गुरू पूर्णिमा आज, पढ़ें क्या है इसका महत्व

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आज गुरु पूर्णिमा है, इस दिन का सनातनी हिंदू परंपरा में विशेष महत्व है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि प्राचीन काल में इसी दिन शिष्‍य अपने गुरुओं की पूजा करते थे। इस परंपरा में गुरु और शिक्षक में भी अंतर बताया गया है। शिक्षक अक्षर ज्ञान दाता है तो गुरु जीवन ज्ञान दाता है। इस बार यह 9 जुलाई यानी आज मनाया जा रहा है।

जीवन में गुरू का अलग महत्व

ये सभी जानते हैं कि बच्‍चे को जन्म भले ही माता-पिता देते है, लेकिन जीवन का अर्थ और सार समझाने का कार्य गुरु ही करता है। उसे जीवन की कठिन राह पर मजबूती से खड़े रहने की हिम्‍मत एक गुरु ही देता है। ​हिंदु परंपरा में गुरु को गोविंद से भी ऊंचा माना गया है, इसलिए यह दिन गुरु की पूजा का विशेष दिन है।

गुरूकुल से कॉलेज तक

प्राचीन काल में स्कूलों की जगह गुरूकुल हुआ करते थे और वहीं जाकर सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण किया करते थे। इन गुरूकुलों में सभी शिष्यों को समान माना जाता था, चाहे वह राजा का पुत्र हो या किसी रंक का, गुरू का व्यवहार और ज्ञान दोनों के लिए बराबर होता था। गुरू अपने सभी शिष्यों पर आर्शीवाद की एक समान बारिश करते थे। तभी से गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत हुई। वैसे तो सभी दिन गुरू और शिष्य के लिए खास होते हैं लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। वही गुरुकुल आज स्कूल और कॉलेज का रूप ले चुके हैं।

महर्षि वेदव्यास का हुआ था जन्म

हिंदू धर्म में महर्षि वेदव्यास को एक खास स्थान प्राप्त है, ये माना जाता है कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था और उन्हीं को सम्मान देने के लिए इस दिन को गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास ने महाभारत सहित कई ग्रंथों की रचना की। उन्हें कौरव और पांडव दोनों ही अपना गुरु मानते थे।

क्यों है इतना महत्व  

ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा को सबसे बड़ी पूर्णिमा माना जाता है। यह पूर्णिमा ग्रह-नक्षत्रों के हिसाब से भी विशेष होती है, आषाढ़ की पूर्णिमा को अवंतिका में ‘अष्ट महाभैरव पूजन’ परंपरा से जोड़ा जाता है, शास्त्रों में इस दिन गुरुओं के चरण पूजन का भी विधान बताया गया है। इसी कारण इस दिन गुरू की पूजा कर उनके चरणों की वंदना की जाती है।

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