मिशन 2024: मोदी को हराने निकलीं ये 15 पार्टियां, जानें कौन कितने पानी में?

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लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है, जिसके चलते राजनीतिक दलों ने अपने समीकरण साधने और राजनीतिक गठबंधन बनाना शुरू कर दिया है. इसे देखते हुए बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता के लिए 23 जून को बिहार के पटना में विपक्षी दलों के नेताओं की आम बैठक होने जा रही है. इस बैठक में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की रणनीति पर मंथन होगा. लेकिन सवाल ये है कि पीएम मोदी के विजयरथ को रोकने के लिए उतरे विपक्षी दलों की राजनीतिक ताकत कितनी है और वो एकजुट होकर बीजेपी को कैसे हरा पाएंगे?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की मुहिम का बीड़ा उठाया है और उनके नेतृत्व में 15 विपक्षी दलों के प्रमुख पटना में बैठक में हिस्सा ले रहे हैं. बैठक में कांग्रेस, राजद, जदयू, झामुमो, सपा, शिवसेना, राकांपा, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, द्रमुक, टीएमसी, सीपीआई, सीपीआई-एमएल, सीपीएम और आम आदमी पार्टी हिस्सा ले रही है. यूं तो विपक्षी एकता के मिशन में उत्तर से दक्षिण तक राजनीतिक दल शामिल हो रहे हैं, लेकिन सबका अपना-अपना राजनीतिक एजेंडा है.

विपक्ष कितनी सीटों पर कर पायेगा दखल ?

अगर नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करने में सफल रहे तो वह बीजेपी को करीब 450 सीटों पर आमने-सामने की टक्कर दे सकते हैं. विपक्षी खेमे में खड़े क्षेत्रीय दलों के राजनीतिक आधार वाले राज्यों की सीटों पर नजर डालें तो 10 राज्यों में 269 संसदीय सीटें हैं. लेकिन उसमें से 38 सीटों पर कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है. इस तरह 231 सीटों पर क्षेत्रीय दल बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

वहीं, कांग्रेस 208 सीटों पर बीजेपी से सीधी टक्कर में है. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने देश की कुल 543 संसदीय सीटों में से केवल 421 सीटों पर चुनाव लड़ा. कांग्रेस 421 सीटों में से 52 सीटें जीतने में सफल रही और लगभग 200 लोकसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रही.

क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक शक्ति…

विपक्षी एकता में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों की ताकत पर नजर डालें तो यूपी से लेकर तमिलनाडु तक करीब 10 राज्य हैं. विपक्षी खेमे में खड़ी सपा का आधार यूपी में है, जहां 80 लोकसभा सीटें आती हैं. एनसीपी, शिवसेना (उद्धव गुट) का आधार महाराष्ट्र में है, जहां 48 लोकसभा सीटें हैं. इसी तरह, तमिलनाडु में डीएमके के प्रभाव वाली 42 लोकसभा सीटें, पश्चिम बंगाल में टीएमसी के प्रभाव वाली 42, जेएमएम के गढ़ झारखंड में 14, दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रभाव वाली 7 और पंजाब में 13 लोकसभा सीटें हैं.

इसके अलावा केरल में वाम दलों के प्रभाव वाली 20 संसदीय सीटें हैं, जबकि बिहार में राजद और जदयू के प्रभाव वाली 40 लोकसभा सीटें हैं. जम्मू-कश्मीर की 5 सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के प्रभाव में हैं. इस तरह 269 लोकसभा सीटें बनती हैं. हालांकि, केरल में कांग्रेस का सीधा मुकाबला लेफ्ट से है, जबकि अन्य राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से ज्यादा ताकत रखती हैं. इसका मतलब ये नहीं कि कांग्रेस का प्रभाव नहीं है. केरल को छोड़कर बाकी राज्यों की 38 सीटों पर कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला है.

कांग्रेस के राजनीतिक प्रभाव वाली सीटें…

जिन राज्यों में कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है, वहां की सीटों पर नजर डालें तो वो इस प्रकार हैं. गुजरात में 26, राजस्थान में 25, असम में 14, छत्तीसगढ़ में 11, कर्नाटक में 28, मध्य प्रदेश में 29, असम में 14, हरियाणा में 11, उत्तराखंड में 5, हिमाचल में 4, गोवा में 2, मणिपुर में 2, अरुणाचल में 2 इसमें 2 सीटें हैं. इसके अलावा चंडीगढ़-लद्दाख-लक्षद्वीप, अंडमान-निकोबार में एक-एक सीट है. इन पर कांग्रेस मुख्य मुकाबले में है.

