बिहार बोर्ड : व्यवस्था में गिरावट या सख्ती का परिणाम
पिछले वर्ष बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बीएसईबी) द्वारा आयोजित 12वीं की परीक्षा का परिणाम जहां ‘टॉपर्स घोटाले’ को लेकर चर्चा में था, वहीं इस वर्ष छात्रों की असफलता को लेकर यह परिणाम चर्चा में है। इस परीक्षा में इस वर्ष मात्र 35 प्रतिशत विद्यार्थी सफल हो सके हैं। इस परीक्षा परिणाम को जहां कई लोग शिक्षा व्यवस्था की गिरावट से जोड़कर देख रहे हैं, वहीं सरकार इस परिणाम को सख्ती का फल बता रही है।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने इंटर के तीनों संकाय कला, विज्ञान, वाणिज्य के परिणाम घोषित कर दिए हैं। इस परीक्षा में तीनों संकायों के कुल 12 लाख 40 हजार 168 परीक्षार्थी शामिल हुए थे, जिनमें से सात लाख 54 हजार 622 असफल हो गए, यानी कुल परीक्षार्थियों में से 64 फीसदी सफल (पास) नहीं हो पाए।
कला संकाय में पिछले साल करीब 44 फीसदी परीक्षार्थी नाकाम रहे थे, जबकि इस साल 61 प्रतिशत छात्रों को निराश होना पड़ा। इसी तरह विज्ञान में साल 2016 में मात्र 33 प्रतिशत बच्चे असफल हुए थे, जबकि इस साल 69.52 फीसदी असफल हुए। वाणिज्य संकाय में स्थिति कुछ बेहतर रही। इस संकाय में 60 हजार 22 छात्रों में से मात्र 25 प्रतिशत छात्र असफल हुए।
जानकारों के अनुसार, 12वीं की परीक्षा में इस तरह की गिरावट 20 वर्ष बाद देखने को मिली है। वर्ष 1997 में 12वीं की परीक्षा में 14 प्रतिशत छात्र सफल हो सके थे। उस समय कहा गया था कि सख्ती के कारण परीक्षा परिणाम में गिरावट आई है। इस वर्ष भी बिहार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ऐसा ही कुछ कह रहे हैं।
बकौल शिक्षा मंत्री, “पहले बिहार परीक्षा में कदाचार के मामले में बदनाम था। इस वर्ष सरकार ने कदाचार मुक्त परीक्षा परिणाम घोषित कर एक बड़ा कदम उठाया है। इस वर्ष जो भी बच्चे सफल हुए हैं, वे कहीं जाएंगे तो सफल होंगे।” उन्होंने स्पष्ट किया कि आठ-दस वर्षो से परीक्षा में कदाचार होता था, इसलिए परीक्षा परिणाम बेहतर होता था।
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पटना कॉलेज के प्रचार्य रहे शिक्षाविद प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी शिक्षा मंत्री के जवाब से इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है, “आज जो राज्य में टॉपर है, उसका भी प्राप्तांक 86 प्रतिशत है, ऐसे में आखिर उसे किस कॉलेज में नामांकन मिलेगा।”
उन्होंने स्पष्ट कहा, “इस परिणाम से बच्चे असफल नहीं हुए हैं, बल्कि यहां की शिक्षा व्यवस्था ‘फेल’ हुई है। सख्ती से परिणाम में इतनी गिरावट नहीं आ सकती। शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है। यह परिणाम राज्य की शिक्षा व्यवस्था का प्रतिबिंब है।” चौधरी कहते हैं कि इसकी जिम्मेजारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शिक्षा मंत्री को लेनी चाहिए।
वैसे, इस बेहद निराशाजनक परीक्षाफल के लिए परीक्षार्थियों ने मूल्यांकन प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराया है। जगत नारायण कलेज, खगौल के कला संकाय की छात्रा प्रिया कुमारी कहती हैं, “हर दिन छह घंटे पढ़ाई करती थीं, सारे सवालों का जवाब भी दिया था, लेकिन ऐसे परिणाम की उम्मीद कभी नहीं की थी। निश्चित ही कॉपी जांच में गड़बड़ी हुई है मैं पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन दूंगी।”
ऐसा ही कुछ मधुबनी के सी़ पी़ सी़ कॉलेज के छात्र राजेश भी मानते हैं। वह कहते हैं, “गणित में 70 अंक आए हैं, जबकि भौतिकी में सिर्फ दो अंक आए हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?” विज्ञान संकाय में टॉपर रही खुशबू भी अपने प्राप्तांक से खुश नहीं है। सिमुलतला आवासीय विद्यालय की छात्रा खशबू कहती हैं, “मुझे टॉपर होने की खुशी है, लेकिन जितने अंक आना चाहिए थे, उतने नहीं आए हैं। मैं पुनर्मूल्यांकन का आवेदन दूंगी।”
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