आज भी स्पेस इतना कठिन क्यों है? जानिए असली वजह…

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2019 मे भारत की चाँद पर अपनी स्पेसक्राफ्ट उतारने की मेहनत पर एक किलोमीटर की मलबे की लकीर बनी जिसने देश को बेहद हताश कर दिया था। हालांकि ISRO ने अपनी मेहनत से चंद्रयान 3 की सफलता पूर्वक चाँद के साउथ पोल पर लैंडिंग करवा दी। भारत के लिए यह गौरव का पल है। लेकिन चंद्रयान 3 की लैंडिंग के ठीक दो दिन पहले ही रूस का लूना 25 स्पेस मे क्रैश हो जाता है। 2019 मे भारत की असफलता और 2023 मे रूस की इस हार से यह समझना जरूरी है कि आज भी स्पेस हमलोगों के लिए उतना आसान नहीं है।

आजतक कूल इतने हुए है मिशन

आधुनिक जीवन की होड मे अब देशों ने अपने डेवलपमेंट मोडेल का एक बड़ा पैरामीटर स्पेस को बनाया। आपको यह जान के हैरानी होगी कि आजतक कुल 140 मून मिशन किये गए है, जिसमे सॉफ्ट लैंडिंग मे सफल सिर्फ 4 देशों ही सफल हो पाएं है। जिस कड़ी मे रूस, अमेरिका, चीन और इंडिया का नाम है। कई ऐसे भी देश है जिन्हे आंशिक सफलता हासिल हुई है। हमारा चंद्रयान-1 जहां सफल था वही, चंद्रयान-2 को आंशिक सफलता ही मिली। लेकिन चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग नें भारत का मान बढ़ाया।

आकड़ों से समझे तो स्पेस मिशन के लिए अमेरिका के करीब 59 मिशन, रूस के 58, वही चीन के 8, जापान के 6 और भारत के 3 मिशन का एक बड़ा स्कोर्बोर्ड बना है। बस इतना ही नहीं बल्कि अलग-अलग देशों के भी एक-एक मिशन चलते आए है। इन देशों मे से सिर्फ अमेरिका ने ही चंद्रमा पर इंसानों को भेजा। वही रूस, चीन, और इंडिया ने अपने मिशन मे fly-by, इम्पैक्ट, ओरबिट, लैंडर, रोवर और रिटर्न अभियान भेजे है लेकिन इंसानों को नहीं भेजा है।

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भारत का विक्रम लैंडर भी था असफल

टेक्नॉलजी, रिसोर्सेज और तमाम सुविधाओं के बाद भी हमारे लियें स्पेस मिशन अभी भी मुश्किल है। 19 अगस्त 2023 को रूस के लूना 25 से कम्यूनिकेशन न होने की कारण रूस का यह मिशन फैल हो गया और ये मान लिया गया कि वह क्रैश हो चुका है। जरा गौर करिए, 60 साल का स्पेसलिफ्ट अनुभव, और Soviet Union से Modern Russia तक के चेंज के बावजूद लूना 25 का यह मिशन क्रैश होना कई सारी बातों पर सवाल उठाता है। हालकि एक बार को हम यह भी मान सकते है कि रूस और यूक्रेन के बीच वॉर की सिचूऐशन भी इस क्रैश का बड़ा कारण हो सकता है।

अप्रैल 2019 मे इस्राइल का Beresheet लैंडर भी चंद्रमा पर लैंड नहीं हो पाया था। इतना ही नहीं बल्कि 6 सितांबर 2019 को भारत के विक्रम लैंडर के साथ भी यही हुआ, जब स्पेस से फ़ोटोज़ आई तब इस बात पर मुहर लगा। विक्रम भी क्रैश हो गया था और उसका मलबा चाँद के सतह पर गिरा मिला।

स्पेस मिशन अभी भी जोखिम भरे है

लुनर मिशन का ट्रैक रिकार्ड अभी भी बहुत अच्छा नहीं है। आजतक जितने मिशन हुए है उसमे से सिर्फ 50 प्रतिशत ही ऐसे मिशन है जो सफल हो पाएं है। इतना ही नहीं बल्कि अर्थ की ओरबिट मे भी जो सैटेलाइट भेजे गए है उसके भी सफलता का दर 40 से 70 प्रतिशत तक का ही है।

अब इन नंबर से समझिए: पूरे विश्व मे 1.5 बिलियन गाड़ियां है, वही करीब 40,000 फ्लाइट होंगी। लेकिन वही अगर हम स्पेस लॉन्च की बात करें या इनके मिशन की तो ये 20,000 से भी कम है। चीजें साफ है, अक्सर आपकी गाड़ी मे कोई प्रॉब्लम या जाती होगी, हवाई जहाज़ भी क्रैश होते है, जबकि ये सब गाड़ियां, ट्रेन, हवाई जहाज़ हमारे लिए एक औसत पर 200 से 250 साल पुराने है। जब इनमे समस्याएं हो सकती है तब स्पेस मिशन का सफल न होना कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है। तो अगर बड़ी तस्वीर देखि जाए तो स्पेस मिशन मात्र सिर्फ 65 साल ही पुराने है।

एकोसिस्टम मे बदलाव, रिसोर्सेज के डिस्ट्रब्यूशन और आपस मे राजनैतिक विवाद भी बड़े कारण हो सकते है।

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