मासूमों की मौत का हत्यारा कौन?

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उत्तर प्रदेश में योगी सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़े-बड़े वादे और दावे कर रही है, लेकिन इन दावों की कल पोल खुलती हुई दिखाई दी। दरअसल, 11 अगस्त को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में उस वक्त हड़कंप मच गया जब 24 घंटे के अंदर करीब 30 मासूम बच्चों की मौत हो गई। इन बच्चों की  मौत किसी बीमारी से नहीं हुई बल्कि अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाने से इतने बच्चे काल के गाल में समा गए।

69 लाख रुपए सप्लाई कंपनी का बकाया

दरअसल आप को बतादें कि अस्पताल प्रशासन ने ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का करीब 69 लाख रुपए भुगतान नहीं किया था जिसकी वजह से कंपनी ने ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी। ऑक्सीजन न मिलने से भर्ती मरीजों की हालात बिगड़ने लगी और देखते ही देखते 30 मासूम बच्चों समेत 50 लोगों ने दम तोड़ दिया। वहीं सूबे की योगी सरकार के प्रवक्ता ने सफाई देते हुए कहा कि अस्पताल  में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई है।

सप्लाई करने वाली कंपनी ने पहले ही चेताया था

लेकिन प्रशासन और सरकार भले ही इस बात को मानने को तैयार न हो लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली पुष्पा सेल्स कंपनी ने 1 अगस्त को ही अस्पताल को एक पत्र के जरिए ऑक्सीजन सप्लाई न करने की धमकी दी थी। कंपनी ने पत्र में लिखा था कि जब तक पिछला बकाया भुगतान नहीं किया जाएगा तब तक सप्लाई नहीं की जाएगी। साथ ही गुरुवार को ही अस्पताल के कर्मचारियों ने प्रशासन को ऑक्सीजन की कमी होने की जानकारी पहले ही दे चुके थे।

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विपक्षी पार्टियां राजनीति की रोटियां सेंकने में लगे

इससे साफ है कि अस्पताल की लापरवाही ने इन मासूम बच्चों के मौत का जिम्मेदार है। इन मौतों ने जहां सरकार और अस्पताल की पोल खोल दी है तो वहीं राजनीतिक पार्टियां अब इन बच्चों की मौत पर भी सियासत की रोटियां सेंकने से बाज नहीं आर रही हैं। बच्चों की मौत के बाद सभी दलों की अलग-अलग प्रतिक्रिया आने लगी हैं और गोरखपुर में इन सियासतदारों का हुजूम उमड़ने लगा है।

धड़ल्ले से अस्पतालों में चलता है ऑक्सीजन चोरी का

खेल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ऑक्सीजन चोरी का काम धड़ल्ले से हो रहा है। केजीएमयू में साल 2014-15 में ऑक्सीजन के 202 सिलेंडर गायब होने का मामला सामने आया था। इसचोरी की घटना का खुलासा करते हुए चोरी हुए 141 सिलेंडरों के लिए जांच सुरू हुई लेकिन जांच भी समय के साथ ठंडे बस्ते में पहुंच गई। इसके साथ ही साल 2015 में मेडिकल कॉलेज के पल्मोनरी विभाग से 61 सिलेंडर चोरी हुए जिस मामले में साल 2017  में अभी कुछ दिन पहले ही कुलपति ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

सिर्फ रजिस्टर पर होती है सिलेंडरों की डिलीवरी

अब बात करते हैं बलरामपुर और लोहिया अस्पताल की जहां पर इन अस्पतालों में में ऑक्सीजन सिलेंडर सिर्फकागज पर ही सप्लाई हो रहे हैं। अस्पताल में कागज पर सिलेंडरों की संख्या कुछ है तो सप्लाई कुछ औऱ हो रही है। कंपनियों से साठगांठ करके यहां के कर्मचारी सिलेंडरों की कालाबाजारी कर रहे हैं। इस मामले में डीजी हेल्थ डॉ. पद्माकर ने 13 जनवरी 2017 को इक जांच कमेटी बैठाई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

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ऑक्सीजन सप्लाई कंपनियों का लाखों बकाया

राजधानी के इन अस्पतालों में भी ऑक्सीजन कंपनियों का लाखों बकाया होने से कभी भी संकट के बादल छा सकते हैं लेकिन अस्पताल प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। आपको बता दें कि केजीएमयू करीब 50 लाख सप्लाई कंपनी और मेटीनेंस कंपनी का करीब 10-12 लाख रुपए बकाया चल रहा है।

कहां कितनी खपत होती है ऑक्सीजन

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में रोजाना 200-300 सिलेंडर की खपत होती है, साथ ही एसजीपीजीआई में रोजाना 100 बड़े और 50 छोटे सिलेंडरों का  खर्च रोजाना होता है, वहीं राममनोहर लोहिया अस्पताल में प्रति महीने करीब 500-600 सिलेंडरों की जरुरत होती है तो बलरामपुर अस्पताल में हर महीने 22 सौ सिलेंडरों की खपत होती है और सिविल अस्पताल में 400-500 ऑक्सीजन सिलेंडर हर महीने जरुरत होती है।

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