20 साल बाद फिर से खुली चार RSS कार्यकर्ताओं के मर्डर की फाइल

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त्रिपुरा की भाजपा सरकार करीब 20 साल पुराने एक मामले की फाइल दोबारा खोलने जा रही है। दरअसल इस मामले में 4 आरएसएस प्रचारकों की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी। इन हत्याओं के आरोप नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा पर लगे थे, जिसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ था, लेकिन तत्कालीन सरकार में इस मामले पर खास प्रगति नहीं हुई।

मामले की जांच फिर से करायी जा रही है

अब राज्य में भाजपा की सरकार बनने पर 20 साल पुराने इस मामले की जांच फिर से की जाएगी। राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन किया है।टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान त्रिपुरा के सीएम बिप्लब देब ने बताया कि ‘इस मामले के पीछे गहरी साजिश लगती है, इसलिए एसआईटी का गठन कर इस मामले की जांच फिर से करायी जा रही है। एसआईटी का नेतृत्व इंस्पेक्टर कमलेन्दु भौमिक को सौंपा गया है, जो कि इस मामले से अच्छी तरह से परिचित हैं।’

हत्या के पुराने मामलों की जांच फिर से करायी जाएगी

बता दें कि बीते हफ्ते ही राज्य सरकार ने 1993 में मारे गए तत्कालीन कांग्रेस पंचायत चीफ अतीश चौधरी की हत्या के मामले की भी जांच शुरु करायी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अतीश चौधरी की हत्या में सीपीएम कैडर का हाथ था, लेकिन इसके बावजूद मामले की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई। उल्लेखनीय है कि भाजपा ने त्रिपुरा चुनाव प्रचार के दौरान ही वादा किया था कि यदि भाजपा की सरकार बनी तो आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के पुराने मामलों की जांच फिर से करायी जाएगी।

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क्या है मामलाः बता दें कि आरएसएस के प्रचारक श्यामल सेनगुप्ता (जोनल जनरल सेक्रेटरी वेस्ट बंगाल, असम और नॉर्थ ईस्ट), सुधामय दत्ता (एरिया इंचार्ज, अगरतला), दिनेन्द्र नाथ डे (दक्षिण असम के प्रचारक), शुभांकर चक्रबर्ती (जिला प्रचारक) का 6 अगस्त, 1999 को नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के सदस्यों ने अपहरण कर लिया था।

अपहरणकर्ताओं के बीच बातचीत बंद हो गई

नवंबर, 2000 तक आरएसएस अपने कार्यकर्ताओं के सकुशल वापसी के लिए अपहरणकर्ताओं के संपर्क में थी। लेकिन जब आरएसएस को लगा कि उसके कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है, इसके बाद आरएसएस और अपहरणकर्ताओं के बीच बातचीत बंद हो गई। आरएसएस ने अपने प्रचारकों की हत्या के मामले में कई बार स्वतंत्र जांच की मांग की गई, लेकिन तत्कालीन वामपंथी सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया था। अब जब त्रिपुरा में भाजपा सरकार बन गई है तो इस मामले की फाइल फिर से खोली गई है।

जनसत्ता

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