वोटर आईडी होने का मतलब नहीं कि आप नागरिक हैं, कानून के मौलिक सवाल पर अनिश्चितता

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एजेंसी
क्या आपके पास वोटर आईडी का होना नागरिकता का प्रमाण है? पिछले हफ्ते विभिन्न कोर्टों की तरफ से दिए गए आदेश ने कानून के मौलिक सवाल पर अनिश्चितता पैदा कर दी है। 12 फरवरी को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 2018 के मोहम्मद बाबुल इस्लाम वर्सेज असम सरकार का हवाला देते हुए यह माना कि मतदाता पहचान पत्र नागरिकता का सबूत नहीं माना जा सकता।

सबूत के तौर पर वोटर आईडी की फोटो कॉपी दी थी

यह फैसला मुनिन्दर बिस्वास की तरफ से दायर याचिका पर जस्टिस मनोजीत भुईयां और पार्थिव ज्योति साइक्या ने दिया था। विस्वास ने सबूत के तौर पर वोटर आईडी की फोटो कॉपी और 1997 का वोटर लिस्ट प्रस्तुत किया था, जिसमें उनका नाम था।

मतदाता कार्ड को लेकर कोर्ट ने यह कहा कि इसे नागरिकता का प्रूफ नहीं माना जा सकता है।

सबूत पेश करने में विफल रहे

“मतदाता पहचान पत्र को लेकर मोहम्मद बाबुल इस्लाम वर्सेज असम सरकार [WP(c) 2016 के नंबर- 3547] में मतदाता पहचान पत्र को नागरिकता का प्रूफ नहीं माना गया।” मतदाता सूची को लेकर कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 1997 से पहले का वोटर लिस्ट पेश नहीं कर सका और वे मार्च 1971 से असम में रहने को लेकर सबूत पेश करने में विफल रहे।

“याचिकाकर्ता ने 1997 से पहले का वोटर लिस्ट पेश करने में विफल रहे और इसलिए याचिकाकर्ता यह साबित भी नहीं साबित कर पाए कि वे 25-03-1971 के पूर्व से रह रहे हैं।”

सरकार कर रही है वोटर कार्ड को आधार से जोड़ने पर विचार

आधार को वोटर कार्ड से लिंक करने के चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर कानून मंत्रालय विचार कर रहा है। इससे अपने चुनाव क्षेत्र से बाहर रहते हुए भी मतदाता अपना वोट डाल सकेंगे। मंत्रालय ने मंगलवार को मुख्य़ चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र और अशोक लवासा से विचार विमर्श के बाद ये बात कही बैठक में सीईसी ने कानून मंत्रालय को चुनावी सुधारों के लिए उत्तरार्द्ध के साथ लंबित 40 प्रस्तावों को ट्रैक करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

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