होली के भी कई ‘रंग’, ‘रंग पंचमी’ को होती है विदाई

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नई दिल्ली। विदेशों में रंगों का सुरूर तो भारत में होली का खुमांर। भारत में इस होली के कई रंग है। पूरे देश में  जहां 23-24 मार्च को होली खेली गई, वहीं मध्य भारत के कई हिस्सों में एक खास परंपरा चली आ रही है। इन हिस्सों में होली के ठीक पांचवें दिन चैत्र कृष्ण की पंचमी को ‘रंग पंचमी’ का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।

सोमवार को रंगपंचमी का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर कई स्थानों पर युवाओं और बच्चों की टोलियों ने रंग-गुलाल खेलकर रंगपंचमी का पर्व मनाया। रंग पंचमी को होली का अंतिम दिन यानी विदाई का भी दिन भी कहते हैं।

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‘रंग पंचमी’ से जुड़े कुछ दिलचस्प पहलू

चैत्र कृष्ण पंचमी को मनाया जाने वाला यह त्योहार खासा प्रचलित है। होली की ही तरह इस दिन भी रंग और गुलाल का प्रयोग होता है। इनके अलावा कई पौराणिक मान्यताएं और परंपराएं भी इस दिन निभाई जाती हैं।

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महाराष्ट्र में होली के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यह रंग सामान्य रूप से सूखा गुलाल होता है। राजस्थान में विशेष रूप से जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों देखते ही बनता है। इस दौरान हवा में लाला नारंगी और फिरोजी रंग उड़ाये जाते हैं।

मध्यप्रदेश में रंगपंचमी की परंपरा काफी पुरानी है। मालवा वासी रंगपंचमी पर जुलूस निकालते हैं, जिसे गेर कहा जाता है। ये टोलियां सड़क पर निकलती हैं और लोग रंग-गुलाल इन पर डालते हैं। इसमें शस्त्रों का प्रदर्शन काफी महत्व रखता है।

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ऐसा नहीं है कि युवाओं की टोली (गेर) सिर्फ मस्ती के लिए सड़कों पर निकलती हैं। गेर के जरिए पानी बचाओ, महिला सशक्तीकरण, बेटी बचाओ आंदोलन जैसे संदेशों पर जोर दिया जाता है। इस टोली में महिलाएं भी शामिल होती हैं।

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