परिवार के लिए नौकरी छोड़ संवारी सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी

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अच्छे काम की शुरुआत करने के लिए बहुत ज़्यादा पैसों की नहीं, जी-जान की पहल की ज़रुरत होती है। ये कहानी एक ऐसी औरत की है जिसे परिवार की ज़िम्मेदारी के लिए नौकरी छोड़नी पड़ी, लेकिन उन्होंने बच्चों को पढ़ाना नहीं छोड़ा। आज उन्होंने बहुत से बच्चों की ज़िंदगी बना दी है।’मैंने 15 सालों तक बतौर प्राइमरी स्कूल टीचर काम किया। अपने काम से बेहद प्यार था। बढ़ती ज़िम्मेदारियों और बीतते वक़्त के साथ मैं काम और घर के बीच सामंजस्य बैठाने में संघर्ष कर रही थी।

शुरुआती पेपरों में आराम से पास हो गया

फिर आखिरकार तीन बेटों और घर संभालने के लिए टीचर की नौकरी छोड़ने का फैसला लिया। घर पर रहने लगी तो समझ नहीं आता था, क्या करूं। मेरे सभी सवालों के जवाब ने दवाज़े पर दस्तक दी। उसी दौरान घर के काम में मेरी सहायिका अपने बेटे के लिए ट्यूशन अरेंज न कर पाने की वजह से बेहद पेरशान थी। मैंने उसे पढ़ाने के मौक़े को हाथ से जाने नहीं दिया। घरेलू सहायिका के बेटे को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। जिसके बाद वो अपने शुरुआती पेपरों में आराम से पास हो गया।

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उसके लिए मुझे कुछ अलग से मेहनत नहीं करनी पड़ी। मैंने उसे सिखाया, अपनी नॉलेज का इस्तेमाल कैसे करना है। वक्त के साथ उसने सब नैचुरल तरीके से सीखा। इस बच्चे की प्रोग्रेस के बाद मैंने अपने आसपास के बहुत से घरेलू सहायकों से कहा कि वे अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए मेरे पास भेजें। मैंने सभी को बिना फीस के पढ़ाया। ये बच्चे ऐसे परिवारों से आए जहां 8×10 के कमरे में परिवार के 10 मेंबर रहते हैं। उनके पास अपने घर में बैठकर पढ़ने की जगह तक नहीं थी। क्लास हो या न हो, उन्हें मेरे घर में एक शांति भरा कोना मिल जाता था। जहां बैठकर वे अपने आप पढ़ या होम वर्क कर सकते थे। मैंने उन्हें वो स्किल्स देने की कोशिश की, जो ज़िंदगी में उनके काम आए।

उसके पिता उनकी ज़रुरतें पूरी नहीं कर पाते थे

उन्हें ख़ुद को प्रेज़ेंट करना, समझदारी और कॉन्फिडेंट के साथ बोलना और विनम्र बने रहना सिखाया। हर क्लास के बाद मैं उनसे उनके ख़्वाबों के बारे में बातें करती, जो उनके मक़सद को निखारने में मदद करतीं। मुझे एक छोटा सा लड़का आज भी याद है। वो अपने पिता की तरह टेलर बनना चाहता था। लेकिन उसे फिक्र इस बात की थी कि उसके पिता उनकी ज़रुरतें पूरी नहीं कर पाते थे। सभी अपने ख़्वाबों को पूरा करने के लिए अलग-अलग रास्तें ढूंढते हैं। आज वो छोटा सा बच्चा 21 साल का हो गया है और उसकी अपनी दुकान है, जिसे वो जल्दी ही बुटीक में बदलेगा।

फिर उसे संभालने में सारी क़ायनात लग जाती है

वो आज भी मुझसे हर दिन मिलने आता है। उससे मिलकर कितना अच्छा लगता है, इस बात को अल्फ़ाज में बयां नहीं किया जा सकता। उस एक स्टूडेंट से बच्चों को पढ़ाना शुरू करने से लेकर आज मेरे पास ऐसे 30 स्टूडेंट्स हैं। वे सभी मुझे ‘बा’ बुलाते हैं। पिछले पांच सालों से हम सब एक परिवार हैं। मैं उन सभी को अपनी बचत से एक बार देश में कहीं भी घुमाने ले जाती हूं। वे घूमते हैं, नई नई चीज़ें देखते हैं, सीखते हैं और ख़ूब हंसते हैं। मैं हर साल उनके साथ वक्त बिताने, घूमने जाने के लिए बचत करती हूं.बेहतर काम की शुरुआत के लिए बहुत ज़्यादा पैसों की नहीं, एक छोटी सी पहल की ज़रुरत होती है। बस जब भी वो पहला क़दम रखो तो जी-जान से रखना। फिर उसे संभालने में सारी क़ायनात लग जाती है।

(ये कहानी Seniority.in के कैलेंडर ‘जज़्बा 2018’ के लिए कवर की 12 प्रेरणादायक वरिष्ठ नागरिकों की कहानी में से एक है. इसे फेसबुक पेज Humans of Bombay ने भी अंग्रेजी में शेयर किया है.)

साभार-न्यूज18)

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