राजद्रोह कानून के अस्तित्व और इस्तेमाल पर लगातार बहस चलती आई है. 15 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है, साथ ही इसके अस्तित्व पर सवाल उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने आइपीसी धारा 124A (राजद्रोह) के दुरुपयोग और इस पर कार्यपालिका की जवाबदेही न होने पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है।
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राजद्रोह कानून को खत्म क्यों नहीं करते ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह कानून अंग्रेजों के समय का है। वे स्वतंत्रता आंदोलन दबाने के लिए इसका प्रयोग करते थे। उन्होंने महात्मा गांधी को चुप कराने के लिए इसका प्रयोग किया। आजादी के इतने साल बाद भी इसकी जरूरत है। सरकार ने बहुत से पुराने कानून रद किए हैं लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया। इसका बहुत दुरुपयोग होता है। ये कानून लोगों और संस्थाओं के लिए बड़ा खतरा है। कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर विचार करने का मन बनाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। हालांकि जवाब के लिए कोई अंतिम तिथि नहीं दी है।
‘हमारी चिंता दुरुपयोग को लेकर‘
पीठ ने कहा कि अगर पुलिस किसी को फंसाना चाहती है तो धारा 124A भी लगा देती है। जिस पर भी यह धारा लगती है वह डर जाता है। इन मुद्दों पर विचार किए जाने की जरूरत है। हमारी चिंता कानून के दुरुपयोग और कार्यपालिका की कोई जवाबदेही न होने को लेकर है। पीठ ने कहा कि वह सभी मामलों की एक साथ संलग्न कर सुनवाई करेगी।
राजद्रोह कानून की आरी से तुलना
सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि इस कानून के तहत दी गई अपार शक्तियां किसी बढ़ई को दी गई आरी की तरह है, जिस बढ़ाई को कहा गया कि इस आरी से एक पेड़ काटकर फर्नीचर बना दो तो उनसे पूरा जंगल ही काट डाला.
सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि जब कोई सरकार और प्रशासन की बात मानने से इनकार करे तो उस पर राजद्रोह का इल्जाम चस्पा कर दो, क्योंकि अभियोजन की कोई जवाबदेही भी तो नहीं है, जब सरकार ने इतने पुराने और अनुपयोगी कानून खत्म किए हैं तो इस आईपीसी की धारा 124A पर क्यों नहीं ध्यान दिया गया ?
लोगों को फंसाने का हथकंडा
पीठ की टिप्पणी पर केके वेणुगोपाल ने कहा कि कानून रद करने की जरूरत नहीं है। सख्त दिशानिर्देश तय करने से भी उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है। पीठ ने कहा कि एक गुट दूसरे गुट के लोगों को फंसाने के लिए इस कानून का उपयोग कर सकता है। ये लोगों लिए खतरा है। पीठ ने याचिका का प्रामाणिक और याचिकाकर्ता को वास्तविक बताते हुए कहा कि उसने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित किया है। हम यह नहीं कह सकते कि यह प्रेरित याचिका है।
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