जानिए विधवा औरत क्यों नहीं कर सकती श्रृंगार?

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‘त्याग’ की परिभाषा को यदि बारीकी से किसी ने समझा है तो वह है औरत। वह चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहती हो, किसी भी धर्म एवं मजहब को मानती हो, लेकिन त्याग का धर्म उसे बचपन से ही सिखा दिया जाता है। शायद उसके खून के एक-एक कण में त्याग नामावली बस चुकी है, तभी तो जन्म से लेकर मरण तक हर पल अपनी खुशियों एवं तमन्नाओं का त्याग करना नारी ने सीखा है।

कहते हैं पत्नी-पति की अर्धांगिनी होती है अर्थात जब विवाह होता है तब दो लोग एक हो जाते हैं। स्त्री का धन उसका पति होता है। नियति या दुर्भाग्य के कारण जब किसी स्त्री का पति इस दुनिया को छोड़ देता है, तो उस स्त्री को जीवन में असंख्य चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

वनवास के रूप में गुजारती हैं जीवन

भारत परंपराओं का देश है, यहां हर चार कदम पर नई भाषा और संस्कृति से रूबरू होना पड़ता है। कभी-कभी तो हर कला अच्छी लगती है और कभी-कभी बहुत सारी परंपराओं पर सवाल खड़े हो जाते हैं। इन्हीं में से एक परंपरा है विधवाओं का रंगीन कपड़े ना पहनना या फिर उनके अच्छे खान-पान से साथ छूट जाना। हमेशा एक सवाल इंसान के मन में आता है कि ऐसा क्यों हैं? अगर किसी महिला का पति उसका साथ छोड़कर चला जाए तो सारी उम्र उस महिला को वनवास के रूप में जीना पड़ेगा यह कहां तक उचित है?

रिवाजों में बंधी महिलाएं

केवल पति की मृत्यु का शोक ही महिलाओं के लिए काफी नहीं होता, उसके बाद उसका अकेलापन अन्य कट्टर रिवाजों से बंधकर उसे पल-पल मारता है। और इसी घुटन में वह स्त्री सोचती है कि काश इससे अच्छा तो वह अपने पति के साथ ही सती हो जाती।

एक विधवा के लिए हिन्दू मान्यताओं में खास नियम बनाए गए हैं। उसे दुनिया भर के रंगों को त्याग कर सफेद साड़ी पहननी होती है, वह किसी भी प्रकार के आभूषण एवं श्रृंगार नहीं कर सकती। इतना ही नहीं, जो लोग कट्टर तरीके से इन नियमों का पालन करते हैं, वे विधवाएं तो शाम को सूरज ढलने के बाद अनाज का एक निवाला भी निगलती नहीं हैं।

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इसका तो यही अर्थ हुआ कि वह अपनी इच्छानुसार कोई कार्य नहीं कर सकतीं। उन्हें आखिरी श्वास तक भगवान को याद करके अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत करने को मजबूर किया जाता है।

मान्यताओं का बोझ

शास्त्रों के मुताबिक पति को परमेश्वर कहा जाता है और ऐसे में अगर परमेश्वर का जीवन समाप्त हो जाता है तो महिलाओं को भी संसार की माया-मोह छोड़कर भगवान में मन लगाना चाहिए। सफेद कपड़े पहनने महिलाओं का ध्यान ना भटके, इसलिए उन्हें सफेद वस्त्र पहनने को कहा जाता है, क्योंकि रंगीन कपड़े इंसान को भौतिक सुखों के बारे में बताते हैं।

ऐसे में महिला का पति साथ नहीं होने पर महिलाएं कैसे उन चीजों की भरपाई करेगी इसी बात से बचने के लिए विधवाओं को सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है।

हो रहा बदलाव

देश में कई जगह ऐसे हैं जहां आज भी विधवाओं के बाल काट दिये जाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि केश महिलाओं का श्रृंगार होता है जो कि उसकी खूबसूरती को बयां करते हैं। हालांकि पहले की अपेक्षा अब वक्त बदल चुका है, आज देश में विधवाओं को सम्मान दिया जा रहा है। कई जगहों पर पुनर्विवाह भी हो रहा है, लेकिन अभी भी पूरी तस्वीर बदलने में वक्त लगेगा।

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