CAA से क्या सच में चली जाएगी मुस्लिमों की नागरिकता ?

आए समझते हैं क्या है सीएए ?

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”CAA ( नागरिक संशोधन विधेयक )आया तो मुस्लिमों का नागरिकता छिन जाएगी”, ”सीएए आया तो मुस्लिम नागरिक को दिखाने होगे कागज ” ऐसी सीएए को लेकर तमाम सारी भ्रंति जिसने इस्लाम धर्म के लोगों में नागरिक संशोधन विधेयक को लेकर लोगों में डर पैदा करने का काम किया था और यह सिर्फ जागरूकता की कमी की वजह से नहीं बल्कि राजनैतिक जहर था जो वोट बैंक तैयार करने के लिए इस्लाम धर्म के लोगों में भरा गया था. देश में 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही केंद्र की मोदी सरकार सीएए लाने की बात कर रही थी. दूसरी ओर इस विधेयक के खिलाफ लगातार विपक्ष की तरफ से भरे जा रहे जहर को लेकर देश में लगातार बड़े स्तर पर इसका विरोध किया जाता रहा है.

2029 में पारित हुआ था विधेयक

साल 2019 दिसंबर में संसद ने सीएए विधेयक को मंजूरी दे दी थी और इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गयी थी. राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के साथ ही इस विधेयक को लेकर विरोध शुरू हो गया था. इसको लेकर देश में बड़े स्तर पर प्रदर्शन किया गए थे. सीएए पर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई. इसका भी कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया था. इसलिए, सरकार ने नियमों को लागू करने में देरी की थी.

लेकिन साल 2024 की 11 मार्च को लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने इस विधेयक को लागू कर दिया है. देश में सीएए लागू होने के बाद एक बार फिर से पश्चिम बंगाल, केरल, असम में इसका विरोध शुरू कर दिया गया है. वहीं कुछ राज्य सरकारों ने इस विधेयक को अपने राज्य न लागू करने तक की बात कर दी है. इस भ्रांति ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आप सीएए को कितना समझते हैं तो आइए जानते हैं…..

क्या है CAA ?

इस विधेयक के लागू होने के साथ ही पडोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार हुए छह अल्पसंख्यक जातियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को नागरिकता दी जाएगी और देश में सम्मान से रहने का अधिकार प्राप्त होगा. सीएए विधेयक के अनुसार, पड़ोसी देशों से आने वाले शरणार्थियों को 6 साल में फास्ट ट्रैक भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी. वहीं इस कानून में एक संशोधन भी किया गया है. इस संशोधन के पश्चात प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए आवश्यकता 11 साल के समय को घटाकर 5 साल कर दिया गया. इस कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि वे पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक नहीं हैं. इसके अलावा इस कानून से जुड़े खासियत को हम पॉइंट्स में समझने का प्रयास करेंगे.

० पुनर्वास और नागरिकता की कानूनी बाधाओं को दूर करता है.
० दशकों से पीड़ित शरणार्थियों को सम्मानजनक जीवन देगा.
० नागरिकता अधिकार से उनके सांस्कृतिक, भाषिक, सामाजिक पहचान की रक्षा होगी.
० साथ ही आर्थिक, व्यवसायिक, फ्री मूवमेंट, संपत्ति खरीदने जैसे अधिकार सुनिश्चित होंगे.
• नागरिकता संशोधन कानून के सन्दर्भ में कई गलतफहमियां फैलाई गई हैं.
० यह नागरिकता देने का कानून है. CAA से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता नहीं जाएगी, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.
० यह कानून केवल उन लोगों के लिए है जिन्हें वर्षों से उत्पीड़न सहना पड़ा और जिनके पास दुनिया में भारत के अलावा और कोई जगह नहीं है.
• भारत का संविधान हमें यह अधिकार देता है कि मानवतावादी दृष्टिकोण से धार्मिक शरणार्थियों
को मूलभूत अधिकार मिले और ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जा सके. कोविड महामारी के कारण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने में देरी हुई.

किन लोगों पर पड़ेगा सीएए का असर?

जिस प्रकार इस विधेयक को लेकर भ्रांति फैलाई जा रही थी कि इस कानून के लागू होने के बाद भारत के मुस्लिम धर्म के लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ेगा तो ऐसा कुछ भी नहीं है. इस कानून का भारत के नागरिकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. इस कानून का असर पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के 6 अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचाने के लिए पेश किया गया था. इन अल्पसंख्यों में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को शामिल किया गया है.

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सीएए में तीन देशों को ही क्यों किया गया शामिल

भारत में लागू होने वाला सीएए तीन पड़ोसी देशों से संबंधित है. दरअसल वहां धार्मिक उत्पीड़न के चलते 6 अल्पसंख्यक समुदाय विस्थापित हो रहा है. ये वो देश है जहां संविधान एक विशिष्ट राज्य धर्म का पालन करता है. इन तीन देशों में दूसरे धर्मों के अनुयायियों पर अत्याचार किया जा रहा है.

 

 

 

 

 

 

 

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