दिव्यांग बच्चों ने बनाया बैंक, मिलता है ब्याज मुक्त ऋण

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यह छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा है जहां कई बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता को नक्सलियों ने मार डाला, लेकिन इन बच्चों के हौसले की उड़ान जारी है। इनमें कई बच्चे मानसिक विकार, अस्थिरोग, श्रवणशून्यता अथवा दृष्टिबाधा से दिव्यांग हैं।

यहां ऐसे ही बच्चों ने अपना बैंक बनाया है, जिसका नाम है सक्षम चिल्ड्रन बचत बैंक। इस बैंक में मैनेजर और कैशियर से लेकर सहायक तक का काम दिव्यांग बच्चे ही संभालते हैं। दंतेवाड़ा जिले के जावंगा में छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल पीड़ित बच्चों के लिए एजुकेशन हॅब की स्थापना की है।

यहां दूरदराज के गांवों से करीब 10 हजार बच्चे लाए गए हैं। इस बैंक में बच्चे अपनी स्कॉलरशिप, जेब खर्च के लिए मिली राशि और प्रतियोगिताओं में जीत से मिली राशि जमा करते हैं। बच्चों को ब्याज मुक्त ऋण मिलता है।

1200 बच्चे बने खाताधारक

मुजफ्फरपुर, बिहार के पुरानी बाजार इलाके में आठवीं से बारहवीं तक के छात्र अपना बैंक चला रहे हैं। 14 साल में खाताधारकों की संख्या बढ़कर 12 सौ हो गई है। वर्तमान में बैंक के पास दो लाख 80 हजार रुपये जमा हैं। नो-प्रॉफिट और नो-लॉस की तर्ज पर बैंक काम करता है।

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जेपी के भूदान व सवरेदय आंदोलन में शामिल रहे 72 वर्षीय परमहंस प्रसाद सिंह 1992 से समाजसेवा का काम कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि कचरा चुनने या गैरेज में काम करने वाले बहुत से बच्चे शिक्षा से दूर हैं। वे जो कमाते हैं, उसे नशा, जुआ या फिर अन्य फालतू कामों में खर्च कर देते हैं। ऐसे बच्चों में बचत की आदत डालने और उन्हें शिक्षा से जोडऩे के लिए 2004 में बैंक खोलने की योजना बनाई।

घर-परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूती दी है

मप्र के नक्सल प्रभावित परसवाड़ा क्षेत्र की ग्रामीण आदिवासी महिलाएं अब चार करोड़ की पूंजी वाले अपने ही बैंक की सदस्य हैं। जैविक खेती से चावल और सब्जी उत्पादन में सफलता हासिल कर इन आठ हजार से अधिक महिलाओं ने अपने घर-परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूती दी है। दस-दस रुपए की पूंजी से शुरू हुई बचत 10 साल में चार करोड़ तक पहुंच गई है।

महिलाएं अपने इस बैंक से ही कर्ज लेती हैं, वह भी बिना ब्याज पर और इसी में पैसे जमा करती हैं। वह अपनी उपज इकठ्ठा करके एक साथ बाजार में भेजती हैं। 152 गांवों के 175 समूहों में आठ हजार महिलाएं एक-दूसरे की मदद से आगे बढ़ रही हैं। 400 प्रशिक्षित महिलाएं गांव-गांव जाकर समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। करीब साढ़े चार हजार महिलाएं जैविक कृषि कर रही हैं। मिर्च, टमाटर से लेकर अन्य सब्जियों की खेती कर रही हैं। साभार दैनिक जागरण

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