उपराष्ट्रपति ने महाभियोग प्रस्ताव किया खारिज, कांग्रेस के पास ये है विकल्प…
राज्यसभा चेयरमैन वेंकैया नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। कांग्रेस की नेतृत्व में 7 विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति के सामने ये प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन कानूनी सलाह के बाद वेंकैया नायडू(Venkaiah Naidu) ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। उपराष्ट्रपति का कहना है कि ये महाभियोग राजनीति से प्रेरित था। बताया जा रहा है कि महाभियोग प्रस्ताव पर सात रिटायर्ड सासंदों के दस्तखत होने की वजह से राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
कानूनी विशेषज्ञों के साथ विचार करने के बाद खारिज किया प्रस्ताव
उपराष्ट्रपति इसको लेकर अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के बाद ये फैसला लिया। बता दें कि महाभियोग के प्रस्ताव के बाद से ही सभी की नज़रें वेंकैया नायडू पर टिकी थीं। शुक्रवार को राजनीतिक दलों से इस बारे में नोटिस मिलने के बाद नायडू 4 दिन की छुट्टी पर आंध्र गए थे, लेकिन मामला गंभीर होते देख वह रविवार को ही दिल्ली लौट आए थे। सोमवार को उपराष्ट्रपति ने इस बारे में फैसला किया।
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कांग्रेस के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प बचा
यहां ध्यान देने वाली बात है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय राज्यसभा के सभापति का होता है। अब कांग्रेस के पास सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने का ही रास्ता बचा है। अब कांग्रेस के पास विकल्प यह है कि वह सुप्रीम कोर्ट जाए। कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने महाभियोग प्रस्ताव खारिज होने के बाद कहा – ये बहुत महत्वपूर्ण विषय है। हमें नहीं पता कि ये प्रस्ताव खारिज क्यों किया गया। हम अब अपने आगे की रणनीति पर विचार करेंगे।
71 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव सौंपा था
बता दें कि कांग्रेस ने सीपीएम, सीपीआई, एसपी, बीएसपी, एनसीपी और मुस्लिम लीग के समर्थन का पत्र उपराष्ट्रपति को सौंपा है। लेकिन, बिहार में पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल लालू प्रसाद की आरजेडी और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस उसके इस प्रस्ताव के साथ नहीं नजर आए। दोनों दलों ने महाभियोग को लेकर हुई मीटिंग में भी हिस्सा नहीं लिया। यह एक अभूतपूर्व कदम था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ कभी भी महाभियोग का प्रस्ताव नहीं आया था। कानून के कई जानकार इसे अभूतपूर्व कदम बता रहे थे। वरिष्ठ वकील फाली नरीमन ने इसे काला दिन बताया था।