हज़ार साल पुरानी थियेटर कला को जिंदा रखने के लिए क्राउडफंडिंग मुहिम

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संरक्षण और आज के समय में दिलचस्पी के अभाव में दम तोड़ रही विश्व की एक सबसे पुरानी कला को बचाने के लिए एक क्राउडफंडिंग मुहिम शुरू की गई है। केरल में कुटीयट्टम के नेपथ्य सेंटर के लिए धन जुटाने का बीड़ा भारतीय कला एवं संस्कृति की ऑनलाइन एनसाइक्लोपीडिया सहपीडिया ने उठाया है और इसने क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म बिटगिविंग के जरिये 20 लाख रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है ताकि विश्व की एकमात्र प्राचीन संस्कृत थियेटर कला विधा को जिंदा रखने वाले कलाकारों की एक नई पीढ़ी को प्रशिक्षित किया जा सके।

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‘कुटीयट्टम’ सदियों से अनूठी पुरानी कला

प्राचीन काल के संस्कृत नाटकों के मंचन की कला कुटीयट्टम के बारे में कहा जाता है कि यह केरल में 1,000 वर्षों से भी अधिक समय से जारी एक अनवरत परंपरा है। अपनी सबसे अलग परंपरा, भाव-भंगिमा और अभिव्यक्ति के लिहाज से कुटीयट्टम सदियों से अनूठी थियेटर शैली रही है जिसमें पारंगत होने के लिए कलाकारों को कई वर्षों तक कठिन अभ्यास करना पड़ता है।

प्रचीन काल मे सिर्फ मंदिरो तक ही सीमित थी

प्राचीन काल में सिर्फ मंदिरों तक ही सीमित कुट्टीयट्टम 1950 के दशक में नाट्य मंचन और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुति के रूप में उभरी। इसका श्रेय मणिमाधव चाक्यार, पैनकुलम रामा चाक्यार और अम्मन्नूर माधव चाक्यार जैसे प्रसिद्ध गुरुओं के प्रयासों को जाता है। आज इस कला विधा का मंचन करने वाले लगभग 50 कलाकार और केरल स्थित कलामंडलम, मार्गी तथा अम्मन्नूर गुरुकुलम जैसे गिने-चुने संस्थान ही रह गए हैं जहां कुटीयट्टम का प्रशिक्षण दिया जाता है।

अन्य विधाओ की तरह उतना लोकप्रिय नही रह गया

त्रिशूर जिले के मुझीकुलम का शिक्षा केंद्र नेपथ्य विशेष रूप से कुटीयट्टम के प्रशिक्षण पर ही केंद्रित है और यह इस सबसे जटिल परंपरागत विरासत को जिंदा रखने का प्रयास कर रहा है जिसमें पारंगत होने के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा समय खपाना पड़ता है। गूढ़ ज्ञान तत्व के कारण यह अन्य विधाओं की तरह उतना लोकप्रिय भी नहीं रह गया है।

गैर-लाभकारी संस्था पर नेपथ्य की शुरूआत 15 साल पहले हुई

गैर-लाभकारी संस्था के तौर पर नेपथ्य की शुरूआत 15 साल पहले हुई थी जहां नई पीढ़ी के कलाकारों खासकर कुटीयट्टम के कलाकारों को प्रशिक्षित किया जाता है। नेपथ्य के संस्थापक और गुरु मार्गी मधु बताते हैं कि लोगों में जानकारी का अभाव भी एक बड़ा कारण है कि इसे यथोचित आर्थिक सहयोग नहीं मिल पा रहा है और यह कला सीखने के लिए बहुत कम युवा दिलचस्पी ले रहे हैं। क्राउडफंडिंग मुहिम के जरिये जनजागरूकता अभियान को भी दोगुने जोश से आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।

नेपथ्य12 वर्षों से धन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा है

गुरु मार्गी मधु का कहना है, “नेपथ्य पिछले 12 वर्षों से धन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा है। वर्तमान में हमारे ऊपर अपने प्रशिक्षित कलाकारों को खो देने का खतरा मंडरा रहा है। एक नए छात्र को प्रशिक्षित करने में तकरीबन एक दशक लग जाता है और जितनी बार कोई कलाकार इसका परित्याग करता है, उतनी बार हम उसी स्थिति में पहुंच जाते हैं। फंडिंग के अभाव में हमारे पास अब सिर्फ तीन वरिष्ठ छात्र (दो युवा छात्र) तथा चार ढोलकिये ही रह गए हैं।”

‘यूनेस्को’ ने ‘कुटीयट्टम’ को अमूर्त धरोहर का मास्टरपीस घोषित किया

यूनेस्को ने कुटीयट्टम को ‘मानवता की मौखिक और अमूर्त धरोहर का मास्टरपीस’ घोषित किया है।
सहपीडिया की कार्यकारी निदेशक डॉ सुधा गोपालकृष्णन कहती हैं, “यह एक बड़ी त्रासदी और शर्मनाक बात होगी कि हजारों साल से चली आ रही एक कला हमारी आंखों के सामने दम तोड़ दे। हम इस प्राचीन कला को बचाने और लोकप्रिय बनाने के नेपथ्य के प्रयासों का तहेदिल से सहयोग कर रहे हैं। कुटीयट्टम केरल के सांस्कृतिक इतिहास और संस्कृत भाषा की महान परंपरा के साथ घनिष्ठता से जुड़ी हैं ।

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