…तो इसलिए ‘ममता दीदी’ के लिए खास है नंदीग्राम ?

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नंदीग्राम का नाम पश्चिम बंगाल की राजनीति में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय रहा। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीति के दो दिग्गजों ने एक दूसरे को सीधे चुनौती दी। मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सुवेंदु अधिकारी के गढ़ नंदीग्राम में रैली कर विधानसभा चुनाव नंदीग्राम से लडऩे का बड़ा एलान किया था। तो भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने ममता की चुनौती को स्वीकार करते हुए कहा था कि नंदीग्राम से ममता बनर्जी को 50 हजार से ज्यादा वोट से हराएंगे, नहीं तो राजनीति छोड़ देगें।

‘ममता ने नंदीग्राम के लिए क्या किया?

सुवेंदु ने आरोप लगाया था कि ममता दीदी को नंदीग्राम की याद सिर्फ चुनाव के समय आती है इसीलिए वह पांच साल बाद वहां रैली करने गईं थी। उन्होंने सवाल किया कि आपने नंदीग्राम के लिए क्या किया? सुवेंदु ने यह भी आरोप लगाया कि जिस नंदीग्राम की बदौलत ममता बनर्जी 2011 में सत्ता में आई, उस नंदीग्राम आंदोलन के दौरान किसानों पर गोली चलाने वाले पुलिस अधिकारी अरुण गुप्ता को राज्य सरकार ने चार बार एक्सटेंशन दिया। उन्होंने कहा कि नंदीग्राम की जनता ममता बनर्जी को कभी माफ नहीं करेगी।

क्रांति की मिट्टी है नंदीग्राम- ममता

ममता दीदी ने कहा था कि, नंदीग्राम क्रांति की मिट्टी है और यह युवा तृणमूल कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है। तृणमूल ने पहले वामपंथी ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, इस बार लड़ाई बुरी सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ है। बंगाल से भाजपा को उखाड़ फेंकना है। ममता ने आगे कहा था कि सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन भारत के राजनीतिक इतिहास में दो मील के पत्थर थे। दोनों का नेतृत्व मैंने किया है। उन्होंने कहा कि नंदीग्राम को मैं नहीं भूली हूं। जब तक जिंदा हूं, बंगाल को भाजपा के हाथों नहीं बिकने दूंगी।

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क्यों खास था नंदीग्राम

गौरतलब है कि 2007 में पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण को लेकर चले आंदोलन के चलते ही ममता 2011 में सत्ता में पहुंची थी और 34 साल से जारी वाम शासन का खात्मा किया था। ममता ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था और तब सुवेंदु ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी।

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