अटल जी की जुबान क्या फिसली, फिसल गयी थी बलरामपुर सीट
हिमांशु शर्मा / वाराणसी
वो कहते हैं न कि अगर जुबान सही चले तो सबकुछ ठीक, पर अगर जरा सी फिसली तो अल्लाह खैर करे। बात भी सौ फीसदी सच है, जुबान की जरा सी बेअंदाजी किसी भी शख्स का अच्छा खासा माहौल बिगाड़ देती है। हाल-फिलहाल में अपने मुल्क के सियासतदानों के मुताल्लिक बात की जाये तो समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान इसके बड़े उदाहरण साबित होंगे। संसद में महिला स्पीकर को लेकर उनकी बयानबाजी उनके लिए खासी मुसीबत का सबब बन गयी है। आपको बताऊं कि इससे पहले भी सियासतदानों पर बदजुबानी के आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि ऐसे लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी शुमार है। अटल जी ने एक चुनाव प्रचार के दौरान अपनी महिला प्रतिद्वंदी को लेकर कुछ ऐसा बोला जिसकी कीमत उन्हें वहां की सीट गंवाकर चुकानी पड़ी थी।
कुछ ऐसा कहते हैं लोग-
1962 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी प्रतिद्वंदी कांग्रेस नेता सुभद्रा जोशी को लेकर अमर्यादित बयानबाजी कर दी थी। सुभद्रा अपने चुनाव प्रचार के दौरान अक्सर कहती थीं कि अगर उन्होंने चुनाव जीता तो साल के बारह महीने और महीने के तीसों दिन जनता की सेवा को तत्पर रहेंगी। एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी को जाने क्या सूझी कि अपनी एक सभा में सुभद्रा की इस बात को लेकर बोले कि ‘सुभद्रा जी कहती हैं कि वे महीने के तीसों दिन मतदाताओं की सेवा करेंगी। मैं पूछता हूं, कैसे करेंगी? महीने में कुछ दिन तो महिलाएं सेवा करने लायक रहती ही नहीं हैं! सुभद्रा जोशी ने उनके जवाब में इतना ही कहा कि अटल द्वारा की गई इस बेइज्जती का बदला वे नहीं, उनके मतदाता लेंगे। ऐसा हुआ भी। अटल बिहारी चुनाव हार गये। हालांकि इस चुनाव में उस समय के प्रसिद्ध एक्टर बलराज साहनी ने सुभद्रा जोशी के लिए चुनाव प्रचार किया था। कहा जाता है कि सुभद्रा जोशी की जीत में बलराज साहनी के प्रचार भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
आजम की आदत है बदजुबानी !
बात आजम खान की करें तो इनकी पहचान अल्पसंख्यक मुस्लिम राजनीति करने वाले नेता की है जिनके भाषण बेहतरीन होते हैं। उर्दू लफ्जों से लबरेज शेरो-शायरी के साथ अपनी बातें लोगों तक पहुंचाने का उनका खास अंदाज है। पर तहजीब की जबान उर्दू के इस जानकार सांसद ने लगता है बदजुबानी को अपनी आदत बना ली है। इसका हालिया उदाहरण महिला स्पीकर और बीजेपी सांसद रमा देवी को लेकर उनकी बयानबाजी है। आजम ने रामा देवी को कहा कि आप मुझे इतनी अच्छी लगती हैं इतनी प्यारी लगती हैं कि मैं आपकी आंखों में आंखें डाले रहूं ऐसा मेरा मन करता है। इसके पहले भी आजम खान ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान एक चुनावी रैली में रामपुर से बीजेपी की उम्मीदवार जया प्रदा के लिए कहा था कि मुझे तो यह भी पता है कि वह तो अंदर अंडर वीयर भी खाकी का ही पहनती हैं। उन्होंने कहा कि जिसको हम ऊंगली पकड़कर रामपुर लाए, आपने 10 साल जिससे अपना प्रतिनिधित्व कराया, उसकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है। आजम खान शब्दों का इस्तेमाल तो अच्छा कर लेते हैं लेकिन लगता है कि वाक्यों का अर्थ समझने की क्षमता थोड़ी कम है जिसका परिणाम गाहे-बगाहे महिलाओं के बारे में उनके अमर्यादित बयानों के रूप में सामने आता रहता है।
