अंतिम चरण का युद्ध काशी पर टिकी

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गिले शिकवे दूर कर मोदी के रोड शो में शामिल हुए कार्यकर्ता
अंतिम चरण के 54 सीटों पर होने वाले सियासी संग्राम “मिशन 54” के लिए 54 घंटे तक बनारस में डटे रहे पीएम
अखिलेश, राहुल व प्रियंका ने मोदी के गढ में बडी रैली व रोड शो कर दी चुनौती

अरुण मिश्र:

वाराणसी। यूपी विधानसभा अंतिम चरण में होने वाले चुनाव को लेकर सुबह-ए-बनारस के मौसम में सियासी धुंध छाई हुई है। जिंदादिली एवं बेल्लौसपन मिजाज के साथ जीने वाले इस शहर की दिनचर्या चाय-पान की दुकान से ही शुरू होती है। वहीं पर देश-दुनिया में चल रही सियासत पर गर्मागर्म बहस भी छिड़ी हुई है। रोजाना की तरह कमच्छा स्थित गोविंद सरदार की दुकान पर सुबह आठ बजे बनारसी कचैडी-सब्जी खाने के लिए आसपास के लोग एवं तमाम खबरिया चैनलों के रिपोर्टर मौजूद थे। जलेबी के इंतजार में खडे कुछ लुंगीधारी युवकों को देख एक रिपोर्टर ने उत्सुकताबस पूछ लिया, कल के रोड शो के बाद से का माहौल हैं, युवक ने तपाक से जवाब दिया, अभ्भी तक तो ईहां एक्कै माहौल रहते रहे, मगर अबकी दिखत हौ कि बीजेपी के लोग परेशान हयन (यानी अभी तक बनारस में बीजेपी का माहौल रहा है लेकिन इस बार बीजेपी के लोग परेशान हैं) रिपोर्टर ने मोदी के रोड शो में हुई भीड का हवाला दिया तभी कचौडी छान रहे गोविंद सरदार बोले, इहा सब कुछ मोदिए पर हौ, नाही त प्रत्याशी लोगन के अबकी कोई पूछत भी नाही, (यानी सभी को मोदी पर विश्वास है वरना इस बार प्रत्याशियों को कोई पूछता भी नहीं)

शायद बनारस की राजनीति का एक कड़वा सच यह भी है। अंतिम चरण के चुनावी चक्रव्यूह का अंतिम द्वार भेदने के लिए सभी दलों की उम्मीद अब काशी पर टिकी है। दलों को लगता है कि बनारस समेत पूर्वांचल की 54 सीटें यदि झोली में आ गई तो लखनउ की सत्ता के द्वार खुलने तय है। यही कारण है कि अंतिम चरण के मतदान के 48 घंटे पहले सभी दलों के सियासी दिग्गजों ने काशी में डेरा डाल दिया और रोड शो, रैली व सभा के जरिए समर्थकों, कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाकर यह संदेश देने की कोशिश कि सत्ता में आने के बाद वह वाराणसी समेत पूर्वांचल की तकदीर बदलने में कोई कोर कसर नहीं छोडेंगे। सातवें चरण के चुनाव को भाजपा किस तरह गंभीरता से ले रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद प्रधानमंऋी नरेन्द्र मोदी ने चुनावी रणनीति को अपने हाथ में ले लिया और अंतिम चरण के 54 सीटों पर होने वाले सियासी संग्राम मिशन 54 के लिए उन्होंने 54 घंटे तक बनारस में ही रहे।

कहते है कि लखनउ की सत्ता का रास्ता काशी व पूर्वांचल से होकर गुजरता है। ऐसे में विपक्षीदलों में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव एवं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी वाड्रा ने काशी से होकर गुजरने वाले जीत के रास्ते पर चलने से कोई गुरेज नहीं किया। अखिलेश यादव ने मोदी के गढ में अपने सभी सहयोगी दलो के नेताओं के साथ बडी जनसभा कर डाली। इस रैली में ममता बनर्जी, रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव के अलावा सहयोगीदलों के नेता जयंत चैधरी, ओमप्रकाश राजभर, कष्णा पटेल की मौजूदगी ने यह संदेश दे दिया कि बनारस समेत पूर्वांचल में बीजेपी की राह आसान नहीं होगी।

