शांतिदूत को क्यों नहीं मिला अब तक शांति का नोबेल पुरस्कार….?

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बीते शुक्रवार को नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट पर नॉर्वेजियन नोबेल समिति की तरफ से साल 2023 की शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता के नाम का ऐलान किया गया , इस साल का नोबेल का शांति पुरस्कार ईरान की महिला पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता नर्गिस मोहम्मदी को दिया जाएगा। नर्गिस साल 2016 से जेल में कैद है, उन्हें ईरानी महिलाओ के उत्पीड़न के खिलाफ विऱोध करने और मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करने को लेकर यह पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाएगा।

लेकिन ऐसे में मन में उठने वाला बड़ा सवाल ये है कि, वैश्विक स्तर बिना किसी तकनीकी सपोर्ट पर शांति के सबसे बड़े दूत और आधुनिक इतिहास में दमन, उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ अहिंसक संघर्ष के महान प्रेरक भारत के राष्ट्रपिता को उनके जीवित रहते या मरणोपरांत शांति पुरस्कार से अब तक क्यों सम्मानित नहीं किया गया। आइए जानते ये बापू को नोबेल ने देने की क्या है वजह….

महात्मा गांधी की हत्या को 75 साल पूरे होने पर नोबेल पुरस्कार समिति की तरफ से किए एक ट्वीट में कहा गया था कि, हत्या से कुछ पहले ही गांधीजी को शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। कमेटी के मुताबिक इससे पहले भी उन्हें तीन बार शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया। लेकिन सवाल उठता है कि फिर उन्हें अवॉर्ड मिला क्यों नहीं! कई वजहों से नोबेल शांति पुरस्कार को दुनिया का सबसे विवादित प्राइज भी माना जाता है।

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इसके अलावा ‘द मिसिंग लॉरिएट’ के शीर्षक के साथ लिखे गए नोबेल पुरस्कार समिति के लेख में लिखा गया है कि, जिसमें इस फर्क पर बात की है, जिन गांधीजी को पूरी दुनिया शांतिदूत की तरह जानती है, उन्हें ही नॉमिनेशन के बावजूद कभी पुरस्कार नहीं मिला है। कमेटी की मंशा इससे भी गड़बड़ लगती है कि उसने बहुतों बार ऐसे लोगों को शांति पुरस्कार दिया या फिर नॉमिनेट किया, जिनके बारे में कई सवाल उठते रहे थे। जैसे इसी साल इस रेस में ऑल्ट न्यूज के फाउंडर प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर का भी नाम था. ये वे लोग हैं, जिनपर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगता रहा।

कहने को तो गांधीजी को 1947 से पहले, साल 1937, 1938 और 1939 में भी पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था। तीनों ही बार नॉर्वे की संसद के एक सदस्य ओले कॉलबोर्नसन ने उन्हें रिकमंड किया। लेकिन नोबेल कमेटी के एक सदस्य जैकब वॉर्म मुलर ने महात्मा गांधी को सिरे से खारिज कर दिया। मुलर के मुताबिक उनकी शख्सियत में कई लेयर्स थीं, जो उन्हें इतने बड़े अवॉर्ड के लायक नहीं बनाती थीं। वे एक साथ ही ‘आदर्शवादी, राष्ट्रवादी, फ्रीडम फाइटर और तानाशाह’ सब थे।

नामांकन के बाद क्यों नहीं मिला पुरस्कार ? 

गांधी को 1937 में पहली बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। तब नॉर्वे के सांसद ओले कोल्बजॉर्नसेन ने उनका नाम भेजा था। नोबेल कमेटी ने जिन 13 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया था, उनमें गांधी का नाम भी था। हालांकि, नोबेल कमेटी ने उनके नाम को नजरअंदाज कर दिया। तब नोबेल कमेटी के एक सलाहकार प्रोफेसर जैकब वॉर्म-मुलर ने गांधी पर ‘आलोचनात्मक टिप्पणी’ की थी।

वॉर्म-मुलर ने लिखा, ‘बापू एक अच्छे, नेक और तपस्वी व्यक्ति हैं।  वो स्वतंत्रता सेनानी, आदर्शवादी और राष्ट्रवादी हैं. वो अक्सर मसीहा होते हैं लेकिन फिर अचानक एक साधारण राजनेता बन जाते हैं। गांधी हमेशा ‘शांतिवादी’ नहीं रहे। अपनी बात को सही साबित करनेके लिए वॉर्म-मुलर ने 1920-21 असहयोग आंदोलन की एक घटना का जिक्र किया, जब चौरी-चौरा में भीड़ ने कई पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी और पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी।’

वॉर्म-मुलर ने टिप्पणी करते हुए लिखा कि, ‘गांधीजी के आंदोलन सिर्फ भारतीयों तक सीमित थे. दक्षिण अफ्रीका में भी उनका आंदोलन भारतीयों के लिए था। उन्होंने अश्वेतों के लिए कुछ नहीं किया, जबकि वो भारतीयों से ज्यादा बदतर जिंदगी जी रहे थे। आखिरकार 1937 का नोबेल शांति पुरस्कार चेलवुड के लॉर्ड सेसिल को दिया गया। इसके बाद 1938 और 1939 में फिर से ओले कोल्बजॉर्नसेन ने महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया. लेकिन नोबेल कमेटी ने फिर नजरअंदाज कर दिया।’

साल 1947 में ये हुआ ….

साल 1947 में बीजे खेर, गोविंद बल्लभ पंत और जीवी मवलांकर ने नोबेल कमेटी के पास गांधी का नाम भेजा गया था, उन्होने ने बापू को ‘विश्व शांति का सबसे प्रभावी चैम्पियन’ बताया गया। लेकिन उस साल कमेटी के सलाहकार रहे जेंस अरूप सीप ने गांधी के नाम का न तो विरोध किया और न ही समर्थन किया। इसका कारण ये था कि, भारत में जबरदस्त हिंसा हुई थी। उस साल नोबेल कमेटी के पांच में से दो सदस्य- हरमन स्मिट इंगेब्रेट्सन और क्रिश्चियन ऑफ्टेडल ने गांधी को शांति पुरस्कार दिए जाने का समर्थन किया। आखिरकार उस साल नोबेल शांति पुरस्कार मानवाधिकार आंदोलन ‘द क्वेकर्स’ को दिया गया।

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141 शांति लोगो को दिया गया नोबेल पुरस्कार

नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, 1901 में शुरुआत के बाद से अब तक शांति के क्षेत्र में 141 नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं। इनमें 111 व्यक्ति और 30 संस्थाएं हैं। इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रॉस को दो बार और यूएन हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजिस को तीन बार शांति पुरस्कार मिल चुका है। हर साल 10 दिसंबर को ये पुरस्कार दिए जाते हैं । पहला नोबेल शांति पुरस्कार जीन हेनरी ड्यूनेंट और फ्रेडरिक पासी को संयुक्त रूप से दिया गया था।

 

 

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