मकोका से निकला यूपीकोका : क्या है यह धोखा?
विधानसभा में विधेयक पेश होते ही इसकी मंशा पर सवाल उठने शुरू
आशीष बागची
योगी सरकार ने महाराष्ट्र की तर्ज पर मकोका जैसा ही एक कानून उत्तर प्रदेश में लागू करने के लिए यूपीकोका बिल राज्य विधानसभा में पास करा लिया है। यह बिल विधानसभा में पेश होते ही सरकार की मंशा पर सवाल उठने शुरू हो गये। पूछा जा रहा है कि यूपी में अपराध व अपराधियों के दमन के लिए पहले से ही कई कारगर कानून अस्तित्व में हैं, उनपर कार्य नहीं हो रहा है। जब उन कानूनों का पालन सरकारी मशीनरी नहीं करा पा रही है तो यूपीकोका लाकर वह कौन सा तीर मार लेगी? इसपर सोशल मीडिया खासकर ट्विटर पर ट्वीट की बाढ़ आ गयी है।
लखनऊ- विधानसभा में यूपीकोका पर विपक्ष का हंगामा ,सीएम @myogiadityanath ने की यूपीकोका की तरफदारी तो @samajwadiparty ने बताया काला कानून @samayupuk @UPGovt @ChiefSecyUP
— Ankit Tiwari (अंकित तिवारी) (@ankittv4) December 21, 2017
जवाब में सरकार की ओर से कहा गया कि विधेयक आतंक फैलाने, बलपूर्वक या हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करने वालों से सख्ती से निपटने की व्यवस्था देता है। गुरुवार को विधानसभा में ‘यूपीकोका’ बिल पर चर्चा हुई। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती सहित कांग्रेस के नेताओं ने इसका पहले ही विरोध किया है। अखिलेश यादव ने कहा कि यूपीकोका का इस्तेमाल विरोधियों पर होगा। उन्होंने साफ कहा ‘यूपीकोका नहीं यह धोखा है।’ बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी कहा कि इस बिल से सर्वसमाज के गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का दमन होगा। सदन में बिल पेश होते ही माफिया डॉन और बसपा विधायक मुख्तार अंसारी ने इसका पुरजोर विरोध किया। माफिया डान द्वारा इसके विरोध पर भी सोशल मीडिया में खूब चुटकी ली गयी।
अगर योगी जी @yadavakhilesh द्वारा दिये अनमोल तोहफे #डायल_100 व #डायल_1090 का सही से उपयोग कर ले तो मोका, कोका #यूपीकोका जैसी चीजों की जरूरत ही न पड़ेगी।
ये तो बस नाकाम #कानून_व्यवस्था से ध्यान भटकाने भर का उपक्रम है हजारो कानूनों में एक और नया कानून।
लागू करना तो आता नहीं।
— इंजी सनी सिंह (@spkanpurteam) December 20, 2017
ऐसा माना जा रहा है कि विपक्षी दलों के विरोध को देखते हुए यूपीकोका विधेयक विधान परिषद से पास होने में कठिनाई आ सकती है। विधानसभा में इसे 22 दिसंबर को पारित किए जाने की संभावना है। विधानपरिषद में विपक्ष का बहुमत है। अभी जिस तरह से सपा, बसपा व कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल यूपीकोका विधेयक का विरोध कर रहे हैं, उससे यह संभावना जताई जा रही है कि वे विधान परिषद में इसे मंजूर नहीं होने देंगे। दोनों सदनों से पास होने के बाद यह विधेयक राज्यपाल के पास जाएगा। राज्यपाल के माध्यम से यह विधेयक मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। यूपीकोका भारतीय दंड संहिता और क्रिमिनल प्रोसीजर कोड से अलग कानून होगा, इसलिए इसमें राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है।
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ऐसे में नहीं लगता कि इसे इतनी जल्द मंजूरी मिल सकती है। माना यह जा रहा है कि यदि बिल पास नहीं हो पाया तो अगले विधानसभा चुनावों के बाद अगर विधानपरिषद में बहुमत आ गया तो योगी सरकार के मंसूबे पूरे हो जायेंगे।
ऊपर से देखने पर यों तो बिल में कोई खराबी नहीं दिख रही है पर अंदर से इसमें कई झोल साफ नजर आ सकते हैं।
https://twitter.com/tarunmitragroup/status/943799488375918592
इसका कारण भी है। सूत्रों का कहना है कि यूपीकोका में आईएएस अफसरों ने बड़ा खेल किया है। इस पर आईएएस एसोसियेशन का वर्चस्व साफ नजर आ रहा है। इस मामले में एक संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण बनेगा। जो खेल हुआ है, उसके तहत प्रमुख सचिव गृह अपराध नियंत्रण हेड होंगे। प्रमुख सचिव गृह प्राधिकरण अध्यक्ष होंगे। डीजीपी को प्राधिकरण में कोई जगह नहीं दी गयी है। सिर्फ, दो एडीजी पुलिस सामान्य सदस्य होंगे। प्राधिकरण के पास पूरे अधिकार होंगे। जांच करने, आदेश देने तक के अधिकार इसके पास होंगे। खेल के तहत अब डीजीपी को यह प्राधिकरण आदेशित करेगा। क्राइम कंट्रोल पर सारा कंट्रोल अब आईएएस का होगा। इससे पता चलता है कि यूपीकोका पर विवाद फिलहाल जारी रहेगा।
https://twitter.com/Dr_Anuragyadav/status/943711195948658688
दरअसल, अब तक पुलिस पहले अपराधी को पकड़कर कोर्ट में पेश करती थी फिर सबूत जुटाती थी। लेकिन यूपीकोका के तहत पुलिस पहले अपराधियों के खिलाफ सबूत जुटाएगी और फिर उसी के आधार पर उनकी गिरफ्तारी होगी। यानी कि अब अपराधी को कोर्ट में अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी। इसके अलावा सरकार के खिलाफ होने वाले हिंसक प्रदर्शनों को भी इसमें शामिल किया गया है।
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी विवाद है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूपीकोका वाकई राजनीतिक साजिश के तहत लाया जा रहा है या विपक्ष अनावश्यक इसे तूल दे रहा है? पूछा जा रहा है कि क्या इसे जनविरोधी चश्मे से देखा जाना चाहिये? दिल्ली और महाराष्ट्र में जब मकोका जैसे कानून का दुरुपयोग नहीं हो रहा है तो उत्तर प्रदेश में क्या ऐसा मुमकिन होगा? इन सवालों का जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिलेगा।