हिंदुत्व की पिच बिछा रहे योगी तो कास्ट पॉलिटिक्स पर टिके हैं अखिलेश

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लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी पर कड़ा बयान दिया है. कोर्ट में लंबित इस मामले पर सीएम योगी का साफ कहना है कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहोगे तो विवाद बना रहेगा. सीएम योगी ने इस बयान से हिंदुत्व का सख्त रुख अपनाने की कोशिश की है और उनका संदेश राजनीतिक गलियारों तक भी पहुंच गया है. जिसके केंद्र में बीजेपी की राजनीति की हिंदुत्व रेखा नजर आ रही है.

योगी के इस बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का ट्वीट आया. जिसमें उन्होंने योगी के बयान का ही जिक्र करते हुए जातिवाद का तीर छोड़ा. अखिलेश ने ट्वीट किया, ”मुख्यमंत्री आवास की दीवारें चिल्ला रही हैं, हमें गंगा जल से क्यों धोया गया?” कोण दिया गया. इस ट्वीट के पीछे इतिहास की एक घटना है, जिसमें सीएम के बंगला खाली करने के बाद उन्हें धोया गया था.

योगी ने 80-20 का फॉर्मूला दिया…

चुनाव से पहले सीएम योगी का यू ध्रुवीकरण का धुआं छोड़ना एक ऐतिहासिक घटना को याद दिलाता है. याद हो 2022 विधानसभा चुनाव की तारीख भी एलान नहीं हुई थी कि योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी की जीत के लिए 80-20 के फार्मूला का जिक्र किया, बाद में उन्होंने अपने इस बयान पर सफाई देने की कोशिश कि लेकिन तबतक सत्ता की गलियारों में इसकी 80 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुस्लिम आबादी का संदेश जा चुका था. ध्रुवीकरण का तीर चला दिया गया.

फिर क्या था चुनावी नतीजे सामने आए और बीजेपी को पिछली बार मुकाबले में इस बार ज्यादा हिन्दू वोट मिले और इससे बीजेपी के दमान पर हिंदुत्ववादी पार्टी की इमेज पर एक और मुहर लग गई. वहीँ अब एक बार फिर देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. ऐसे में तमाम रणनीतियां बनाई जा रही हैं. बीजेपी छोटी-छोटी पार्टियों की क्षेत्रीय हैसियत के आधार पर उनसे गठबंधन कर रही है. इस बीच बीजेपी की हिंदुत्व वाली इमेज कहीं छिप सी रही थी. सीएम योगी ने अपने बयान से उस इमेज को और मजबूती से फिर से सामने ला दिया है.

दरअसल, क्षेत्रीय जातिवादी समीकरण के अलावा बीजेपी का कोर वोटर हमेशा से हिंदू ही रहा है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की बात करें तो साल 2017 में पार्टी को कुल हिंदू वोटों का 47 फीसदी वोट मिला था. फिर चुनाव के बाद सीएम चुने गए. इस बार बीजेपी ने पहले ही सीएम योगी का चेहरा आगे कर दिया था. इसका असर भी हुआ. 2022 में पार्टी को 54 फीसदी हिंदू वोट मिले, यानी आधे से ज्यादा हिंदू वोट बीजेपी के खाते में गए. यही कारण है कि भाजपा अपनी मूल विचारधारा से हटना नहीं चाहती जिसके कारण वह आज भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गयी है.

जाति की राजनीति और मुस्लिम भरोसे सपा…

जबकि समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा वोट यादव समुदाय से मिलते हैं. सपा की इस रणनीति को गति देने का मुख्य कारण यादव समुदाय के वोटों पर एकाधिकार भी है. इसके साथ ही मुस्लिम वोट मिले तो सपा की MY थ्योरी चर्चित हो गई. हालांकि, हिंदुत्व के खिलाफ मुखर होकर वह दूसरे दलों से छिटककर आ रहे हिंदू वोटरों को खोना नहीं चाहतीं. इसमें जाति का मेल होने से उसका हिंदू वोट बैंक भी बढ़ता है. 2022 के चुनाव में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट एसपी को मिले. समाजवादी पार्टी को हिंदू वोट पिछले चुनाव की तुलना में बढ़ा है और इस बार 26 फीसदी हिंदुओं ने एसपी को वोट दिया है.

समाजवादी पार्टी का मानना है कि बीजेपी के हिंदुत्व का मुकाबला जातियों के समीकरण से ही साधा जा सकता है. इसलिए उन्होंने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को अपनी आगामी राजनीति की रणनीति बनाया है. कास्ट पॉलिटिक्स के अलावा अखिलेश मुस्लिम वोटर्स को भी नाराज नहीं करना चाहते. इसकी वजह है पिछले चुनावों में मिले मुस्लिम वोट. 2022 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को दो तिहाई से ज्यादा यानी 79 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे.बीएसपी और अन्य दलों से छिटकने वाले मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के खेमे में गए.ऐसे में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बीजेपी की कोशिश जातिवाद को लेकर बिखरे लोगों को हिंदुत्व के छाते के नीचे लाकर अपने पाले में करने की है. वहीं अखिलेश यादव अभी भी जातियों के क्षेत्रीय समीकरण की हकीकत में यकीन करते दिखाई दे रहे हैं.

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