आज इस मुहूर्त में होगा होलिका दहन, पूजन-विधि भी जानें…

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इस बार होलिका दहन 28 मार्च दिन रविवार यानी फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाएगा। इसके एक दिन बाद यानी 29 मार्च दिन सोमवार को फाल्गुन मास के कष्णा पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंगोत्सव यानी होली का पर्व मनाया जाएगा।

दरअसल, होली का पर्व वैसे तो पौराणिक और धार्मिक मान्यता के स्वरूप में है, मगर इसका सामाजिक महत्व भी है। द्वेष और अहंकार को भुलाकर विभिन्न रंगों में रंगने वाले इस त्योहार को प्रेम और सौहार्द का प्रतीक भी माना जाता है।

यह है शुभ मुहूर्त-

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त कब है ? ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल 28 मार्च दिन रविवार को दिन में एक बजकर 33 मिनट पर भद्राकाल समाप्त होगा, जबकि इस दिन पूर्णिमा तिथि रात में 12 बजकर 40 मिनट तक रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी। ज्योतिषियों के मुताबिक, भद्राकाल समाप्त होने के बाद और पूर्णिमा तिथि में ही होलिका दहन करना शुभ और फलदायक है।

इसको देखते हुए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त इस साल 28 मार्च को सूर्यास्त के वक्त शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात 8 बजकर 41 मिनट तक है। वहीं, पूर्णिमा तिथि आधी रात के बाद सुबह तडक़े 3 बजकर 30 मिनट से 29 मार्च की रात 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगी।

पूजन विधि क्या है और इसे कैसे करें 28 मार्च की सुबह यानी फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को सुबह नहाकर होलिका व्रत का संकल्प करें। दोपहर में होलिका दहन करने वाली जगह को जल से शुद्ध करें। उसमें सूखे उपले, सूखे कांटे और लकडिय़ां डालें। शाम को शुभ मुहूर्त शुरू होने के बाद यानी 6 बजकर 21 मिनट के बाद से 8 बजकर 41 मिनट के बीच दो घंटे 20 मिनट की इस अवधि में कभी भी उसकी पूजा करें।

इन बातों का रखे ध्यान-

नवविवाहित महिलाओं को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए होलिका दहन और पूजन करते वक्त सिर पर कोई कपड़ा जरूर रखें। नवविवाहित महिलाओं और सास-बहु को एक साथ होलिका दहन नहीं देखना चाहिए। होलिका दहन और पूजन से पहले अक्षत, गंध, फूल, शुद्ध जल, कच्चा सूत, माला, रोली, गुड़, गुलाल, रंग, नारियल, गेहूं-जौ की बालियां और मूंग रख लें।

होलिका दहन स्थल पर पूरब या उत्तर की दिशा में मुंह करके पूजा करना चाहिए। पूजा के वक्त गंध, धूप, फूल से होलिका की पंचोपचार विधि शुरू करना चाहिए। इस दौरान पितरों और परिजनों के नाम से बडगुल्ले की एक-एक माला होलिका को समर्पित करना चाहिए। इसके बाद होलिका में अग्रि प्रज्जवलित करें।

पूजा के दौरान ये कार्य करना बेहतर होगा

इस दौरान होलिका के पास और आसपास के मंदिर में दीया जलाएं। पूजन के दौरान होलिका में कपूर डालना भी श्रेयस्कर रहता है, क्योंकि होलिका के जलते समय कपूर का धुंआ वातावरण की शुद्धता और पवित्रता को बढ़ाता है। इसके साथ ही शुद्ध जल और शेष पूजा सामग्री को एक-एक कर होलिका में अर्पित करें। इस बार होलिका दहन के दौरान भद्राकाल नहीं रहेगा।

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