अयोध्या ‘राम मंदिर’ पर अहम सुनवाई आज

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आयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर सर्वोच्च न्यायालय की अहम सुनवाई शुक्रवार को होगी। दोपहर 2 बजे जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर की विशेष बेंच सभी पक्षों की शुरुआती दलीलों को सुनेगी। माना जा रहा है कि बेंच आगे होने वाली विस्तृत सुनवाई की तारीख और दायरे तय करेगी।

मीर बाकी ने 1530 में गिरा कर वहां मस्ज़िद बनाई

हिन्दू पक्ष ये दावा करता रहा है कि अयोध्या में विवादित जगह भगवान राम का जन्म स्थान है। जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1530 में गिरा कर वहां मस्ज़िद बनाई। मस्ज़िद की जगह पर कब्जे को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्षों में विवाद चलता रहा। दिसंबर 1949, मस्जिद के अंदर राम लला और सीता की मूर्तियां रखी गयीं। जनवरी 1950 में फैजाबाद कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ। गोपाल सिंह विशारद ने पूजा की अनुमति मांगी। दिसंबर 1950 में दूसरा मुकदमा दाखिल हुआ। राम जन्मभूमि न्यास की तरफ से महंत परमहंस रामचंद्र दास ने भी पूजा की अनुमति मांगी। दिसंबर 1959 में निर्मोही अखाड़े ने मंदिर को अपने कब्ज़े में दिए जाने की मांग की।

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मूर्तियों को हटाने और मस्जिद पर कब्ज़े की मांग की

दिसंबर 1961 में सुन्नी सेन्ट्रल वक़्फ बोर्ड ने याचिका दाखिल कर मूर्तियों को हटाने और मस्जिद पर कब्ज़े की मांग की। अप्रैल 1964 में फैज़ाबाद कोर्ट ने सभी 4 अर्जियों पर एक साथ सुनवाई का फैसला किया। ये सुनवाई बेहद धीमी रफ्तार से चली। 1989 में इलाहबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान की तरफ से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने पूरा मामला अपने पास ले लिया।

 माना कि बाबरी मस्जिद से पहले वहां पर एक भव्य हिन्दू मंदिर था…

हाई कोर्ट ने कहा कि तीन जजों की विशेष बेंच करेगी सभी 5 मामलों की एक साथ सुनवाई करेगी। 2002 में हाई कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।30 सितम्बर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, एस यू खान और डी.वी. शर्मा की बेंच का फैसला आया। बेंच ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की तरफ से विवादित ज़मीन पर कराई गई खुदाई के नतीजों के आधार पर ये माना कि बाबरी मस्जिद से पहले वहां पर एक भव्य हिन्दू मंदिर था। रामलला के कई सालों से मुख्य गुम्बद के नीचे स्थापित होने और उस स्थान पर ही भगवान राम का जन्म होने की मान्यता को भी फैसले में तरजीह दी गई।

साढ़े चार सौ सालों तक एक ऐसी इमारत थी जिसे मस्जिद के रूप में बनाया गया था

हालांकि, कोर्ट ने ये भी माना कि इस ऐतिहासिक तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती की वहां साढ़े चार सौ सालों तक एक ऐसी इमारत थी जिसे मस्जिद के रूप में बनाया गया था। बाबरी मस्जिद के बनने के पहले वहां मौजूद मंदिर पर अपना हक़ बताने वाले निर्मोही अखाड़े के दावे को भी अदालत ने मान्यता दी। हालांकि, हाई कोर्ट ने अपने फैसले में सभी पक्षों के दावों में संतुलन बनाने की कोशिश की लेकिन कोई भी पक्ष इस आदेश से संतुष्ट नहीं हुआ। पूरी ज़मीन पर अपना दावा जताते हुए रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

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