सुप्रसिद्ध कवि श्रीप्रकाश शुक्ल के काव्य संग्रह ‘रेत में आकृतियां‘ के पेपरबैक संस्करण का लोकार्पण बीएचयू के हिंदी विभाग के आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार में सोमवार को हुआ. समारोह की अध्यक्षता कर रहे ग़ज़लकार और हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ अनूप ने कहा कि साहित्य में कुछ मूल्य होते हैं जो अपने सातत्य में चलते हुए हमारे साथ हमेशा बने रहते हैं. आने वाला कोई भी नया रचनाकार इन मूल्यों से बिल्कुल कटकर आगे नहीं बढ़ सकता. इस पुस्तक में ऐसे मूल्यों की झलक मिलती है जो परम्परा से चली आ रही है. श्रीप्रकाश शुक्ल ने बखूबी उन परम्पराओं को न केवल ग्रहण किया है बल्कि उसे नवीनता प्रदान करने और कुछ नया रचने में भी सफल हुए हैं.
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पुस्तक में इतिहास, दर्शन और संस्कृति का हुआ इस्तेमाल
कवि श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि लंबे समय बाद भी यदि आपको किसी खास कृति से बार-बार याद किया जाय तो जरूर उस कृति में विशेषता होती है, कुछ ऊर्जा होती है जो न केवल पाठकों को बार-बार आकर्षित करती है बल्कि रचनाकार भी मुड़कर कई बार उस ओर जाता है. इतिहास, दर्शन और संस्कृति का खूब इस्तेमाल इस पुस्तक में किया गया है जिसको पुस्तक की भूमिका में डॉ. विंध्याचल यादव ने बखूबी रेखांकित किया है. प्रो.शुक्ल ने कहा कि इन कविताओं पर शैवागम दर्शन का गहरा प्रभाव है उसको भूमिका में ठीक से पहचाना गया. मैंने इस संग्रह में आत्मलय से अधिक आत्मविसर्जन की कोशिश की है और यह स्थिति जब होगी तभी व्यक्ति समष्टिगत चित्त के नजदीक होगा.
दार्शनिकता के साथ आध्यात्मिकता भी
प्रतिष्ठित मूर्तिकार व रामछाटपार न्यास के अध्यक्ष मदनलाल ने न्यास द्वारा हर वर्ष 19 जनवरी को रेत में बनाई जाने वाली आकृतियों के इस संग्रह पर प्रभावों की बात की. कहाकि इस संग्रह में दार्शनिकता के साथ आध्यात्मिकता भी है जो हमारे जीवन को गंगा से जोड़ती है. आलोचक प्रो.कृष्णमोहन सिंह ने कहा कि किसी भी रचनाकार के लिए उसकी रचना गहरी संवेदना पैदा करने वाली चीज है,. उसकी रचना का अनुभव किसी न किसी रूप में कविता में आता है. इस संग्रह के माध्यम से रेत में उभरी आकृतियों तक रचनाकार पहुंचा है.
नदी, नाव, रेत, नमी और निठारी कांड
वरिष्ठ आलोचक प्रो. कमलेश वर्मा ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल इस संग्रह में बनारस को समझने की कोशिश करते हैं,. यह किताब बहुत बड़ा रूपक गढ़ती है, जिसमें दार्शनिकता का पक्ष गहरे से शामिल है और इस पुस्तक के केंद्र में रेत है. उन्होंने कहाकि रेत से जुड़ी नदी है, नदी पर चलने वाली नाव है, रेत में आकृतियां उभारने वाले कलाकार और उनकी नमी है और उनपर निठारी कांड जैसे वीभत्स प्रकरण उभरे हैं. इन आकृतियों में कुछ प्राकृतिक हैं तो कुछ कृत्रिम. युवा आलोचक डॉ.विंध्याचल यादव ने कहा ‘रेत में आकृतियां‘ संग्रह में बनारस के एक अलग स्पेस उभरकर सामने आता है. कविता में श्रीप्रकाश शुक्ल बनारस की सांस्कृतिक बुनाई करते हैं. वे बनारस के एक वैकल्पिक भूगोल तलाशने में सफल हुए हैं.
कुलगीत के बाद हुआ समापन
कार्यक्रम का संचालन डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने, धन्यवाद ज्ञापन डॉ.नीलम कुमारी और स्वागत वाणी प्रकाशन समूह की निदेशक अदिति माहेश्वरी ने किया. कार्यक्रम में खुशबू कुमारी, अलका कुमारी और निवेदिता ने कुलगीत की प्रस्तुति दी. इसके बाद समापन हुआ. समारोह में प्रो. बलराज पाण्डेय, प्रो.तरुण कुमार, प्रो.के.एम. पाण्डेय, सुनीता शुक्ल, प्रो.सुचिता वर्मा, प्रो.नीरज खरे, प्रो.प्रभाकर सिंह, डॉ शिल्पी, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. लहरीराम मीणा, डॉ. राजकुमार मीणा, डॉ. धीरेंद्र चौबे, डॉ. प्रियंका सोनकर राधाकृष्ण गणेशन, रवि अग्रहरि, शबनम खातून समेत छात्र-छात्राओं और शोधार्थी रहे.