युद्ध से बचने को समुद्र पार किया, फिर रिफ्यूजी बनी; अब ओलंपिक में है स्टार प्लेयर
युद्ध की विभिषिका झेल चुका इंसान जानता है कि जिंदगी कितनी कठिन और मौत कितनी आसान है। एक वक्त सीरिया में छिड़ी जंग से निकलकर जिंदा रहने की जिद में युसरा मर्दिनी ने विशाल समुद्र को लांघा और जर्मनी में रिफ्यूजी की जिंदगी को जिया। खेल के प्रति अपने लगाव और जबरदस्त मेहनत के बल पर ओलंपिक में जगह बनाया है। टोक्यो में 100 मीटर बटरफ्लाई इवेंट में पार्टिसिपेट कर रही हैं।
देश से भगाने को हुईं मजबूर
सीरिया में जन्मी युसरा मर्दिनी वहां अपनी फैमिली के साथ रहती थीं। उनके पिता स्विमिंग कोच थे जो वीकेंड पर उन्हें तैरना सिखाते थे। युसरा पायलट बनना चाहती थीं। उन्हें प्लेन उड़ाना बहुत पसंद है। इसी दौरान देश में गृहयुद्ध शुरू हो गया। जान बचाने के लिए युसरा और उनकी बहन ने वर्ष 2015 में अपने देश सीरिया से भागने का फैसला किया। टीनएजर युसरा अपनी बहन के साथ एक नाव पर सवार होकर समुद्र के रास्ते ग्रीस जाने को निकल पड़ीं। नाव पर कई और लोग सवार थे।
यहीं खत्म नहीं हुई मुसीबत
ग्रीस पहुंचने से पहले समुद्र में उनकी नाव डूब गयी। लोग जान बचाने के लिए चीखने-चिल्लाने लगे। युसरा तीन घंटे तक समुद्र में तैरती रहीं। इस दौरान उन्होंने दूसरों की भी जान बचाने में मदद की और किसी तरह ग्रीस पहुंच सकीं। यहां से पैदल जर्मनी पहुंची, मर्दिनी और उनकी बहन ने बर्लिन में शरणार्थियों के रूप में अपने जीवन को फिर से शुरू किया।
खेल से हासिल किया पहचान-
हालात कुछ सुधरे तो मर्दिनी ने फिर से जर्मनी में रहकर पूल में स्विमिंग का प्रशिक्षण शुरू किया। वह अन्य खिलाड़ियों से कहीं ज्यादा मेहनत करती थीं। उनकी कड़ी मेहनत रंग लायी और उन्हें रियो ओलंपिक में जाने का मौका मिला। युसरा मर्दिनी उन 10 एथलीटों में से एक थीं, जो
2016 में पहली रिफ्यूजी ओलंपिक टीम का हिस्सा बनी थीं। उस वक्त दुनिया उनके बारे में जान सकी। पूरी दुनिया के रिफ्यूजी लोगों में एक उम्मीद जगी थी कि वो भी अपनी हिम्मत को, अपने गेम को दिखा सकते हैं। युसरा की बारे में जानने वाले यही सोचते रहे कि जिसे जिंदा रहने के लिए थोड़ी जमीन नहीं मिल पा रही थी उसके लिए अब पूरा आसमान है।
दुनिया को दिखायी राह
सीरिया से जर्मनी, रियो फिर टोक्यो ओलंपिक तक पहुंचने का युसरा संघर्ष हर किसी को यह एहसास करता है कि एक खिलाड़ी बनने के लिए कितने मुश्किलों को पार करना पड़ता है। मर्दिनी को अप्रैल 2017 में रिफ्यूजी सद्भावना राजदूत के लिए चुना गया। उन्हें सबसे कम उम्र का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। UNHCR गुडविल एंबेसडर भी वो रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शरणार्थियों की आवाज उठाती रही हैं।
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