2018 में कई क्रिकेटरों के चमके सितारे, पढ़े कौन थे वो क्रिकेटर
चंद घंटों बाद साल 2018 बीत जाएगा। पूरे साल क्रिकेट में कई नए रिकॉर्ड बने तो कई क्रिकेटरों के सितारे चमके। हर क्रिकेट प्रेमी अपने-अपने हिसाब से इस साल क्रिकेट में घटी घटना को अपने जेहन में याद रखेंगे। क्रिकेट प्रेमी के तौर पर अगर आपने इस साल भारतीय बॉलिंग अटैक पर करीब से गौर किया हो तो एक बहुत ही बड़े बदलाव को समझ पाए होंगे।
कभी स्पिनरों पर निर्भर रहने वाली टीम इंडिया ने तेज गेंदबाजों की खेप तैयार कर ली है। भारतीय क्रिकेट इतिहास में पहला ऐसा मौका आया है जब टीम इंडिया के तीन तेज गेंदबाजों ने मिलकर टेस्ट मैचों में एक साल में सबसे ज्यादा विकेट झटके हैं। इस हिसाब से भारतीय तेज गेंदबाजों के लिहाज से साल 2018 को स्वर्णिम दौर माना जाएगा।
कपिल देव ने बोई थी तेज गेंदबाजी की बीज
भारतीय क्रिकेट इतिहास पर नजर डालें तो यहां एक से बढ़कर एक स्पिनर पैदा हुए। 1970 से 80 के दशक में बिशन सिंह बेदी, इरापल्ली प्रसन्ना, भगवत चंद्रशेखर और वेंकटराघवन जैसे दिग्गज स्पिनर दुनिया भर के बल्लेबाजों के लिए सिरदर्द बने। इन बॉलरों के दम पर ही भारतीय टीम मैच जीत पाती थी। इसके बाद अनिल कुंबले, हरभजन सिंह जैसे स्पिनरों पर टीम इंडिया की निर्भरता रही।
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स्पिनरों की इस खेप में कपिल देव इकलौते ऐसे तेज गेंदबाज रहे जो अपनी विलक्षित प्रतिभा के दम पर टीम में बने रहे। साथ ही अपने दौर में सबसे ज्यादा 434 टेस्ट विकेट लेने वाले तेज गेंदबाज बने। कपिल देव 1978 से लेकर 1994 भारत के लिए क्रिकेट खेले। इस दौरान कई तेज गेंदबाज टीम इंडिया में कपिल देव का साथ देने आए लेकिन वे कुछ खास नहीं कर सके।
यूं कहें कि अपने दौर में कपिल देव ऐसे तेज गेंदबाज रहे जो स्पिनरों के साथ मिलकर बॉलिंग करते थे। कपिल देव के दौर तक मोहिंदर अमरनाथ, चेतन शर्मा, करसन घावरी, बीएस संधू, अतुल वासन, मनोज प्रभाकर जैसे कई तेज गेंदबाज टीम में आए लेकिन कोई भी लंबे समय तक टीम में नहीं टिक पाए। यूं कहें की कपिल देव भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजी के बीज थे।
तेज गेंदबाज को वह तवज्जो भी नहीं मिली
उनसे पहले भी भारत को कभी भी कोई अच्छा तेज बॉलर नहीं मिला। भारतीय टीम में कपिल को छोड़कर किसी और तेज गेंदबाज को वह तवज्जो भी नहीं मिली। तेज गेंदबाजों को लेकर टीम की क्या अप्रोच थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुनील गावस्कर जैसे स्पेशलिस्ट बैट्समैन को नई गेंद सौंपी जाती थी, ताकि वे कुछ ओवर गेंदबाजी कर इसकी चमक कम कर दें।
वहीं दूसरी तरफी उस दौर में वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीम में एक से बढ़कर एक तेज गेंदबाज थे. वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों मार्शल, होल्डिंग, गार्नर, कार्टनी वॉल्स जैसे तेज बॉलिंग अटैक के सामने सारे बल्लेबाजों की हवा खराब हो जाती थी।’
भारतीय टीम जब कभी विदेशी दौरों पर जाती तो मेजबान तेज पिच बनवाते, जबकि उन पिचों का लाभ लेने वाले भारत के पास कोई तेज बॉलर नहीं होते। भारत स्पिनरों के बूते उतरता, लेकिन साफ-सुथरी पिच पर स्पिन का जादू नहीं चल पाता। साभार
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