बाहर दबिश के लिए दूसरे की रहम-रकम पर निर्भर पुलिस

पुलिस वालों को अगर शहर से बाहर दबिश देने या किसी सरकारी काम पर जाने के लिए दूसरे की रहम और रकम पर निर्भर रहना पड़ता है

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पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह संसाधनों की कमी हो सकती है। पुलिस वालों को अगर शहर से बाहर दबिश देने या किसी सरकारी काम पर जाने के लिए दूसरे की रहम और रकम पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे इतर फिर थानों में खड़े वाहनों का प्रयोग किया जाता है। कुछ ऐसा ही गोमती नगर केस में पुलिस ने किया। हालांकि इस तरह के मामलों में अधिकारी कार्रवाई तो कर देते हैं लेकिन संसाधनों की कमी पर कोई ध्यान नहीं देता।

महीने भर 210 लीटर डीजल में चलती है थाने की गाड़ी-

लखनऊ पुलिस में पेट्रोलिंग के लिए थानों के चार पहिया वाहन के लिए एक महीने में 210 लीटर डीजल मिलता है। इसमें औसतन 20 दिन ही पेट्रोलिंग संभव है। ऐसे में बाकी के 10 दिन किसी तरह से मैनेज किए जाते हैं।

सरकारी काम से शहर से बाहर जाने के लिए वाहनों को कोई व्यवस्था नहीं है। कहने को तो पुलिस लाइंस से वाहनों की व्यवस्था है लेकिन संख्या कम होने की वजह से वह नाकाफी है। ऐसे में सिपाही और दरोगा अपने इंतजाम से ही शहर के बाहर दबिश या फिर सरकारी काम निपटाते हैं।

खुद रिचार्ज करवाते हैं सरकारी मोबाइल नंबर-

पुलिसकर्मियों को सीयूजी मोबाइल नंबर मिला है। उससे विभागीय लोगों से तो फ्री में बात हो जाती है ​लेकिन किसी और से नहीं। ऐसे में पुलिसकर्मियों को खुद ही अपनी जेब से महीने में कम से कम एक से डेढ़ हजार रुपये का रीचार्ज करवाना पड़ता है।

स्टेशनरी के लिए कम पड़ता है बजट-

सीसीटीएनएस प्रोजेक्ट लांच होने के बाद से थानों पर स्टेशनरी का सामान मिलने लगा है लेकिन वह भी पूरा नहीं पड़ता है। कभी इंक खत्म हो जाती है तो कभी पेपर। थानेदारों को अपने स्तर से इन चीजों को मैनज करना होता है।

पुलिस सूत्रों की मानें तो सिर्फ लखनऊ में साल में स्टेशनरी के लिए एक से डेढ़ करोड़ रुपये के बजट की जरूरत होती है। इसी तरह से लावारिस लाश के अंतिम संस्कार, थाने आने जाने वालों की आवभगत, विवेचना के लिए आने जाने और गुमशुदा लोगों की तलाश जैसे कामों के लिए भी थाने-कोतवालियों को मिलने वाला फंड काफी कम पड़ता है।

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