जश्न-ए-आजादी : इतिहास के पन्नों में कहां गुम हैं बेगम हजरत महल

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कभी-कभी अतीत भी हमारे साथ बहुत अनदेखी करने लगता है, कहते हैं अतीत के पास आंखें, कान और जुबान होती है ताकि जो वर्तमान में सुनें देखें  उसे आने वाले भविष्य को सुना सकें। लेकिन कभी-कभी ये इतिहास कुछ चीजों को अनदेखा कर जाता है। और आने वाली पीढ़ी या भविष्य को ये बताने में नाकामयाब हो जाता है कि उसने कौन से मंजर देखे थे।

वीरांगना बेगम हजरत महल

कुछ ऐसा ही शायद अतीत ने बेगम हजरत महल के  साथ किया है, जिनके बारे में आज आजादी के 70 साल होने को हैं मगर किसी के जुबान पर उनका नाम तक नहीं सुनाई देता है। ये इस पीढ़ी की गलती नहीं है बल्कि उस अतीत की है जो शायद बेगम हजरत महल के पराक्रम को भूल गया, उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाई को भूल गया। इतिहास ने जो देखा शायद वो इस पीढ़ी को बता नहीं सकता, इसलिए आज के  समय में हजरत महल के बारे में बिरले ही कोई बात करता है।

1857 की क्रांति में अंग्रेजों से लिया लोहा

1857 की क्रांति को अवध में परवान पर चढ़ाने वाली महिलाओं में अगर किसी का नाम आता है तो वो है वीरांगना बेगम हजरत महल का जिन्होंने 1857 की क्रांति में अहम योगदान दिया था। अवध के नवाब वाजिद अली शाह इनके पति थे, अंग्रेजो ने अपनी कूटनीति के तहत अवध पर कब्जा कर अवध में अपनी हुकूमत कायम की और वाजिद अली शाह को कलकत्ते की जेल में कैद कर दिया।

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बेटे को गद्दी पर बिठा कर खुद उठाई तलवार

हजरत महल ने धैर्य नहीं खोया और अपने बेटे को गद्दी पर बिठा कर गौरी की हुकूमत को चुनौती दी। बेगम हजरत महल जानती थी कि अगर अंग्रेजों के हाथों हार गईं तो सजा में उन्हें सिर्फ मौत मिलेगी, लेकिन कोई परवाह किए बिना इन्होंने लोगों को एकजुट किया और अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी। उनके नेतृत्व में हिंदु-मुस्लिम सभी ने मिलकर दुश्मन से लोहा लिया। उनकी बहादुरी के किस्से अवध से लेकर लंदन तक पहुंच चुके थे।

वतन से दूर नेपाल में हुई थी मृत्यु

जिस देश की आजादी के लिए उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया उनको अपने वतन की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई और जब उनकी मौत हुई तो दूसरे देश नेपाल में हुई और वहीं पर काठमांडू में एक मस्जिद के पास उन्हें दफनाया गया। साल 1947 में हमारे हिस्से में आजादी आई और जो देश के लिए मर मिटे उनके हिस्से में बेकद्री। किसी को हिंदुस्तान तो किसी के हिस्से में पाकिस्तान आया मगर बेगम हजरत महल जिन्होंने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी आज वो पहचान के लिए भी मोहताज हैं।

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