बार-बार क्यों अरुणाचल राग छेड़ता है चीन ? जानिए क्या है इसका इतिहास
अरुणाचल प्रदेश में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के दौरे पर आपत्ति जताते हुए चीन ने कहा कि भारत ऐसा कोई काम न करे जिससे सीमा विवाद का विस्तार हो।
अरुणाचल प्रदेश में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के दौरे पर आपत्ति जताते हुए चीन ने कहा कि भारत ऐसा कोई काम न करे जिससे सीमा विवाद का विस्तार हो। भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन की इस आपत्ति पर कुछ ही घंटों में जवाब दिया और कहा कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसे अलग नहीं किया जा सकता है। इससे पहले भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर डेढ़ साल से जारी सैन्य गतिरोध को खत्म करने के लिए कोर कमांडर लेवल की 13 दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन चीन पहले की बैठकों में जिन पॉइंट्स पर सहमति बन चुकी थी, उसका भी सम्मान नहीं कर रहा। दरअसल, अरुणाचल प्रदेश पर दावा करने वाला चीन समय-समय पर इसका मुद्दा उठाता रहता है।
मैकमोहन रेखा:
दोनों देशों के बीच 3,500 किमोलीटर (2,174 मील) लंबी सीमा है। सीमा विवाद के कारण दोनों देश 1962 में युद्ध कर चुके हैं। मैकमोहन रेखा को भारत और चीन के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा माना जाता है लेकिन चीन इसे नहीं मानता है। 1950 के दशक के आखिर में तिब्बत को अपने में मिलाने के बाद चीन ने लद्दाख से जुड़े अक्साई चिन के करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। जिसे भारत अवैध कब्ज़ा बताता है। चीन ने यहां पूर्वी प्रांत शिनजियांग से जोड़ते हुए नेशनल हाइवे 219 बनाया है।
- 1912 तक तिब्बत और भारत के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची गई थी। इन इलाक़ों पर न तो अंग्रेज़ों का नियंत्रण था और न ही मुग़लों का।
- ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों की शिमला में हुई बैठक के बाद सीमा रेखा का निर्धारण हुआ।
- चीन ने 1914 के शिमला समझौते को न मानते हुए 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला शुरू कर दिया और तिब्बत को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में ले लिया।
- 1954 में भारत ने तिब्बत को लेकर भी चीनी संप्रभुता को स्वीकार करते हुए मान लिया कि तिब्बत चीन का हिस्सा है।
- चीन ने भारतीय इलाक़ों में अतिक्रमण की शुरुआत 1950 के मध्य दशक में शुरू कर दी थी। 25 अगस्त 1959 को भारत और चीन के सैनिकों की पहली भिड़ंत हुई।
- लद्दाख के कोंगका में हुई 21 अक्टूबर 1959 को गोलीबारी में 17 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी।
- 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ। ये युद्ध जीतने के बाद भी चीन को तवांग से पीछे हटना पड़ा क्योंकि अरुणाचल को लेकर भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से भारत के पक्ष में है।
क्या कहते हैं रणनीतिक विश्लेषक ?
अरुणाचल प्रदेश में 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर चीन अपना दावा करता है। जबकि भारत कहता है कि चीन ने पश्चिम में अक्साई चिन के अवैध रूप से 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर रखा है। रणनीतिक विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी ने ट्वीट कर लिखा है कि, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तिब्बत गए तो भारत ने कुछ नहीं कहा था। यहाँ तक कि भारतीय सीमा से महज़ 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पीपल्स लिबरेशन आर्मी के बेस पर शी जिनपिंग एक रात रुके भी थे। इसे चीन की युद्ध तैयारी के रूप में देखा गया। वेंकैया नायडू के अरुणाचल दौरे पर चीन की आपत्ति कोई हैरान करने वाली नहीं है।
India didn't react to Xi's provocative visit to Tibet, including his overnight stopover at a PLA base located just 15 kilometers from the India frontier and his call for strengthening “war preparation.” No wonder China feels emboldened to protest vice president's Arunachal visit. pic.twitter.com/jZriblWOpN
— Brahma Chellaney (@Chellaney) October 13, 2021
भारत की संप्रभुता को मिली हुई है अंतरराष्ट्रीय मान्यता:
वैसे तो चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर ही अपना दावा पेश करता है लेकिन तिब्बत और भूटान की सीमा से लगे तवांग को लेकर सबसे ज्यादा दिलचस्पी लेता है। हालांकि, अरुणाचल प्रदेश के साथ भारत की संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है। साथ ही अरुणाचल प्रदेश अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में भी भारत का अभिन्न हिस्सा है।
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