मोहर्रम : जानें क्यों, चांद देखकर शिया महिलाएं तोड़ देती हैं चूड़ियां
इस्लाम धर्म में मुहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। खासकर शिया मुस्लिम समुदाय इसे गम के महीने के तौर पर मनाता है। इस बार मुहर्रम का चांद 11 सितंबर यानी आज की शाम दिखने की संभावना जताई जा रही है। चांद दिखने के बाद से ही मुहर्रम का महीना शुरू हो जाएगा।
मतभेद के चलते मुहर्रम मनाने में काफी अंतर दिखता है
वैसे तो मुहर्रम का पूरा महीना ही बेहद खास माना जाता है, लेकिन इस महीने का दसवां दिन सबसे खास होता है, जिसे रोज-ए-आशुरा कहते हैं। इस दिन को मुस्लिम समुदाय मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन की शहादत के तौर पर मनाते हैं। मुहर्रम को मुस्लिम समुदाय के शिया और सुन्नी दोनों ही मनाते हैं। लेकिन दोनों के बीच मतभेद के चलते मुहर्रम मनाने में काफी अंतर दिखता है।
रोज-ए-आशुरा के दिन रोजा रखना हराम
शिया समुदाय के लोगों को मुहर्रम की 1 तारीख से लेकर 9 तारीख तक रोजा रखने की छूट होती है। शिया उलेमा के मुताबिक, मुहर्रम की 10 तारीख यानी रोज-ए-आशुरा के दिन रोजा रखना हराम है।
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जबकि सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को रोजा रखते हैं। हालांकि, इस दौरान रोजा रखना मुस्लिम लोगों पर फर्ज नहीं है, लेकिन इसे सवाब के तौर पर रखते हैं। शिया मुस्लिम समुदाय के लोगों के मुताबिक, मुहर्रम का महीना साल-ए-हिजरत का पहला महीना होता है।
सुन्नी मुस्लिम मातम करते हैं और जुलूस निकालते हैं
वहीं, सुन्नी मुसलमान लोगों का मानना है कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नया साल मुहर्रम के महीने से ही शुरू होता है। इसे इस्लामिक पहला महीना भी कहा जाता है। मुहर्रम चांद दिखते ही सभी शिया मुस्लिमों के घरों और इमामबाड़े में मजलिसों का दौर शुरू हो जाता है। इमाम हुसैन की शहादत के गम में शिया और कुछ इलाकों में सुन्नी मुस्लिम मातम करते हैं और जुलूस निकालते हैं।
शिया समुदाय में ये सिलसिला पूरे 2 महीने 8 दिन तक चलता है। मुहर्रम का चांद दिखाई देते ही सभी शिया समुदाय के लोग गम में डूब जाते हैं। शिया महिलाएं और लड़कियां चांद निकलने के साथ ही अपने हाथों की चूड़ियों को तोड़ देती हैं।
वे लाल सुर्ख और चमक वाले कपड़े नहीं पहनते हैं
इतना ही नहीं वे सभी श्रृंगार की चीजों से भी पूरे 2 महीने 8 दिन के लिए दूरी बना लेती हैं। मुहर्रम का चांद दिखने के बाद से ही सभी शिया मुस्लिम पूरे 2 महीने 8 दिनों तक शोक मनाते हैं। इस दौरान वे लाल सुर्ख और चमक वाले कपड़े नहीं पहनते हैं। ज्यादातर काले रंग के ही कपड़े पहनते हैं।
कढ़ाईयों में तली जाने वाली चीजें बनाने से परहेज
मुहर्रम के दौरान शिया समुदाय के घरों में खुशी के पकवान नहीं बनते हैं। जैसे, ज़रदा (मीठे चावल), मिठाइयां, मछली, मुर्गा आदि। खासकर कढ़ाईयों में तली जाने वाली चीजें बनाने से परहेज करते हैं। मुहर्रम के पूरे महीने शिया मुस्लिम किसी तरह की कोई खुशी नहीं मनाते हैं और न उनके घरों में 2 महीने 8 दिन तक कोई शादियां होती हैं। इतना ही नहीं वे न तो किसी अन्य की शादी या फिर खुशी के मौके पर शामिल होते हैं।साभार आजतक
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