क्या ऐसे ही चलेगी अनुशासित भाजपा?
अनुशासित पार्टी मानी जाने वाली भाजपा के अंदरुनी हालात को लेकर तल्ख टिप्पणियां आ रही हैं। योगी आदित्यनाथ काशी आये। उनके सामने ही पार्टी की पोल पट्टी खुल गयी।
इस बारे में जितने मुंह उतनी ही बातें इन दिनों लोगों की जुबान पर है। मुख्यमंत्री की सभा में खाली कुर्सियां इस बार काफी कुछ बयां कर गयीं।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार विनोद बागी अपने फेसबुक वाल पर लिखते हैं-बनारस में भाजपा का कमल मुरझाने के कगार पर है। भाजपा के स्थानीय नेता मोदी-योगी के नाम पर कार्यकर्ताओं का शोषण दोहन व मूर्ख बनाने की प्रवृत्ति का परित्याग नहीं करेंगे तो कार्यकर्ता जब अपने पर उतारू हो जाता है तो ऐन वक्त पर ऐसा कार्य कर जाता है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।
कार्यकर्ताओं ने बड़े नेताओं को अपने धमक का अहसास आखिर काशी में करा दिया। यही कारण है कि योगी की कटिंग की सभा में भीड़ नहीं जुटी। अखबारों में यह सुर्खियां बनी। बड़े नेता जो पार्टी में खुद को धुरंधर दिखाते हंै, उनको यह सोच लेना चाहिए कि कार्यकर्ताओं के वजूद से वे पार्टी के नेता बने बैठे हैं। पार्टी का झंडा कार्यकर्ता बुलंद करता है। गणेश परिक्रमा करनेवाले या गाड़ी, घोडा वाले भीड़ नहीं जुटा पाते। स्पष्ट प्रमाण कटिंग मेमोरियल की सभा में कुर्सियां खाली रहना है।
वे आगे लिखते हैं-कार्यकर्ताओं के अनुसार काशी प्रान्त इसके लिये ज्यादा जिम्मेदार है। शीर्ष पदों पर बैठे कुछ को छोड़कर सभी कार्यकर्ताओं को बंधुआ मजदूर समझने लगे हैं। प्रदेश संगठन को इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि योगी की सभा में भीड़ क्यों नहीं जुटी, इसके लिए जिम्मेदार कौन लोग हैं। खासकर काशी प्राप्त के अध्यक्ष से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिये।
एक दूसरे पत्रकार नीलांबुज तिवारी लिखते हैं-योगी के प्रथम काशी आगमन पर बेहद अनुशासित माने जाने वाले भाजपा संगठन की पोल खुल गयी। भाजपा की ताबड़तोड़ जीत के बीच यूपी की बागडोर सम्हालने वाले भाजपा के फायर ब्रांड नेता की मोदी के संसदीय क्षेत्र में बेरंग सभा पर सवाल उठना लाजमी है।
जहां मोदी को सड़क से गुजरते हुए देखने के लिए लाखों लोग सड़क के दोनों ओर घण्टों खड़े रहते हैं वहां योगी जैसे नेता की सभा में कुर्सी खाली रहना क्या कहता है? क्या मोदी नशा उतर गया है या योगी कमजोर हो गए हैं?
काशी क्षेत्र के बड़े लोगों ने सूचनाएं पार्टी कार्यकर्ताओं तक पहुंचने नहीं दी। आलम यह रहा कि पार्टी में ही लोगों को नहीं पता था कैसे जाना है? पास पर जाना है तो इसे देगा कौन आदि। योगी की वाराणसी की जो सभा शानदार हो सकती थी वह अहं और संवादहीनता के चलते फीकी रह गयी।
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