पूर्वांचल की सियासी राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले विजय नारायण कहते हैं कि वर्ष 2014, 2017 और 2019 में भाजपा की जीत का सेहरा पीएम मोदी के सिर ही बंधा था। मिशन 2022 को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री अब तक छह चरणों में हर इलाके में चुनावी रैलियां कर चुके हैं। इस बार सपा, बसपा एवं कांग्रेस के चुनावी चक्रव्यूह को पार करने की कवायद में सीएम योगी उनके साथ हैं। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि काशी माॅडल कितना कारगर रहा। क्योंकि काशी माॅडल को बीजेपी चुनाव के पहले ही शानदार तरीके से पूरे प्रदेश में पेश करती रही है। इसे अयोध्या के बाद काशी , मथुरा के एजेंडे में पार्टी के आगे बढने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना गया। अब जातीय क्षत्रपो को उन्हीं के गढ में घेरने के लिए बीजेपी के दिग्गज नेता गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय मंत्री स्मति ईरानी, गिरिराज सिंह, उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, भाजपा अध्यक्ष जेपी नडडा, केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान समेत तमाम नेता बनारस में रहकर पूर्वांचल को मथ रहे हैं।

दरअसल 10 दिन पहले तक भाजपा प्रत्याशियों की कार्यशैली एवं व्यवहार को लेकर कार्यकर्ताओं एवं जनता में अंदर ही अंदर गहरी नाराजगी थी। करीब 30 सालों से बीजेपी से जुडे किशोर शर्मा कहते हैं कि बडे नेताओं के सामने भले ही पदाधिकारी या कार्यकर्ता मुखर न हों, लेकिन यहां प्रचार करने पहुंचे नेताओं को यह आभास हो गया कि काशी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। यही कारण रहा कि पिछले एक सप्ताह से बडे नेताओं को शहर दक्षिणी एवं कैंट विधानसभा क्षेऋ में छोटे छोटे समूह में संवाद करना पडा। लाख प्रयास के बावजूद कार्यकर्ताओं, समर्थकों के रोष, आक्रोश एवं नाराजगी दूर नहीं हो पाने की स्थिति में पीएम को खुद कमान सभालनी पडी।

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दशाश्वमेध के राजनाथ तिवारी कहते हैं कि वर्ष 2019 में पीएम मोदी जब लोकसभा चुनाव का नामांकन करने पहुंचे थे तब उन्होंने कहा था कि उनका चुनाव काशी की जनता लडेगी। काशी के लोगों ने मोदी को पांच लाख से अधिक मतों से जिताकर उनके विश्वास एवं भरोसे को कायम भी रखा। मगर इस बार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों को लेकर जो नाराजगी थी उसे पीएम ने अपने रोड शो के जरिए दूर कर दिया। रोड शो के दौरान पार्टी पदाधिकारियों को उत्साहित कार्यकर्ताओं को संभालने में मुश्किलें आयीं। कारोबारी विनय राय कहते हैं प्रत्याशी से नाराजगी लोगों की है अपने सांसद पीएम मोदी से नहीं। हर बार की तरह कार्यकर्ता एवं काशी की जनता अपनी नाराजगी दूर करने के लिए सडक पर उतरकर पीएम मोदी के साथ नजर आयी। मलदहिया स्थित सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने पीएम मोदी जब पहुंचे तो पूरे इलाके में भारी भीड थी। लहुराबीर पहुंचते पहुंचते भीड का कारंवा बढता गया। कल तक नाराजगी दूर करने के लिए छोटे छोटे संवाद कर रहे मोदी के सिपहसालारों को आभास तक नहीं था कि काशी के लोगों में मोदी को लेकर किस तरह का लगाव है। जानकार इस परिवर्तन को भाजपा के प़क्ष में सबसे बडी रणनीतिक विजय मान रहे हैं। हर बार की तरह पीएम मोदी काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन किया और डमरू बजाकर यह संदेश देने की कोशिश की बीजेपी अपने धार्मिक एजेंडे को पूरा करने के लिए कभी पीछे नहीं हटेगी।

