टाइटेनिक आज के हीं दिन डूबा था
टाइटेनिक एक उच्च तकनीक से बना दुनियां का सबसे बड़ा वाष्प आधारित पानी का जहाज था, जिसके बारे में यह दावा किया गया था कि यह कभी भी नहीं डूब सकता। दिनांक 10 अप्रैल, 1912 को यह इंग्लैण्ड के साउथम्पटन से चला था। इसे अमेरिका की न्यूयार्क सिटी पहुंचना था। जहाज के कप्तान थे एडवर्ड स्मिथ। एडवर्ड स्मिथ ने चालक दल को जहाज तेजी से चलाने का निर्देश दिया था। जहाज तेज गति से भाग रहा था, तभी सामने बर्फ की चट्टान आ गयी। यह चट्टान पिछले 1000 सालों से समुद्र में तैर रही थी। इससे बचने के लिए चालक अपनी जहाज का रुख मोड़ लेते थे। टाइटेनिक के चालक दल ने भी यही करने की कोशिश की थी, लेकिन जहाज की गति तेज थी, इसलिए टाइटेनिक का रुख मोड़ना सम्भव नहीं हो पाया। टायटेनिक बर्फ की चट्टान से जा टकराया। उसके अगले भाग में छेद हो गया था।
टाइटेनिक के साथ हीं जल समाधि ले ली थी
टाइटेनिक में तकरीबन 2200 लोग सवार थे(, जिनमें से करीबन 700 लोगों को हीं बचाया जा सका। शेष तकरीबन 1500 लोगों ने टाइटेनिक के साथ हीं जल समाधि ले ली थी। मरने वालों में ज्यादातर पुरुष थे। इसका कारण था कि पहले स्त्रियों व बच्चों की बचाने की प्राथमिकता दी गयी थी। इस वजह से अंत में पुरुष ज्यादा संख्या में बच गये थे, जिन्हें बाध्यता मूलक जल समाधि लेनी पड़ी। जहाज 14 अप्रैल 1912 के दिन 11:40 रात्रि पर बर्फ की चट्टान से टकराया था और 15 अप्रैल 1912 को 2:20 की रात्रि को वह जल समाधि ले चुका था। उसके डूबने में मात्र 3 घंटे लगे थे। यह शांति कालीन सबसे बड़ी समुद्री आपदा थी। जहां जहाज डूबा, वहां के पानी का तापमान ( -) 2 डिग्री सेन्टीग्रेड था। ऐसे ठंडे पानी में कोई भी 20 मिनट से ज्यादा देर तक जीवित नहीं रह सकता था।
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लोगों में भय का संचार न हो, इसलिए बैंड पार्टी लगातार बैंड बजाए जा रही थी। इसके बावजूद लोग डर रहे थे। अफरा तफरी का माहौल हो गया था। पास में हीं कैलीफोर्निया नाम का जहाज था, पर उससे संचार व्यवस्था कायम नहीं हो सकी। संचार व्यवस्था कायम हुई कारपैथिया नाम के जहाज से, जो तकरीबन टाइटेनिक से 4 घंटे की दूरी पर था। कारपैथिया के कप्तान को जरा भी विश्वास नहीं हुआ कि टाइटेनिक डूब रहा है, क्योंकि ऐसा प्रचार हीं किया गया था कि टाइटेनिक कभी डूब हीं नहीं सकता। फिर भी कारपैथिया के कप्तान ने जहाज टाइटेनिक की तरफ बढ़ाया। जब वे पहुंचे तब तक टाइटेनिक डूब चुका था। वहां केवल जीवन रक्षक नावों में तकरीबन 700 लोग जीवन बचाने की जद्दोजहद करते हुए मिले। उन्हें कारपैथिया में चढ़ाया गया। उन्हें मेडिकल एड प्रदान किया गया। कारपैथिया वहां तकरीबन 3 घंटे तक रहा।
एडवर्ड स्मिथ भी टायटेनिक के साथ डूब मरे थे
इसके बाद वह बाकी बचे 700 लोगों को लेकर चल पड़ा था। इस जहाज में 9 एशियाई भी सवार थे, जिनमें से 7 बच गये थे। गौरतलब है कि जिस टाइटेनिक जहाज के बारे में इतना बढ़ा चढ़ा कर बताया गया था, उसमें केवल 1178 लोगों को हीं बचाने के लिए जीवन रक्षक नावें मौजूद थीं। जहाज के कप्तान एडवर्ड स्मिथ पर भी आरोप था कि वे अपने केविन में बैठे शराब पीते रहे और अपने मातहतों को बचाव कार्य करने का निर्देश दे दिया था। एडवर्ड स्मिथ भी टायटेनिक के साथ डूब मरे थे। लेकिन उनका यह कृत्य जघन्यतम था। उन्हें तेज जहाज चलाने का भी निर्देश नहीं देना था। टायटेनिक पर कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन ये वैश्विक स्तर की फिल्में हैं जिनका असल त्रासदी से दूर दूर का भी नाता नहीं है। सुना है समुद्र की तलहटी में मौजूद टायटेनिक के मलवे को एक प्रकार के वैक्टीरिया खा रहे हैं, जो कुछ सालों में उसे चट कर जाएंगे। अच्छा है कप्तान की गलती के परिणामस्वरुप हुए इस हादसे की कोई निशानी नहीं बचनी चाहिए। हम इस हादसे को एक भयंकर दुःस्वप्न की तरह भूल जाना चाहते हैं।
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