क्यों बरेली को कहा जाता है नाथ नगरी? रोचक है हजारो साल पुराना इतिहास

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 250 किलोमीटर दूर स्थित शहर बरेली को नाथ नगरी के नाम से जाना जाता है. इस शहर को नाथ नगरी कहने के पीछे धार्मिक मान्यताएं हैं. शहर के चारों दिशाओं में भगवान भोलेनाथ के सात प्राचीन नाथ मंदिर हैं. इन नाथ मंदिरों से लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है. सातों नाथ मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं. तो क्या आप जानते हैं, बरेली को क्यों कहा जाता है नाथ नगरी? और क्या है इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं ? नहीं। तो आइए बताते है…

बरहाल यहां के नाथ मंदिरों में साल भर शिवभक्तों की भीड़ लगती है, लेकिन स्वान व शिवरात्रि जैसे पर्वों पर इसकी सुंदरता देखते बनती है. सावन में लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर और कछला घाट से गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि नाथ मंदिरों में दर्शन करने से भगवान भोलेनाथ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

अलखनाथ मंदिर की पौराणिक कथा…

किला क्षेत्र में स्थित शहर का यह प्रसिद्ध मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर माना जाता है. मंदिर के महंत बाबा कालू गिरि महाराज कहते हैं- पहले यहां बांस का जंगल हुआ करता था. तभी एक बाबा आए थे, जिन्होंने कई वर्षों तक यहां बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या की थी। धर्म की अलख जगी। पास ही में शिवलिंग भी स्थापित था. बाद में उन्होंने इसी बरगद के पेड़ के नीचे समाधि ले ली. चूंकि बाबा ने यहां अलख जगाने का काम किया था, इसीलिए इस मंदिर का नाम अलखनाथ रखा गया. आज की तारीख में यह शहर का सबसे प्रसिद्ध सिद्धस्थल के रूप में विख्यात है.

बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर का इतिहास…

यह मंदिर शहर के प्रेम नगर में है. यह मंदिर लगभग छह सौ साल पुराना माना जाता है. कहा जाता है कि यहां महादेव स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर सेवा समिति के मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल कहते हैं- 600 साल पहले यहां बहुत घना जंगल था. एक दिन मवेशियों को चराने आया एक चरवाहा यहीं बरगद के पेड़ के नीचे सो गया. कहा जाता है कि स्वयं महादेव ने उनके स्वप्न में आकर कहा था- वे इस वट वृक्ष के नीचे बैठे हैं जब उस चरवाहे की आंखें खुलीं तो वहां पर उसने विशाल शिवलिंग पाया. चरवाहा चकित और प्रसन्न हुआ. उसने शहर में जाकर लोगों को पूरी बात बताई. फिर वहां भक्तों का आना जाना शुरू हो गया.

बाबा बनखंडी नाथ मंदिर की महिमा…

मान्यता है कि जोगी नवादा स्थित बाबा बनखंडी नाथ मंदिर की स्थापना राजा द्रुपद की पुत्री और पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने की थी. वह यहीं पर शिवलिंग बनाकर भोले बाबा की पूजा करती थीं. द्वापर युग के इस मंदिर पर मुस्लिम शासकों ने कई बार हमले किये. कहा जाता है कि आलमगीर औरंगजेब के सैनिकों ने सैकड़ों हाथियों की जंजीरों से बांधकर शिवलिंग को नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन शिवलिंग अपनी जगह से हिला भी नहीं और सभी हाथी मारे गए.

5 हजार साल पुराना बाबा धोपेश्वर नाथ मंदिर…

शहर के कैंट के सदर बाजार स्थित बाबा धोपेश्वर नाथ मंदिर अलौकिक शक्ति का स्थान है. इसका इतिहास भी करीब 5 हजार साल पुराना है. यानी यह मंदिर महाभारत काल में पांडवों, कौरवों और भगवान कृष्ण के युग का गवाह है. कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों के गुरु ध्रुम ऋषि ने यहां तपस्या की थी. और अपनी जान दे दी. फिर लोगों ने यहां उनकी कब्र बना दी. बाद में उस समाधि पर शिवलिंग स्थापित किया गया. मंदिर व्यवस्था कमेटी के सदस्य सतीश चंद मेहता का कहना है, पहले इसका वर्णन धोमेश्वर नाथ के रूप मे मिलता है, बाद में इसे धोपेश्वर नाथ के नाम के जाना गया. यहां के महंत शिवानंद गिरी गोस्वामी महाराज हैं.

श्री तपेश्वरनाथ मंदिर की पौराणिक कथा…

सुभाष नगर स्थित श्री तपेश्वर नाथ मंदिर साधु-संतों की तपोस्थली रही है. सैकड़ों वर्ष पहले चारों ओर जंगल ही जंगल हुआ करते थे और यहीं से गंगा बहती थी. मान्यता है कि यहां एक पीपल का पेड़ था, जिसके नीचे शिवलिंग प्रकट हुआ था. तभी भालू बाबा यहां आये. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने चार सौ साल तक इस स्थान पर तपस्या की थी. यहां के महंत बाबा लखनदास महाराज का कहना है कि भालू बाबा के बाद और भी कई संत आते रहे और तपस्या का क्रम बना रहा. इसी के चलते कालांतर में यह स्थल श्री तपेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

श्री मढ़ीनाथ मंदिर का इतिहास…

सिटी के मढ़ीनाथ मोहल्ला स्थित श्री मढ़ीनाथ मंदिर भी काफी प्रसिद्ध मंदिर है. पश्चिम दिशा में स्थित यह प्राचीन मंदिर पांचाल नगरी का है. कहते हैं यहां एक बाबा आए थे, जिनके पास मणिधारी सर्प था. उन्होंने यहां तपस्या की थी. यहां के महंत विशाल गिरी का कहना है कि बाबा के पास मणिधारी सर्प होने के कारण यहां स्थापित मंदिर का नाम मढ़ीनाथ पड़ा. यह आज श्री मढ़ीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. खास बात ये भी है कि यहां आसपास बसी घनी आबादी के मोहल्ले का नाम भी मढ़ीनाथ है.

प्रसिद्ध हो गया श्री पशुपति नाथ मंदिर…

पीलीभीत बाई पास स्थित श्री पशुपति नाथ मंदिर यूं तो ज्यादा पुराना नहीं है, मगर यहां के प्रसिद्ध नाथ मंदिरों में गिना जाता है. यह मंदिर नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर की तर्ज पर बनवाया गया है. इस मंदिर का निर्माण समाजसेवक जगमोहन सिंह ने करीब 22 साल पूर्व करवाया था. इस मंदिर की सुंदरता काफी प्रसिद्ध है. परिसर के बीचो-बीच एक तालाब के मध्य पशुपति नाथ जी स्थापित हैं. यहां बड़े शिवलिंग के साथ ही छोटे-छोटे 108 शिवलिंग हैं. यहां के पुजारी सुशील शास्त्री का कहना है कि बताया शिवरात्रि और सावन में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते हैं.

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