जब वे एक शरीर को निर्वस्त्र देखेंगे तो…

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किसी रहस्यमयी तहख़ाने से आई यह रिपोर्ट ज़हन में समा गई है। हम किसी पेशे को कई कारणों से चुनते हैं, मगर कई बार उसे पेशे में इतना रच-बस जाते हैं कि चुनने की मजबूरी जीने का कौशल बन जाती है। जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स के छात्रों के लिए ज़िंदा तस्वीर बनकर बैठने वाली लड़कियों की कहानी एक्सप्रेस की पत्रकार प्रिया पिल्लई ने क्या ख़ूब तरीके से कही है।

किसी शरीर का सम्मान करना सीखाया जाता है

किसी पत्रकार को इस स्टोरी को इस लिए भी पढ़नी चाहिए कि उसे अगर ऐसी स्टोरी मिलती तो कैसे लिखता। हमारे समाज में तहख़ानों में औरतों की अनेक कहानियां हैं, मगर कला के लिए ख़ुद को निर्वस्त्र समर्पित कर देना महानत योगदान है। नए नए छात्रों को किस तरह से किसी शरीर का सम्मान करना सीखाया जाता है, वह अपने आप जीवन का अध्याय है।

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कितने ही मर्दों को यह सलीका जीवन भर नहीं आ पाता है। जे जे स्कूल ऑफ आर्ट के छात्रों को तैयार किया जाता है कि जब वे एक शरीर को निर्वस्त्र देखेंगे तो उनके आचार व्यवहार क्या होंगे। मगर जिसे निर्वस्त्र होना होता है, उसे कोई आर्ट स्कूल तैयार नहीं करता है। उसे उसकी ग़रीबी तैयार करती है मगर बाद में वह अपने काम को कला के लिए ज़रूरी समझने लगती है। बेशक यह मुश्किल और महान जीवन यात्रा है। इन्हीं किरदारों की कहानी थी फिल्म न्यूड जिसे गोवा के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में नहीं दिखाने दिया गया।

सोच रहा हूं पब्लिक कमेंट का विकल्प ही बंद कर दूं

शायद किसी संस्कृति को ख़तरा था, उस फ्राड संस्कृति को शायद यह नहीं पता था कि उसके भीतर के ग़रीब कैसे अपने पेट के लिए संस्कृति में योगदान करते हैं, महान बनाते हैं जिनके सामने आने पर उस संस्कृति को लाज आती है। आप एक्सप्रेस की प्रिया पिल्लई की इस रिपोर्ट को पढ़िएगा। यक़ीनन बेहतरीन रिपोर्ट है। कुछ शुरूआती कमेंट पढ़े हैं, कई लोगों ने बिना पढ़े कुछ भी लिख दिया है। इनका कुछ नहीं हो सकता है। सोच रहा हूं पब्लिक कमेंट का विकल्प ही बंद कर दूं।

                   (नोट- ये लेख रवीश कुमार के फेसबुक पेज से लिया गया है)

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