जन्मदिन विशेष : इन्हें कहा जाता है आधुनिक भारत का ‘विश्वकर्मा’
भगीरथी कहे या आधुनिक भारत का विश्वक्रर्मा इतने उपनाम शायद ही किसी के रहे होंगे। जी हां हम बात कर रहे हैं देश के महान इंजीनियर प्राप्तमोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की। आज विश्वेश्वरैया जी का जन्मदिन है। उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में आइये आपको बताते है उनसे जुड़ी कुछ बातें। विश्वेश्वरैया जी भारत रत्न से भी नवाजे जा चुके है। इतना ही नहीं उन्हें कर्नाटक का भगीरथ भा कहा जाता है।
जन्म तिथि को ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया गया था
अपने समय के बहुत बड़े इंजीनियर, वैज्ञानिक और निर्माता के रूप में देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को भारत ही नहीं, वरन विश्व की महान प्रतिभाओं में गिना जाता है।एक सौ एक वर्ष का यशस्वी जीवन जीने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया सदैव भारतीय आकाश में अपना प्रकाश बिखेरते रहेंगे। भारत सरकार द्वारा 1968 ई. में डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जन्म तिथि को ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया गया था।
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अधोसंरचना निर्माण के अनेक कार्य हो रहे हैं
तब से हर वर्ष इस पुनीत अवसर पर सभी भारतीय अभियंता एकत्रित होकर उनकी प्रेरणादायिनी कृतित्व एवं आदर्शो के प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित कर अपने कार्य-कलापों का आत्म विमोचन करते हैं और इसे संकल्प दिवस के रूप में मनाने का प्रण लेते हैं। संकल्प अपने दायित्वों एवं कर्तव्यों का समर्पित भाव से निर्वहन करते हैं।भारत की आज़ादी के बाद नये भारत के निर्माण और विकास में प्रतिभावान इंजीनियरों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गांव एवं शहरों के समग्र विकास के लिए सड़कों, पुल-पुलियों और सिंचाई जलाशयों सहित अधोसंरचना निर्माण के अनेक कार्य हो रहे हैं।
विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्म स्थान से ही पूरी की
हमारे इंजीनियरों ने अपनी कुशलता से इन सभी निर्माण कार्यो को गति प्रदान की है। राज्य और देश के विकास में इंजीनियरों के इस योगदान के साथ-साथ ‘अभियंता दिवस’ के इस मौके पर ‘भारतरत्न’ सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की प्रेरणादायक जीवन गाथा को भी याद किया जाता है।विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर, जो कि अब कर्नाटक में है, के ‘मुद्देनाहल्ली’ नामक स्थान पर 15 सितम्बर, 1861 को हुआ था। बहुत ही ग़रीब परिवार में जन्मे विश्वेश्वरैया का बाल्यकाल बहुत ही आर्थिक संकट में व्यतीत हुआ था। उनके पिता वैद्य थे। वर्षों पहले उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के ‘मोक्षगुंडम’ नामक स्थान से मैसूर में आकर बस गये थे। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्म स्थान से ही पूरी की।
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पूना के ‘साइंस कॉलेज’ में दाखिला लिया
आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के ‘सेंट्रल कॉलेज’ में दाखिला लिया। लेकिन यहाँ उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें ट्यूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बी.ए. की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के ‘साइंस कॉलेज’ में दाखिला लिया। 1883 की एल.सी.ई. व एफ.सी.ई. (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र की सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया था।दक्षिण भारत के मैसूर, कर्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का अभूतपूर्व योगदान रहा है।
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उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई
तकरीबन 55 वर्ष पहले जब देश स्वंतत्र नहीं था, तब ‘कृष्णराजसागर बांध’, ‘भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स’, ‘मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी’, ‘मैसूर विश्वविद्यालय’, ‘बैंक ऑफ मैसूर’ समेत अन्य कई महान उपलब्धियाँ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के कड़े प्रयास से ही संभव हो पाई। इसीलिए इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहते हैं। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई।
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मैसूर का चीफ़ इंजीनियर नियुक्त किया गया
इसके लिए विश्वेश्वरैया ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया। उन्होंने स्टील के दरवाज़े बनाए, जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने मुक्तकंठ से की थी। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है। विश्वेश्वरैया ने ‘मूसा’ व ‘इसा’ नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ़ इंजीनियर नियुक्त किया गया।
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