‘हिम तेंदुएं के संरक्षण’ के लिए आगे आई महिलाएं

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हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति क्षेत्र की ग्रामीण महिलाएं हिम तेंदुए के संरक्षण में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। पहले हालात यह थे कि स्थानीय निवासी इसे सबसे बड़ा दुश्मन मान ठिकाने लगा देते थे। देखते ही देखते बेहद खूबसूरत यह तेंदुआ दुनिया की संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल हो गया। इसके संरक्षण का साझा प्रयास अब रंग लाते दिख रहा है।

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इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) ने इसे अपनी रेड-लिस्ट में शामिल कर रखा है। इस सूची में संकटग्रस्त प्रजातियों को शामिल किया जाता है। ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर जाए और इसके संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा सके। हिमाचल में नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन नामक संस्था ने इसके संरक्षण के लिए जमीनी प्रयास किए हैं। राज्य वन्य जीव संरक्षण विभाग भी इस मुहिम में लगा हुआ है। शेन यानी हिम तेंदुआ को सात वर्ष पहले हिमाचल का राज्य पशु भी घोषित किया गया।

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स्नो लेपर्ड मध्य और दक्षिणी एशिया के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में ही पाया जाता है, जिसमें हिमाचल भी शामिल है। दरअसल समस्या यह थी कि यहां के जिन ऊंचे पहाड़ी इलाकों में यह तेंदुआ पाया जाता है, वहां पालतू भेड़-बकरियों के अलावा इसे कुछ और नसीब नहीं होता। वहीं स्थानीय ग्रामीणों के लिए भी पशुपालन ही जीविका का एकमात्र साधन है।

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ऐसे में हिम तेंदुआ इनके लिए किसी दुश्मन से कम नहीं था। इसके संरक्षण पर तमाम प्रयासों के चलते अब स्थानीय लोगों ने भी सहयोग करना शुरू कर दिया है। इसके एवज में इन लोगों को, खासतौर पर महिलाओं को स्वरोजगार मुहैया कराया गया है। आज हिम तेंदुए के व्यवहार से जुड़ी जानकारी यहां के पुरुषों से ज्यादा महिलाओं के पास है। स्पीति घाटी के चिचम, किबर, गेते, कीह, कौमिक, लांगचा व पीन वैली के शगनम व मुदद गांव की समस्त महिलाएं हिम तेंदुए को बचाने में सक्रिय हैं।

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पूरी स्पीति घाटी की ग्राम कमेटियों ने अपने स्तर पर इसके और अन्य वन्य जीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है। फाउंडेशन के प्रभारी अजय बिजूर बताते हैं, हमने सबसे पहले ग्रामीणों के पशुओं का बीमा करवाया ताकि तेंदुए द्वारा नुकसान करने पर भरपाई हो सके।ग्रामीणों से आग्रह किया कि कुछ चारागाह इन जंगली जानवरों के लिए खाली रख जाएं। घाटी में कैमरा ट्रैप के माध्यम से तेंदुए के व्यवहार का अध्ययन शुरू किया।

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