रिश्तों की दुहाई फिर भी नहीं बनी बात-
आजम खान ने संसद में महिला स्पीकर को लेकर जो भी बातें कहीं इसके लिए वह शुरुआत में ही माफी मांग लेते और बात हल्के-फुल्के में खत्म हो जाती। पर वो सीनाजोरी पर उतर आये और जब बात हाथ से निकलने लगी तो अपनी बात को भाई-बहन के रिश्ते की दुहाई देते हुए जायज ठहराने की कोशिश में लग गये। पर सवाल यहां ये है कि क्या कोई भाई अपनी बहन के लिए ऐसी बातें कहता है क्या? आजम के इस पैंतरे में भाई- बहन के रिश्ते की पवित्रता कम महिला स्पीकर को करारा जवाब देने की मंशा अधिक दिख रही है। आजम खान ने संसद में अपनी आदत के अनुसार एक शेर से अपनी बात कहनी शुरू की। जिस पर स्पीकर महोदया ने उन्हें टोका और सीधे और स्पष्ट शब्दों में उनसे मुखातिब होते हुए अपनी बात पूरी करने को कहा। इस पर आजम खान को लगा कि महिला स्पीकर उन्हें डॉमिनेट करने की कोशिश कर रही हैं। इसके बाद वो फिजूल की बातों पर उतर आये। उसके बाद जब मामला गरम होता देखा तो तुरंत पैंतरा बदल कर मामले को भाई बहन से जोड़ने लगे।
अखिलेश की सियासी मजबूरी-
खास यह रहा कि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव अपने सांसद आजम के बचाव में उठ खडे हुए। उनका अंदाज बड़ा ही तल्ख था। इससे पहले शायद अखिलेश का ऐसा चेहरा संसद ने नहीं देखा होगा। अखिलेश ने अपने सांसद को डिफेंड करने की कोशिश में बीजेपी सांसदों को बदतमीज जैसे शब्दों से भी नवाजा। जिस पर सांसदों ने गहरी नाराजगी भी जतायी। अखिलेश का इस पूरे मसले को लेकर संसद में उनका रवैया उनकी और उनकी पार्टी की नजर में चाहे जो भी रहा हो पर यहां उनकी सियासी मजबूरी जरूर देखने में आयी। अखिलेश नहीं बोलते तो अपनी पार्टी के इस बड़े मुस्लिम नेता की नाराजगी के शिकार होते। जो पार्टी के लिए ठीक नहीं साबित होता। लोकसभा चुनावों में हार वैसे ही पार्टी की हालत बिगाड़ गई है।
काशी विद्यापीठ में पोलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के पूर्व हेड प्रो सतीश राय कहते हैं कि भारतीय राजनीति में नेताओं के गलतबयानी के कई मामले हैं। एक बार डॉ राम मनोहर लोहिया ने नेहरू जी को चौकीदार कह दिया था। इसका जवाब नेहरू जी बड़े ही मर्यादित तरीके से दिया था। उन दिनों की राजनीति में और अब की राजनीति में बहुत फर्क है। अगर कोई नेता किसी के खिलाफ कोई गलत बयानी करता भी था तो उसके लिए माफी मांगने के लिए भी तैयार रहता था।
वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र नारायण बताते हैं कि अभी हाल में ही बीजेपी के दयाशंकर सिंह ने मायावती के लिए अपशब्द कहे थे। शशि थरूर की पत्नी सुनंदा को पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड कहा गया। कुल मिलाकर कहें तो राजनीति मर्यादाहीन होती दिख रही है। नेताओं की बदजुबानी इसका उदाहरण है। पिछले लोकसभा चुनावों में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल हुआ है वो किसी से छिपा नहीं है।