समलैंगिकता अब अपराध के दायरे में नहीं : सुप्रीम कोर्ट

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भारत में अब समलैंगिकता अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 (समलैंगिकता) को अवैध करार दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने दो बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 को खारिज कर दिया है।

धारा 377 को कोर्ट ने कहा मनमाना करार

कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत पसंद को सम्मान देने की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है। देश में रहने वाले व्यक्ति का जीवन का अधिकार मानवीय है, इस अधिकार के बिना सारे बेतुका है।

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पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमें पुरानी धारणाओं को बदलने की जरूरत है। नैतिकता की आड़ में किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।सामाजिक नैतिकता संवैधानिक नैतिकता से ऊपर नहीं है। सामाजिक नैतिकता मौलिक आधार को नहीं पलट सकती। यौन व्‍यवहार सामान्‍य, उस पर रोक नहीं लगा सकते।

याचिकाओं पर महज 4 दिन ही सुनवाई चली थी

इसी साल जुलाई महीने में 377 पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर महज 4 दिन ही सुनवाई चली थी। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो कोर्ट इस बात का इंतज़ार नहीं करेगा कि सरकार उसे रद्द करें।

केंद्र सरकार ने अपना रुख नहीं किया साफ

जुलाई में हुई इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के विवेक पर इस बात को छोड़ते हैं कि वह खुद तय करे कि धारा-377 के तहत दो बालिगों के बीच बनें समलैंगिक संबंध को अपराध मानें या नहीं।साभार

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