सुनाते हुए ब्रिटिश कोर्ट ने इन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं के पालन और इसके प्रचार-प्रसार की आजादी दे दी। कोर्ट के आदेश पर इन्हें पुलिस सहायता भी उपलब्ध कराई गई थी।
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