कांग्रेस का प्रभाव उन राज्यों में भी है, जहां क्षेत्रीय दल अपना गढ़ मानते हैं. महाराष्ट्र की 14 सीटें, पंजाब की 13 में से 6 सीटें, बिहार की 40 में 6, तमिलनाडु में चार, उत्तर प्रदेश में सात, दिल्ली में पांच, बंगाल की तीन सीटें आती है. इसके अलावा कांग्रेस का तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों से मुकाबला करना पड़ा था.

क्षेत्रीय पार्टियों में कितनी ताकत?

बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए एक साथ आने वाले विपक्षी दलों की ताकत क्या है? 2019 के चुनाव नतीजों की बात करें तो क्षेत्रीय पार्टियों को 97 सीटें मिलीं. यूपी में एसपी-बीएसपी-आरएलडी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसके बाद वह सिर्फ 15 सीटें ही जीत सकीं. एसपी को 5 और बीएसपी को 10 सीटें मिलीं. उसमें से भी सपा को दो सीटों का नुकसान हुआ है और उसके पास केवल तीन सीटें बची हैं. बसपा खुद को विपक्षी एकता से दूर रख रही है.

वहीं, जेडीयू ने बिहार में 16 सीटें जीतीं, लेकिन एनडीए में रहते हुए. महाराष्ट्र में आधार वाले एनसीपी पांच सीटें जीत सकी, जबकि शिवसेना (उद्धव गुट) को 18 सीटें मिलीं, जिनमें से केवल सात सांसद बचे. तमिलनाडु में डीएमके को 24 सीटें मिलीं, जबकि वाम दलों पर नजर डालें तो सीपीएम 2 और सीपीआई तीन सीटें जीतने में सफल रही. जेएमएम 1 और नेशनल कॉन्फ्रेंस 3 सीटें जीतने में सफल रही. इस तरह विपक्षी दलों के पास फिलहाल सिर्फ 86 सीटें बची हैं.

कांग्रेस की ताकत क्या है?

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 421 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि 2014 के चुनाव में 464 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पिछले चुनाव में कांग्रेस 52 सीटें जीतने में सफल रही थी, जिसमें उसे सबसे ज्यादा सीटें केरल से मिली थीं. इसके अलावा अन्य राज्यों में कांग्रेस सिर्फ एक या दो सीटें ही जीत सकी. हालांकि, कांग्रेस करीब 200 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी. जिन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला था, उनके आंकड़ों पर नजर डालें तो बीजेपी ने 90 फीसदी सीटें जीती थीं और कांग्रेस सिर्फ 10 फीसदी सीटें ही जीत सकी थी. 2014 में भी बीजेपी इसी तरह जीत हासिल करने में सफल रही थी, जिसके चलते कांग्रेस लोकसभा में अपना नेता प्रतिपक्ष नहीं बना पाई थी.

बीजेपी से कैसे मुकाबला करेंगे?

कांग्रेस और विपक्षी दलों की सियासी ताकत को देखते हुए सवाल उठ रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कैसे बीजेपी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोक सकेंगे. इसके लिए विपक्ष इस फॉर्मूले पर आगे बढ़ रहा है कि बीजेपी के खिलाफ वन टू वन फाइट हो, जिसके लिए 475 सीटों पर विपक्ष संयुक्त रूप से एक कैंडिडेट उतारना चाहता है. हालांकि, इसके लिए अभी तक न ही कांग्रेस और न ही छत्रप तैयार हो रहे हैं.

कांग्रेस की कोशिश है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कम से कम 300 सीटों पर वह चुनाव लड़े जबकि क्षेत्रीय दल चाहते हैं कि कांग्रेस सवा दो सौ सीट पर ही चुनाव लड़े. इसी तरह क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को बहुत ज्यादा सियासी स्पेस देने के मूड में नहीं है जबकि कांग्रेस चाहती है उसे अलग-अलग राज्यों में चुनाव के लिए सीटें दी जाएं. विपक्षी एकता में कई पेच है और उलझे हुए समीकरण हैं, जिसके चलते ही सवाल उठता है कि कैसे बीजेपी से मुकाबला करेंगे?

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