छोटी के हौंसलों ने किया मलिन बच्चों के भविष्य में उजाला

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कहते हैं न पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते है। इस कहावत को सार्थक कर रही है छोटी। छोटी सिर्फ नाम की ही छोटी हैं। इनके कारनामों का लोहा पूरा गांव मानता है। बिहार की बीस साल की छोटी सिंह राजपूत ने दलित और शोषित वर्ग के लिए जो कार्य किया है इसके लिए सरकार की तरफ से भी उनको पुरस्कृत किया गया है।

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छोटी ने घर घर जाकर शिक्षा के जागरुक किया

हम बात कर रहे है बिहार और झारखंड की मजदूर और मुसहर जाति के दबे कुचे जीवन को व्यतीत करने वाले लोगो के लिए रोशनी की किरण बन के आयी छोटी की। जिसने समाज को आगे लाने का बीड़ा अपने कंधों पर लेकर एक मिसाल कायम की है। मुसहर जाति जो गंदगी, गरीबी अशिक्षा में रहने वाली जाति है। ऐसी जाति के बच्चों के लिए छोटी ने घर घर जाकर शिक्षा के जागरुक किया।

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मजबूत हौसलो वाली छोटी के इरादे आडिग थे

शुरुआती दिनों में तो लोग उनकी सुनने के लिए ही तैयार नहीं होते थे। गाली गलौज से लेकर मारपीट तक हो जाती थी। लेकिन मजबूत हौसलो वाली छोटी के इरादे आडिग थे। बच्चों के माता पिता भद्दी गलियां तक देते थे लेकिन छोटी के प्रयासों ने उनकी सोच में बदलाव किया। आज छोटी के छोटे से कोचिंग सेंटर में तकरीबन 101 बच्चे शिक्षा लेते है।

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छोटी का ये सफर इतना असान नहीं था

छोटी के इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हे स्विट्जरलैंड की वुमेंन वर्ड समिट फाउण्डेशन में उन्हे वुमेन्स क्रिएटिवटी इन रुरल लाईफ अवार्ड से नवाजा गया है। इस पुरस्कार में पैसठ हजार राशि दी जाती है। इतना ही नहीं ये पुरस्कार पाने वाली छोटी सबसे कम उम्र की व्यक्ति है। छोटी का ये सफर इतना असान नहीं था।

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108 बच्चों का नामांकन करने में वे सफल हो पायी है

उन्हे पता था जिस समाज में वो शिक्षा की लौ जलाने की कोशिश कर रहीं है मुश्किलों से भरा होगा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 2014 में उन्होंने अपने गांव में जनकल्याणकारी कार्य की शुरुआत की। एक हजार आबादी वाले इस गांव में अब तक 108 बच्चों का नामांकन करने में वे सफल हो पायी है। उनके इस सराहनीय काम के लिए उनके माता पिता का भी पूरा साथ मिला।

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