स्तन पकड़ना रेप ही… हाईकोर्ट के फैसले पर SC ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एक विवादित फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें HC ने कहा था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप या अटेम्प्ट टु रेप नहीं है. हाईकोर्ट के आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज की संवेनशीलता को देखकर दुख हुआ, जिन्होंने यह आदेश दिया.

जस्टिस गवई और मसीह की बेंच ने की सुनवाई…

बता दें कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई और मसीह की बेंच ने सुनवाई की. बेंच ने कहा, “हाईकोर्ट के ऑर्डर में की गई कुछ टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय नजरिया दिखाती हैं.” सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा है.

बेंच ने कहा ” यह बहुत गंभीर मामला है और जिस जज ने यह फैसला दिया, उसकी तरफ से बहुत असंवेदनशीलता दिखाई गई. हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी “.

जानें क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश…

बता दें कि कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता है.

जनवरी 2022 का है मामला…

गौरतलब है कि जिस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई की है का मामला जनवरी 2022 का है. जिसमें उत्तर प्रदेश के कासगंज की एक महिला ने कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी. उसने आरोप था लगाया कि नवंबर 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं. वहां से जब वह अपने घर लौट रही थी तभी रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए.

पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही. मां ने उस पर भरोसा करते हुए बेटी को उसके बाइक पर बैठा दिया, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया. आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी.

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सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

गौरतलब है कि ऐसे ही एक मामले में SC ने बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच का फैसला बदल दिया था. जिसमें कहा गया था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा. इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क.

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यह था बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला…

बता दें कि उस समय बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला दिया था जिसमें यौन उत्पीड़न के एक आरोपित को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते. हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया.