क्या होता है फोबिया ? यह कैसे आपके दिमाक को अपनी चपेट में लेता है

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फोबिया आमतौर पर कभी भी किसी को भी हो सकता है, लेकिन हमेशा फोबियाग्रस्त रहना सामान्य बात कत्तई नहीं है. हर इंसान की अपनी-अपनी पसंद होती है और इसी तरह नापसंद भी. ज्यादातर लोगों की एक ही पसंद विशेष परिस्थिति में हो सकती है. लेकिन फोबिया हर इंसान में अलग-अलग किस्म का होता है. मनोवैज्ञानिकों ने फोबिया यानी भय को लेकर एक नया अनुसंधान पेश किया है.

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक अगर किसी को प्लेन में चढ़ने से डर लगता है तो उसे फ्लाइंग फोबिया कहेंगे. इसी तरह अगर किसी को भीड़-भाड़ में जाने में संकोच होता है तो उसे सोशल फोबिया कहते हैं और किसी को कुत्ते से डर लगता हो तो उसे डॉग फोबिया कहेंगे.

एक तरह से मनोरोग है फीबिया…

मनोवैज्ञानिकों ने बताया है कि फोबिया वास्तव में मानसिक सेहत से जुड़ा होता है, यह एक प्रकार का मनोरोग है. हर इंसान की दिमागी शक्ति अलग-अलग होती है और समाज से उसका अलग संबंध होता है. कोई विशेष तौर पर सक्रिय रहता है तो कोई सक्रियता से बहुत दूर रहता है. लिहाजा फोबिया का कभी-कभी बहुत ही खतरनाक अंजाम भी सामने आता है.

क्या सबको होता है फीबिया?

ब्रिटेन में हाल में मनोवैज्ञानिकों ने विवेचना करके बताया है कि फोबिया दो प्रकार से हो सकता है. एक शख्स जिसको हमेशा किसी ना किसी वस्तु का भय रहता है, वह यकीनन मनोरोगी है लेकिन कुछ लोगों में साहसिकता की कमी होती है तो वे ‘विशिष्ट फोबिया’ से ग्रस्त हो जाते हैं. इस श्रेणी में बहुत सारे लोग आते हैं.

मसलन खतरनाक जानवर का डर हर किसी में आम है लेकिन इसे फोबिया नहीं कहेंगे. बहुत से लोगों को ऊंचाई और गहराई से डर लगता है जो कि स्वाभाविक भी है तो इसे भी फोबिया नहीं कह सकते. लेकिन अगर सामान्य जीवन में नजर आने वाले जीव, जंतु या इलाज के लिए दवा और इंजेक्शन का डर हो तो ये खतरनाक किस्म का फोबिया कहलाएगा.

कैसे करता है आपके दिमाग पर असर?

इंसान के मस्तिष्क की संरचनाओं का अपना एक नेटवर्क है, जिसे लिम्बिक सिस्टम (limbic system) के रूप में जाना जाता है. भय, चिंता, प्यार का अहसास इसकी जीवंतता का परिचायक है. अगर डर ज्यादा गहरा गया है तो वह लिंबिक सिस्टम के अन्य हिस्सों मसलन हाइपोथैलेमस के साथ संपर्क करेगा. जिसके बाद इंसान के हृदय की गति व सांसें तेज होने लगती हैं और मतली, घबराहट और पसीना आने लगता है.

कुछ अजीब किस्म के फोबिया होते हैं…

इसे कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है. मसलन ट्रेन यात्रा में भय यानी ट्रेन फ़ोबिया, इसे साइडरोड्रोमोफ़ोबिया भी कहा जाता है. कभी-कभी किसी इंसान में किसी चीज़ के खोने का डर भी रहता है, कहते हैं मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड इससे पीड़ित थे.

हाल के दिनों में ‘नोमोफोबिया’ की भी बहुत चर्चा है. इसके तहत इंसान में बिना मोबाइल फोन रहने में डर लगता है. उसे बिना मोबाइल के जीवन में नीरसता महसूस होती है लगता है कुछ महत्वपूर्ण छूट गया.

क्या फोबिया का इलाज संभव है?

चिकित्सकों के मुताबिक फोबिया की कोई निश्चित दवाई नहीं है क्योंकि ये कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी नहीं है. यह एक प्रकार की मन: स्थिति है जिस पर अभ्यास से ही काबू पाया जा सकता है. क्योंकि ये फोबिया कभी कभी अपने आप कम हो सकता है, तो कभी कभार ज्यादा भी बढ सकता है.

मनोवैज्ञानिक तरीके से फ़ोबिया पर विजय पाया जा सकता है. इसका सबसे बेहतर तरीका है खुद में आत्मविश्वास पैदा करना और भीतर से भय को दूर करने का प्रयास करना. उचित विश्राम करें, खेल, मनोरंजन के अलावा खुद को काम में व्यस्त करने का प्रयास करते रहें और पॉजिटिव सोचें, इन उपायों से फोबिया को कम किया जा सकता है.

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