यहां घर में घुसने के दो दरवाजे, एक महिला और दूसरा पुरुष का, जानिए वजह

0

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो जनजाति के रिवाज और परंपरा इनको आम लोगों से अलग करती है। कुछ रिवाज तो कई सवाल भी खड़े करते हैं, लेकिन इन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। एक ओर जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। वहीं आज भी यह तबका अंधविश्वासों की जंजीर से जकड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के जंगलों के बीच बसा है पंडो नगर गांव। यहां राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो निवास करते हैं।

पीछे भी पंडो जनजाति के ​लोगों का अलग ही तर्क है

बता दें कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने कार्यकाल के दौरान पंडो जनजाति को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया था और इनके संरक्षण के लिए विशेष नीति बनाने के निर्देश दिए थे। ऐसी तीन जनजातियों को दत्तक पुत्र घोषित किया गया था क्योंकि ये विलुप्त होने के कगार पर थीं। इस गांव में करीब 120 घर हैं। इस गांव के घरों की एक खासियत है जो इन्हें अलग पहचान देती हैं। इस गांव के सभी घरों में प्रवेश के लिए दो दरवाजे हैं। एक दरवाजे से पुरुष प्रवेश करते हैं तो दूसरे दरवाजे से महिलाएं। पंडो नगर की इस परंपरा के पीछे भी पंडो जनजाति के ​लोगों का अलग ही तर्क है।

also read : दिव्यांग हैं ये IAS अफसर, काम में गलती निकालो तो जानें

दरअसल, महिलाएं दूसरे दरवाजे का उपयोग हमेशा नहीं करती हैं। इनका मानना है कि गर्भवती महिलाएं जब बच्चों को जन्म देती हैं या मासिक धर्म के समय वो अपवित्र होती हैं। इसकी वजह से वे घर में प्रवेश नहीं कर सकती। क्योंकि घर में उनके देवता और पूर्वज निवास करते हैं। पंडो जनजाति में यह परंपरा पिछले कई दशकों से चली आ रही है। स्थानीय निवासी अगरसाय व रामचन्दर कह​ते हैं कि बच्चों को जन्म देने के बाद महिलाएं एक महीने तक दूसरे दरवाजे से आना-जाना करती हैं।

जो सालों से चली आ रही है, उसे वे आगे भी बढ़ाएंगी

उस दरवाजे के अंदर सिर्फ एक कमरा ही रहता है और उस कमरे में सिर्फ एक बिस्तर रहता है। पंडो जनजाति की प्यासो बाई कहती हैं कि इस दौरान उन महिलाओं को किसी भी बाहरी से मिलने की भी इजाजत नहीं होती है। ना ही वे घर के किसी सामान को हाथ लगा सकती हैं। एक महीने तक उन्हें यह यातना झेलनी पड़ती है। हर महीने एक सप्ताह मासिक धर्म के दिनों में भी उनका यही हाल रहता है। बावजूद इसके इन महिलाओं को इस रिवाज से कोई परेशानी नहीं है। वे मानती हैं कि यह उनकी परंपरा है, जो सालों से चली आ रही है, उसे वे आगे भी बढ़ाएंगी।

(साभार-न्यूज 18)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More