Varanasi: शिवभक्तों की आस्था से पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग सराबोर

श्रद्धालुओं ने कहा-  "काशी के कंकड़-कंकड़में शंकर का एहसास कराती है पंचक्रोश यात्रा"

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Varanasi: वाराणसी में महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व प्रारंभ होने वाले पंचक्रोश यात्रा में शिवभक्तों का खासा उत्साह देखने को मिला. गुरुवार की शाम ढलते ही शिवभक्तों काजत्था मणिकर्णिका घाट की ओर बढ़ने लगा. पुण्यफल की कामना से मोक्ष दायिनी गंगा में स्नान कर मणिकर्णिका घाट स्थित पौराणिक चक्र पुष्कर्णी कुंड में श्रद्धालुओं ने जलमार्जन किया. तदुपरांत संकल्प लेकर घाट मार्ग से होते हुए अस्सी घाट की ओर बढ़े.

श्रीलाट भैरव काशी यात्रा मण्डल के सदस्यों ने भी फाल्गुन कृष्ण पक्ष के प्रदोष काल में ज्ञानवापी मुक्ति के संकल्प संग यात्रा प्रारम्भ किया. संकल्प के दौरान सभी ने सामूहिक रूप से ज्ञानवापी में भगवान आदिविश्वेश्वर का दर्शन शीघ्र भक्तों को प्राप्त हो इसकी कामना की. भाल पर भस्‍म की त्रिपुंड लगाए, नंगे पांव, मार्ग पर्यंत डमरू नाद, हर हर महादेव शम्भू काशी विश्वनाथ गंगे आदि शिव भजनों का गान करते हुए श्रद्धालु आस्था के रंग में सराबोर अपने गंतव्य स्थान की ओर चले जा रहे थे.

डीजे की धुन पर थिरके शिवभक्‍त

सम्पूर्ण यात्रा मार्ग में महोत्सव का स्वरूप देखने को मिला. कोई हर हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष किये, तो कोई मौन हुए सांसों की माला में शिव को रमाये, कहीं शिवभक्तों की टोली डीजे की धुन पर थिरकते नजर आ रहे थे. जगह-जगह यात्रियों के लिए सहायता शिविर व सेवा कैम्प लगाए गए थे. यात्री अपने आवश्यकतानुसार दवा, दूध, जल, फलाहार, भांग-ठंडई इत्यादि का सेवन करते उमंग में चल रहे थे.

80 किलोमीटर का पंचक्रोशी मार्ग

एकदिवसीय इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु लगभग 80 किलोमीटर का रास्ता तय करते हुए प्रथम पड़ाव कंदवा स्थित कर्दमेश्वर महादेव, द्वितीय भीमचण्डी स्थित नरकडी अवतार महादेव, तृतीय रामेश्वर महादेव, चतुर्थ स्थान पंच शिवाला (पांचों पंडव), पांचवा और अंतिम पड़ाव कपिलधारा स्थित वृषभद्जेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन कर जौ विनायक दर्शन करतें हैं.फिर पुनः मणिकर्णिका घाट पर संकल्प पूर्ण करते हैं.

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यात्रा कर रहे शिवम अग्रहरि ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि अद्भुत अनुभूति कराने वाली इस यात्रा में हर कोई शिवस्वरूप माना जाता है. इस निमित्त यात्रा हर व्यक्ति एक दूसरे को भोले नाम से ही संबोधित करते हैं. यह यात्रा काशी के कंकड़-कंकड़ में शंकर का सुखद एहसास कराती है. यात्रा के माध्यम से शिव को अत्यंत प्रिय पौराणिक नगरी अविमुक्त क्षेत्र काशी की समग्र परिक्रमा करना परम् सौभाग्य की बात है.

 

 

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