रामपूरी कालोनी निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता डा पीयूष मिश्र इसे दूसरे नजरिए से देखते हैं। उनका मानना है कि आठ सालों में प्रधानमंऋी अपने कार्यकाल के दौरान बनारस के कार्यकर्ताओं से कई बार सामुहिक रूप से संवाद किए होंगे लेकिन कार्यकर्ताओं के दिलों दिमाग में पीएम मोदी सडक पर उनके सबसे करीब हो पाते हैं। काशी विद्वापीठ के शोध छात्र अमिलेश यादव 2017 व 2019 के रोड शो की याद दिलाते हुए कहते हैं कि यह चुनावी अभियान का सबसे सकारात्मक पक्ष है।

बीएचयू राजनीतिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो कौशल किशोर मिश्र कहते हैं अस्सी पर पप्पू की अडी पर पीएम मोदी का रोड शो को रोककर चाय पीना और लोगों से आमजन की तरह बात करना यह दर्शाता है कि काशी के प्रति उनका लगाव कितना है। वहीं चाय पिलाने वाले दुकानदार मनोज कुमार खुद को धन्य मानते हैं।

बहरहाल, अंतिम चरण का चुनाव वाराणसी के अलावा चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, भदोही, सोनभद्र, मऊ जिले में होना है। इसी चरण में बाहुबलियों के अलावा आधा दर्जन पूर्व एवं वर्तमान मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। बाहुबली मुख्तार अंसारी का बेटा अब्दुला अंसारी, बाहुबली विजय मिश्र, सुशील सिंह, कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय का राजनीतिक भविष्य तय होगा। इसके अलावा सूबे के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, मंत्री नीलकंठ तिवारी, मंत्री रवीन्द्र जायसवाल, मंत्री संगीता बलवंत, पूर्व मंत्री सुरेन्द्र सिंह पटेल, पूर्व मंऋी ओमप्रकाश सिंह , पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर समेत तमाम दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई हैं। वाराणसी में आठ विधानसभा क्षेत्र है। पिछली बार भाजपा एवं उनके सहयोगीदलों ने सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अलग हो गई है। भाजपा इस बार सभी सीटों पर जीत हासिल करने के लिए पूरा दमखम लगाए हुए है। खास यह कि इस चुनाव में अपनादल (एस) एवं निषाद पार्टी की चुनावी दोस्ती का भी इम्तिहान इसी चरण में होना है। वहीं समाजवादी पार्टी के गठबंधन सुभासपा एवं महानदल की परीक्षा भी अंतिम चरण के चुनाव में होने जा रही है।

बाबा दरबार पहुंचे राहुल-प्रियंका व अखिलेश

सियासी रण के बीच बाबा विश्वनाथ के दरबार में दिग्गज नेताओं ने दर्शन कर जीत का आर्शीवाद मांगा। प्रधानमंऋी नरेन्द्र मोदी के बाद राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी भी पहुंचे। दोनों नेता गोदौलिया चैराहा से मंदिर तक करीब एक किमी पैदल चलकर बाबा दरबार पूजन किया। रात में रोड शो खत्म करने के बाद अखिलेश यादव भी विश्वनाथ धाम पहुंचे और उन्होंने यूपी में सत्ता वापसी के लिए बाबा विश्वनाथ से आर्शीवाद की कामना की।

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